मोहन भागवत का शताब्दी उद्बोधन और छिपाने की कला

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Mohan Bhagwat

रएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने 26-27 अगस्त 2025 को दो वक्तव्य रखे, तीसरा दिन उन्होंने प्रश्नोत्तर के लिए रखा है। इन दोनों वक्तव्यों में उन्होंने संघ की भूमिका, संघ के कार्यकर्ताओं की भूमिका और हिन्दू धर्म की भूमिका के बारे में खुलकर अपने विचार रखे।

संघ आज देश का सबसे बड़ा अघोषित राजनीतिक संगठन है।यह देश में है लेकिन रजिस्टर्ड नहीं है।स्वयं सेवक संगठन यानी एनजीओ की भूमिका निभाने सतह पर प्रयास करता है लेकिन संगठित राजनीतिक संगठन है।इसके और इससे जुड़े संगठनों के पास अकूत संपत्ति है।इसके संगठनों का नैटवर्क विशाल है।इसमें 1500से अधिक संगठन काम कर रहे हैं।हर वर्ग,समूह,पेशे और स्थान पर इसकी इकाईयां हैं।इससे इसकी सांगठनिक क्षमता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।इसके संगठनों में लाखों होलटाइमर कार्यकर्ता हैं।जिनका सारा खर्चा कौन उठाता है और पैसा कहां से आता है ,यह सब अज्ञात है।आश्चर्य की बात है कि भारत की किसी भी सरकार ने इसके अज्ञात धन की खोज ख़बर नहीं ली।किसी भी सरकार ने इसे रजिस्टर्ड करने की कोशिश नहीं की।इसका अर्थ यह है आरएसएस अब तक अज्ञात तरीकों से काम करता रहा है उसकी राज्य के संस्थान छानबीन, निगरानी आदि नहीं करते।यह सवाल तो उठता ही है कि इतने विशाल संगठन का समस्त कार्यकलाप अज्ञात क्यों है ? सरकार को वह अपने काम की आधिकारिक तौर पर जानकारी क्यों नहीं देता ?उसके लोग सरकार में जाते हैं, सरकार चलाते हैं, पर, उसकी सांगठनिक जानकारी कभी सरकार के पास आधिकारिक तौर पर संघ ने स्वयं पेश नहीं की।कुछ महत्वपूर्ण समय पर ही उसकी कोई चिट्ठी पत्री सरकार तक पहुँची है।खासकर उस समय जब गांधी की हत्या हुई और उस पर पाबंदी लगी थी।उस समय इस संगठन ने लिखा,बाद में आपातकाल के समय पीएम को तीन पत्र लिखे।

सवाल यह है आरएसएस यदि संगठन है तो उसे भारत में कानूनन रजिस्टर्ड कराने में क्या परेशानी है ? उसने अपने को रजिस्टर्ड क्यों नहीं कराया ? क्या कोई संगठन बिना रजिस्टर्ड कराए देश में काम कर सकता है ? बड़े पैमाने पर सांगठनिक इकाईयां बनाकर काम कर सकता है ? यदि काम कर सकता है तो फिर यह बात सरेआम सरकारी तौर पर घोषित की जानी चाहिए।एक वकील या डाक्टर को समाज में काम करने के लिए रजिस्टर्ड कराना पडता है। एक शिक्षित व्यक्ति को प्रोफेसर बनने के लिए नौकर पाकर रजिस्टर्ड कराना पड़ता है।एक पीएम और सीएम भी रजिस्टर्ड है।पर, आरएसएस रजिस्टर्ड नहीं है कांग्रेस,भाजपा,सपा आदि रजिस्टर्ड हैं। रामकृष्ण मिशन,आर्यसमाज आदि रजिस्टर्ड हैं।

सवाल यह है आरएसएस रजिस्टर्ड क्यों नहीं है ? अब तक किसी सरकार ने उसे रजिस्टर्ड करने के लिए बाध्य क्यों नहीं किया ? दिल्ली में उसका विशालतम आफिस है।इतना विशाल आफिस किसी दल या केन्द्रीय मंत्रालय या पीएम का भी नहीं है। इसके बावजूद यह संगठन रजिस्टर्ड क्यों नहीं है।इसके निर्देशन में काम करने वाले संगठन और हजारों एनजीओ रजिस्टर्ड हैं ,पर आरएसएस रजिस्टर्ड नहीं है। संघ का रजिस्टर्ड न होना, फिर सरकारें चलाना, नौकरशाही चलाना इस बात का साफ़ संदेश है कि संघ की संविधान के अनुसार काम करने में बुनियादी तौर पर कोई आस्था नहीं है।जो संगठन रजिस्टर्ड नहीं है वह असल में असंवैधानिक सत्ता केन्द्र की तरह काम करता है।यह चीज़ संघ में नज़र आती है।असंवैधानिक सत्ता केन्द्र की तरह काम करने की पद्धति उन्होंने किससे सीखी ? कब सीखी ? इसका कम से कम खुलासा आधिकारिक तौर पर किया जाना चाहिए।इन सवालों पर वे अपने संगठन के अंदर ज़रूर बातें करते होंगे।

संघ और उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता और नेता आए-दिन संवैधानिक मान- मर्यादाओं,सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और क़ानून के शासन का उल्लंघन करते रहते हैं।इसके कार्यकर्ताओं का मानसिक गठन इस तरह का होता है कि वे अंततः नियम विरूद्ध सक्रिय नज़र आएंगे।सुप्रीम कोर्ट का बाबरी मसजिद प्रकरण पर आदेश था कि यथास्थिति बनाए रखी जाए, यानी बाबरी मसजिद को कोई क्षति न पहुँचाई जाए।यूपी सरकार को यह जिम्मा सौंपा गया।उस समय भाजपा की सरकार थी।कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। वे बाबरी मसजिद को क्षतिग्रस्त होने से बचाने में असफल रहे,संघियों के नेतृत्व में आई भीड़ ने मसजिद गिरा दी,सारे भाजपा नेता वहां मौजूद थे परन्तु मसजिद को गिराने से भीड़ को किसी ने नहीं रोका।सुप्रीम कोर्ट ने भी कल्याण सिंह को एक दिन की दंड स्वरूप सजा सुनाकर अपने काम की इतिश्री कर ली।एक ऐतिहासिक मसजिद का गिराया जाना सरेआम क़ानून और संविधान का अपमान था।वह मसजिद अवैध नहीं थी बल्कि कानूनन वैध ऐतिहासिक इमारत थी।सारे देश ने मसजिद विध्वंस को देखा।स्वतंत्र भारत की इस महान संविधान हत्या की घटना को कोई कैसे भूल सकता है।कहने का आशय यह कि जो संगठन रजिस्टर्ड नहीं है वह जनता और सरकार के प्रति जवाबदेह भी नहीं है। इसलिए संघ को कभी जनता के सामने कोई जवाबदेही दिखाते नहीं देखा गया।

मोहन भागवत ने भारत के वैभव का जो खाका पेश किया उसमें खोखलापन अधिक है अर्थवान चीजें नदारत हैं।स्वतंत्रता संग्राम का जिस तरह जिक्र किया उसमें खोखलापन साफ़ नज़र आता है। उन्होंने कहा , ‘ भारत को एक योगदान दुनिया को देना है। उसका समय आ गया है।’ सवाल यह है क्या योगदान देना चाहते हैं ? इस पर मोहन भागवत कुछ नहीं बोले।उन्होंने बड़े मार्के की बात कही, ‘श्रृंखलाओं में बंधा आदमी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता’, क्या भारत में इन दिनों नाकेबंदी नहीं चल रही ?स्वतंत्रता का अपहरण नहीं चल रहा ? मजेदार बात यह है स्वतंत्रता संग्राम का वे बड़े ही चलताऊ ढंग से ढांचा पेश करते हैं। उसमें बताने का कम और छिपाने का भाव अधिक था।गांधी,नेहरू,पटेल,सुभाष चन्द्र बोस,आम्बेडकर,कांग्रेस,कम्युनिस्ट किसी का नाम नहीं लेते।लेकिन सावरकर का नाम ज़रूर लेते हैं।

समस्या यह है कि अनुशीलन संगठन,सावरकर और हेडगेवार के अलावा उनको अन्य कोई नज़र नहीं आया ! रेनेसां में विवेकानंद,दयानंद सरस्वती का चलताऊ ढ़ंग से नाम लेते हैं ,राजा राम मोहन राय ईश्वर चन्द्र विद्यासागर,फुले आदि को उल्लेख योग्य नहीं मानते ,1857 के बारे में वे अस्पष्ट समझ पेश करते हैं।

मोहन भागवत के भाषण में आरएसएस और हिन्दू धर्म के बारे में जितना बताया गया उससे अधिक छिपाया गया।सवाल यह है छिपाने की ज़रूरत क्यों पड़ी ? जबकि आज सभी तथ्य सामने हैं।तथ्यों को पेश करने में असुविधा क्यों हो रही है ? भागवत का कहना , ‘हम मनुष्यों में अंतर नहीं करते थे’ , यह सबसे बड़ा झूठ है।हिन्दू समाज में अंतर था और आज भी है। इसके कारण समाज सुधार शुरू हुए। अंतर को ही भक्ति आंदोलन और बाद में रेनेसां और संविधान सभा ने सम्बोधित किया।


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