— डॉ योगेन्द्र —
सामान्य- सी सुबह । रांची की सड़कों पर चाय और फल वाले । कच्चे नारियल के अनेक ठेले। ऊँची बिल्डिगें और उन पर कोचिंग के अनेक पोस्टर । रांची के दो व्यापारियों ने अपने खूब पोस्टर लगाए हैं । वे खबर दे रहे हैं कि उनका उद्योग बहुत फल- फूल रहा है। उनका उद्योग जरूर फल- फूल रहा होगा । निजी उद्योगों का युग है। सरकार ने अपना बिछावन समेट लिया है। उसने मान लिया है कि वह निकम्मी है और यह मेरा काम नहीं है। मेरा काम सिर्फ़ इतना है कि बचे खुचे सरकारी उद्योगों को घाटे में दिखाना है और उसे उद्योगपतियों के हाथों बेच देना है । सरकार का काम सरल हो गया है। उसे वादे करने और प्रवचन देने के सिवा कोई काम नहीं बचा है। सरकार तो सरकार, कोर्ट तक को भी बहुत काम नहीं है। उसका काम यह रह गया है कि पूँजीपतियों पर जो टीका- टिप्पणी हो रही है, उस पर प्रतिबंध लगाना और दोयम दर्जे के कथावाचक रामभद्राचार्य की जो आलोचना हो रही है, उस पर प्रतिबंध लगाना। कोर्ट क्या यह नहीं जानता है कि भारतीय संविधान ने अभिव्यक्ति की आज़ादी दी है। अगर रामभद्राचार्य संविधान के खिलाफ बोल सकते हैं और देश में दुर्भावना फैला सकते हैं तो भारत के नागरिक उनके खिलाफ भी नहीं बोल सकते? यह तो नाइंसाफी है।
अगर कोर्ट ऐसे लोगों की सुरक्षा करता है तो उसके खिलाफ बोलना चाहिए और कोर्ट इसके लिए सजा देता है तो इसे भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए । मजा यह है जिन मंत्रियों की कुल कमाई नील बटा सन्नाटा है, वे भी लंबी- लंबी फेंक रहे हैं । क्या यह समय ऐसे लोगों के नाम जाना जाएगा? चूँकि मंत्रियों को अपने आका के पांव पखारने से फुर्सत नहीं है, इसलिए सनातनी झटके का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं । भागलपुर में जो बीस हज़ार करोड़ का घोटाला हुआ, उस घोटाले की महारानी मनोरमा देवी से भी इनका गहरा संबंध था। देश में बटमार ही देश का रखवाला हो गया है ।
गिद्ध धरती पर बहुत कम बचे हैं । गिद्धों का अब पालन हो रहा है । लगता है कि गिद्ध जब धरती से जाने लगे तो अपना स्वभाव धरती पर छोड़ गए और यह स्वभाव कुछ मनुष्यों में घुस गया है। गिद्ध की आत्मा का कायांतरण हो गया है। मरी के ताजे मांस को नोचने- खसोटने की गिद्धों की आदत अब कुछ मनुष्य में प्रविष्ट कर गया है। ऐसे मनुष्य बहुत जगह सहज ही उपलब्ध है। अस्पताल में जाइए तो डॉक्टर नोचने- खसोटने लगेगा । थाना जाइए तो थानेदार । किसी दफ़्तर में काम कराने जाइए तो किरानी से लेकर अफ़सर तक। कोई हिसाब नहीं है। लगता है कि यह देश कत्लगाह बन गया है । जो इस कत्लगाह के नियमों की अवहेलना करता है, वह देशद्रोही हो जाता है। उन पर इतनी तरह की कार्रवाई की जाती है कि सत्ता भूल जाती है कि यह लोकतांत्रिक देश है। सब कुछ देख सुन कर ऐसा लगता है कि कहीं से तूफ़ान उठे। लोगों की बुलंदियों के स्वर से आकाश गूँजने लगे । इन बुलंद स्वर में जलन न हो। सृजन हो। सागर का गर्जन- तर्जन ही न हो, झरनों का कल- कल हो। पक्षियों का कूजन हो और बच्चों की खिलखिलाहट हो। नव सृजन का आह्वान हो। मनुष्य होने का बोध हो। जीने की ख्वाहिश और तमन्ना हो। न डर हो , न आशंका । दूर से सार्थक ध्वनि की अनुगूँज हो।
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