
बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के पहले ही दिन पंत प्रधान श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की शब्दावली सुनकर मुझे एक बार फिर एक भारतीय होने के नाते शर्मिंदगी महसूस हुई. पहली बार लगा कि पंत प्रधान के पास प्रभावी शब्दकोश का नितांत अभाव है. किसी भी प्रधानमंत्री के शब्द एक नजीर होते हैं.
प्रधानमंत्रियों की भाषिक मर्यादा का अपना महत्व है, और एक -दो अपवादों को छोडकर सभी ने अपनी शाब्दिक गंभीरता से देश, दुनिया को प्रभावित किया है. किसी भी व्यक्ति की अपनी शब्दावली उसके भाषायी संस्कारो के साथ ही उसकी शैक्षणिक योग्यता और स्वाध्याय की शिनाख्त होती है. माननीय मोदी जी की भाषा 2014 से 2025 जाते-जाते और मलिन हो गई है. लगता है कि उनके पास भाषा के नाम पर एक बडे शून्य के अलावा कुछ और है ही नहीं.
मै उस पीढी से हूँ जिसने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी शैली के भाषण भी सुने हैं और लाल बहादुर शास्त्री के महीन देशज भाषण भी. इस देश ने श्रीमती इंदिरा गांधी के खनकदार भाषण भी सुने हैं और मोरारजी भाई देसाई के शुष्क भाषण भी, लेकिन सबका अपना शब्द सामर्थ्य था और अपना लालित्य. देश ने राजीव गांधी का ओस में भीगा भाषण भी सुना और वीपी सिंह का इलाहाबादी अमरूद सा सरस भाषण भी सुना. देश को चंद्रशेखर, देवगौडा, गुजराल और चौधरी चरण सिंह के भी भाषण याद हैं. और तो और देश ने रसहीन डॉ मनमोहन सिंह के शास्त्रीय अकेडमिक भाषणों के साथ ही तमतमाते, हंसाते, अटल बिहारी बाजपेयी के भी लच्छेदार भाषणों को सुना है.
पिछले 80 साल में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी पहले ऐसे नेता हैं जो आपे से बाहर होकर चुनावी सभाओं में भाषिक मर्यादा भूल जाते हैं. बिहार की पहली सभा में उन्होने विपक्ष के महागठबंधन को लठबंधन कहा. सहयोगी दलों को अटक दल, लटक दल और पटक दल कहा. मोदी जी के इस भाषण से उनका खोखलापन एक बार फिर उजागर हो गया. कोई भी प्रधानमंत्री विधानसभा के चुनाव प्रचार मे अपनी सरकार के कार्यक्रमों और नीतियों की बात तो करता है किंतु पार्टी अध्यक्ष की तरह भाषा के निम्नतर स्तर पर आकर भाषण नहीं देता.
मुमकिन है कि मोदी जी का छिछला और टपोरीकृत भाषण सुनकर उनके प्रशंसक झूम उठते हों लेकिन आम आदमी को इससे अपच होती होगी. प्रधानमंत्री का भाषण विदेशों में रहने वाले असंख्य भारतीय भी सुनते हैं उनका सिर भी शर्म से झुक जाता है. मुश्किल है कि आप किसी बूढे तोते को सीताराम कहना सिखा भी नहीं सकते. कभी कभी मोदी जी के भाषण को सुनकर लगता है कि शायद यही नागपुरिया संस्कार हो. जब मोदीजी को छिछली, उथली भाषा का इस्तेमाल करते देखता हूँ तो मुझे संसद में मुसलमानों के लिए खास विशेषण का इस्तेमाल करने वाले रमेश विधूडी पर दया आती है.
मै मोदीजी के भाषण की निंदा करते हुए भी तकलीफ महसूस करता हूं और विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूं कि माननीय मोदी जी अपनी भाषा के जरिये न सिर्फ अपने पद की गरिमा क्षीण कर रहे हैं बल्कि अपनी प्रतिष्ठा को बट्टा भी लगा रहे है. अभी भी वक्त है कि मोदी जी अपने भाषण लिखवाने के लिए कोई अच्छा, अनुभवी साहित्यकार तलाश कर लें. न मिले तो एआई से भाषण लिखवा लें, लेकिन आंय-बांय न बोलें. चुनाव आते -जाते रहते हैं लेकिन गरिमा स्थाई चीज होती है.मोदीजी से बढिया भाषण तो संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत बोलते हैं.
बेलगाम जबान वाले नेता किसी भी दल में हों काबले बर्दाश्त नहीं होते. चारा चोर लालू यादव की भाषा में एक देशज लालित्य है.
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