जंगे आजादी के सोशलिस्ट हीरो मुंशी अहमद दीन! – प्रोफेसर राजकुमार जैन

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मुंशी अहमद दीन

Raj kumar Jain

तिहास की किताबों में कई बार ऐसे किरदारों को अनदेखा कर दिया जाता है जो नींव के पत्थर बने हो, अपना सब कुछ वतन पर लुटा दिया हो। तथा‌ इसके बरक्स हुकूमत के ताबेदार रहे, माफी खोर, चालाक, जुगाड़ू अपने आप को सबसे बड़ा वतन परस्त भी घोषित करवा लेते हैं।

हिंदुस्तान की जंगे आजादी में मुंशी अहमद दिन एक ऐसी शख्सियत थे जो दूसरे विश्व युद्ध शुरू होने पर नवंबर 1939 में गिरफ्तार होकर हिंदुस्तान के मुख्तलिफ जेल में कारावास भुगतते हुए 1946 में रिहा हुए थे।

1906 में अमृतसर में पैदा हुए‌ मुंशी अहमद दिन के घर के पिछवाड़े की दीवार पर जलियांवाला बाग कांड में अंग्रेजी सल्तनत के नरसंहार के खून और गोलियों के निशान पड़े हुए थे, उसको देखकर 13 साल का बालक मुंशी अहमद दीन विद्रोही मानस का बन गया। एक मामूली परिवार में पैदा होने के कारण उनकी स्कूली तालीम ही हो सकी। असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन में ‘क्रांतिकारी नौजवान भारत सभा’ जिसको भगत सिंह ने स्थापित किया था। 1926 में मुंशी जी उसमें‌ पूर्ण कालिक शामिल हो गए। नौजवान सभा की प्रथम कॉन्फ्रेंस 13 -14 अप्रैल 1928 में हुई जलियांवाला बाग अमृतसर सम्मेलन में भी वे शामिल हुए। 16 दिसंबर 1928 में ‘काकोरी दिवस’. के मौके पर ‌ उत्तेजक भाषण देने के कारण उनको गिरफ्तार कर सजा देकर जेल भेज दिया गया। ‘सांडर्स हत्याकांड’ के सिलसिले में उनकी गिरफ्तारी तो हुई परंतु आरोप सिद्ध न होने के कारण उन पर ‌ मुकदमा न चल सका। परंतु अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावती तकरीर करने के कारण 2 साल की सख्त कैद की सजा उनको दे दी गई। भगत सिंह की गिरफ्तारी के वक्त वे भगत सिंह अपील कमेटी अमृतसर के सचिव थे।

उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की फांसी की सजा को रोकने के लिए कड़ा संघर्ष किया तथा असफल होने पर ‘गांधी वापस जाओ’ ‘जवाहर वापस जाओ’ ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे भी लगाए। ‌ 10 दिसंबर 1934 को ‌नोजवान सभा‌ को ‌ गैर कानूनी करार कर दिया गया। अटक जेल से 1934 में रिहा होकर मुंशी अहमद दिन तथा उनके अनेक साथियों ने ‘अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ में अक्टूबर 1934 में शामिल होकर कार्य करना शुरू कर दिया। मुंशी अहमद दीन, मुबारक सागर, रामचंद्र, मंगल दास, प्रोफेसर बृज नारायण, तिलक राज चढ़ा तथा अन्य साथियों ने मिलकर ‘ऑल इंडिया ‌ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी पंजाब’ की स्थापना कर दी, तथा बाद में‌ कांग्रेस को हटाकर इसका नाम ‘पंजाब ‌ सोशलिस्ट पार्टी’ । कर दिया गया। 1936 में मेरठ में आयोजित कांग्रेस ‌ सोशलिस्ट पार्टी की कॉन्फ्रेंस में भी इन्होंने शिरकत की। मुंशी अहमद दिन, मुबारक सागर तथा तिलक राज चड्ढा को जिम्मेदारी दी गई कि वह मेरठ कांग्रेस में जाकर जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया‌, युसूफ मेहर अली से संपर्क स्थापित कर आश्वासन दे कि वह कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के मिशन को पूरा करेंगे।

1936 को जौनपुर में आयोजित युसूफ मेहर अली की अध्यक्षता वाली कॉन्फ्रेंस में भी मुंशी जी शामिल हुए। वहां से लौटते हुए वे फैजाबाद में आचार्य नरेंद्र देव तथा इलाहाबाद के आनंद भवन में जवाहरलाल नेहरू से भी मिले। बताया जाता है की मुंशी जी के भाषण खौफनाक, बगावती, सनसनी पैदा करने वाले होते थे ‌ इसी वजह से उनकी गिरफ्तारी होती रहती थी। मुक्तलिफ जेलो में बंदी रहते हुए उन्हें देवली कैंप जेल में भी भेजा गया, जहां पर जयप्रकाश नारायण भी बंदी थे। बंदियो को उनके गृह प्रदेशों में भेजने की मांग करते हुए जयप्रकाश नारायण ने 32 दिनों की ‌ भूख हड़ताल की थी, जिसमें मुंशी जी भी शामिल थे। कम्युनिस्टों ने वहां रणनीति बनाई थी कि सोशलिस्ट उनके कैंप में शामिल हो जाए पर परंतु मुंशी जी ने इसका विरोध कर दिया। 1944 में जब वह गुजरात जेल में बंदी थे उनके पिताजी का इंतकाल हो गया तो उन्होंने पैरोल पर आने के लिए आवेदन भी नहीं किया। 12 -13 अप्रैल 1938 को लाहौर में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की कॉन्फ्रेंस में वे स्वागत समिति ‌ के अध्यक्ष थे। इसी कॉन्फ्रेंस में कम्युनिस्टों की साजिश कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी पर कब्जा करने की थी जो की मुंशी जी के कारण सफल न हो सकी। जेल से रिहा होकर वे पंजाबी सोशलिस्ट पार्टी के सचिव बन गए। उन्होंने खालरा तथा लायलपुर में पार्टी का सम्मेलन आयोजित किया तथा गुजरांवाला में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कार्यकर्ता शिक्षण कैंप भी आयोजित किया। गुजरांवाला के जिला मजिस्ट्रेट ने इस कैंप पर बंदिश लगा दी। परंतु जवाहरलाल नेहरू के एक सख्त बयान जो इस गैर कानूनी हुकूम के खिलाफ था पंजाब सरकार को कैंप पर से बंदिश लगाने का हुक्म वापस लेना पड़ा।

मुंशी जी स्वभाव से एक लड़ाकू तथा मजदूरों, कामगारों के हकों के लिए लड़ने वाले मिजाज के थे। 1946 में लाहौर में औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों का असंतोष चरम पर था। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी मजदूरों के हकों के लिए संघर्ष कर रही थी। पंजाब में औद्योगिक, पोस्टल तथा रेलवे मजदूरों में इसका व्यापक प्रभाव था। इसी के मद्देनजर पंजाब‌ क्षेत्रीय मजदूर पंचायत की स्थापना देवदत्त वशिष्ठ ‌ को सचिव बनाकर कर दी गई। ‌ सोशलिस्ट पार्टी द्वारा दिसंबर 1948 में ‌ इंडियन लेबर फेडरेशन तथा हिंद मजदूर पंचायत को मिलाकर एक श्रमिक संघ का संगठन किया गया। ‌ इस संगठन का नाम ‘हिंद मजदूर सभा’ रखा गया। कई अन्य मजदूर संघ तथा फारवर्ड ब्लाक के प्रभाव में काम करने वाले श्रमिक संघ भी हिंद मजदूर सभा में शामिल हो गए। हिंद मजदूर सभा पूरे देश के स्तर का श्रमिक संगठन बन गया।

मुंशी जी पंजाब में घूम-घूम कर मजदूरों के बीच भाषण देते रहते थे। चौटाला में जमीदारी के विरोध में होने वाले सत्याग्रह में वे ‌ प्रमुख वक्ता थे। इसी सत्याग्रह में चौधरी देवीलाल भूतपूर्व मुख्यमंत्री हरियाणा भी शामिल थे। इसके बाद पंजाब किसान पंचायत की शुरुआत भी की गई। एक निर्भीक जोशीले भाषण कर्ता होने के कारण क्रांतिकारी युवकों के बीच उनकी हमेशा मांग बनी रहती थी। ‌ सोशलिस्ट पार्टी का छठा राष्ट्रीय अधिवेशन नासिक में 19 से 21 मार्च 1948 को हुआ था। पुरुषोत्तम विक्रम दास जोकि गांधी जी के सचिव भी रह चुके थे, उनकी अध्यक्षता में संपन्न हुए सम्मेलन में सोशलिस्टों द्वारा कांग्रेस छोड़ने पर हुए विमर्श में प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए ‌ आचार्य नरेंद्र देव ने कहा था कि गांधी जी ने कांग्रेस के लिए एक उज्जवल भविष्य की कामना की थी, वह चाहते थे कि कांग्रेस‌ एक लोक सेवक संघ बन जाए, अब गांधी जी नहीं है तो इन लोगों ने कांग्रेस को मात्र एक राजनीतिक दल के रूप में लघुकृत कर दिया है। नासिक के राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर जयप्रकाश नारायण ने सम्मेलन में कांग्रेस छोड़ने की परिस्थितियों पर प्रकाश डाला था। पार्टी के नयी कार्यकारिणी जिसके 25 सदस्य थे। जयप्रकाश नारायण जिसके महासचिव बने तथा ‌ सुरेश देसाई, प्रेम भसीन, रोहित दवे तथा मधु लिमए इसके संयुक्त सचिव बनाए गए। सदस्यों में आचार्य नरेंद्र देव, डॉ राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली,पीकेएम नांबियर, शिवनाथ बनर्जी, अजीत राय ,विपिन पाल दास, रामनंदन मिश्रा, बसावन सिंह, कमला देवी चट्टोपाध्याय, अशोक मेहता, युसूफ मेहर अली, मगनलाल बागड़ी, छोटू भाई पुरानी, सुरेंद्र द्विवेदी, दामोदर स्वरूप सेठ और मुंशी अहमद दीन इसकी कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए। मुंशी जी 1938 में लाहौर कॉन्फ्रेंस, 1947 में कानपुर, 1948 में नासिक तथा 1949 में पटना में वे सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय समिति के सदस्य चुने गए।

सोशलिस्ट पार्टी की ओर से दिसंबर 1948 में कोलकाता में समान विचार वाले देश के तमाम मजदूर संघों के कार्यकर्ताओं और नेताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में जिन महत्वपूर्ण नेताओं ने भाग लिया था उसमें सोशलिस्ट पार्टी की नुमाइंदगी जयप्रकाश नारायण ने की थी। ‌ कोलकाता के सम्मेलन में इंडियन लेबर फेडरेशन और हिंद मजदूर सभा पंचायत को मिलाकर एक श्रमिक संघ का गठन किया गया। इस नए श्रमिक संगठन का नाम हिंद मजदूर सभा रखा गया कई अन्य श्रमिक संघ तथा फारवर्ड ब्लाक के प्रभाव में काम करने वाले श्रमिक संघ भी हिंद मजदूर सभा में सम्मिलित हो गए। इस प्रकार हिंद मजदूर सभा पूरे देश के स्तर का श्रमिक संगठन बन गया। ‌ आर एस रुईकर, हिंद मजदूर सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और अशोक मेहता इसके महासचिव चुने गए। ‌ इसकी कार्यकारिणी में जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली ‌ वह अन्य के साथ-साथ मुंशी अहमद दीन भी सदस्य चुने गए। ‌ 13 अक्टूबर 1946 को कराची में भाषण देते हुए उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के उद्देश्य तथा कांग्रेस का अंग होने के साथ-साथ मुसलमानों को चेताया कि स्वार्थी मुस्लिम नेताओं के झांसे में ना आए। वह मोहम्मद अली जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के कटु आलोचक थे। तथा हिंदू मुस्लिम एकता के ‌ पैरोंकार थे।

दिल्ली के हमारे एक पुराने‌ सोशलिस्ट साथी ज्ञानचंद जो इंडियन रेलवे के कर्मचारी थे अक्सर कॉफी हाउस में बैठकर मुंशी जी की तकरीरों की ‌ बानगी को सुनाते थे। तमाम उम्र ‌अंग्रेजी हुकूमत की मुखालफत करने के कारण यातना सहने, सोशलिस्ट विचारधारा का ध्वज फहराने तथा मजदूरों, किसानों, कामगारों के हको के लिए लड़ने वाले मुंशी ‌जी का 1967 में जब वह बीमारी की हालत में दिल्ली में थे तो उनका इंतकाल हो गया था।

References
1- Unsung torch Bearers
Punjab Congress socialist in freedom struggle,‌ by KL Johar
2- Democratic socialism profile In courage and convection by Prem Bhasin


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