
बिहार चुनाव में भाजपा तथा उसके पीछे कतार में खड़ी अन्य पार्टियों की एक तरफा जीत का अंदाजा खुद जीतने वालों को भी शायद नहीं था। जीत के जश्न में भाजपा के सिपहसालार नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के दिल्ली किले में विजेता के जोम में हुंकार भरते हुए कांग्रेस और मुखालिफ पार्टियों पर जमकर हमले करते हुए गुरुर में गमछा लहरा कर ‘गर्दा उड़ा दिया’ जैसे जुमलो का भी प्रयोग किया।
जाहिर है कि जैसी उनकी जीत हुई है, उसके मुताबिक अगर वह आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करें तो ताज्जुब कैसा। जीत के इस जयघोष में बंगाल के आगामी चुनाव में अपनी जीत की ताल भी ठोंक दी। हालांकि सियासी रिवायत के मुताबिक विजेता की भाषा अपने विरोधियों के लिए विनम्र, सद्भावना वाली अक्सर देखी गई है, परंतु यह नरेंद्र मोदी है जिनसे तवकों की ही नहीं जा सकती।
अब जरा इस चुनाव की चौसर के खेल को समझा जाए, इस बात में किसी को कोई शक सुबहा नहीं कि भाजपा की सारी रणनीति हिंदू मुसलमान की खाई को चौड़ा करने की गोलबंदी पर टिकी है। परंतु इस नीति को ज़मीनी जामा पहनाने में अगर आरएसएस जैसे फौलादी, जमीनी पकड़ वाले संगठन के कार्यकर्ताओं की फौज जी जान से न जुटी होती तो प्रधानमंत्री की लाख चाहत और जुमलेबाजी के बावजूद जीत हासिल नहीं हो सकती थी।
दिल्ली का बाशिंदा होने के कारण मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्य प्रणाली को बहुत नजदीक से देखा है। आरएसएस द्वारा राजनीतिक पार्टी बनाकर सियासत शुरू करने के लिए दिर्ल्ली की एक धर्मशाला में चंद लोगों की मौजूदगी में जनसंघ की स्थापना हुई थी। हिंदुस्तान में पहली बार दिल्ली में म्यूनिसिपल कमेटी के चुनाव में पाकिस्तान से आए हुए बड़ी तादाद में शरणार्थियों तथा दिल्ली के बनियों के समर्थन से उनकी जीत से शुरू हुई थी। इनकी जीत के जुलूस का कारवां बढ़ते बढ़ते बिहार तक जा पहुंचा।
100 साल पहले 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारतीय जनता पार्टी के अलावा 100 से अधिक सहमना संगठन जैसे बजरंग दल, भारतीय मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद, पूर्व सैनिक परिषद, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्र सेवा भारती, राष्ट्र सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, हिंदू स्वयंसेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच, वनवासी सेवा संघ, लघु उद्योग भारती, भारतीय विचार केंद्र, विश्व संवाद केंद्र, राष्ट्रीय सिंह सिख संगत, हिंदू जागरण मंच, विवेकानंद केंद्र जैसे नामों से भी कार्यरत है। इन संगठनों में लाखों कार्यकर्ता जिसमें हजारों पूर्ण कालिक भी हैं, चाहे कैसा भी मौसम हो, आंधी तूफान हो कड़कती सर्दी में भी किसी भी हिंदू की नई नस्ल के लड़के को भोर में आवाज लगाकर शाखा में शामिल करने की कवायद इनकी ओर से मुसलसल जारी रहती है। वहां शिक्षण के नाम पर हिंदू गौरव तथा मुस्लिम नफरत का पाठ पढ़ाया जाता है। सत्ता का जितना दोहन भाजपा अपने संगठन के फैलाव के लिए करती रही इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं। दिल्ली में हर जिले में करोड़ों की मिल्कियत के उनके अपने कार्यालय हैं। झंडेवालान में नयी तामीर की गई आरएसएस की भव्य इमारत का बड़ी से बड़ी इमारत भी उसका मुकाबला नहीं कर सकती। कनॉट प्लेस से सटे हुए सबसे आलीशान, महंगे इलाके दीनदयाल मार्ग में कम से कम 800 गज से लेकर 2000 गज के भूखंडों पर 8-१० बिल्डिंगों में उनके संगठन कार्यरत हैं।
हजारों वर्ग गज में बना केंद्रीय कार्यालय तो किसी रियासत से कम नहीं। उससे चंद कदमों के आगे एक नई इमारत में सैकड़ो सुसज्जित, आधुनिक सुविधा से लैस कमरों में पार्टी का रिसर्च विंग मुल्क भर से सैकड़ो मुख्तलिफ रिसर्च स्कॉलर को हर तरह की सुविधा प्रदान कर इस मकसद से कार्यरत है कि भाजपा का विचार दर्शन, संगठन के प्रचार प्रसार को कैसे व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया जाए। कोई माने या ना माने परंतु एक सच्चाई है कि आरएसएस के वैचारिक जाल में हजारों हजार स्वयंसेवकों को बिना किसी लालच स्वार्थ के हिंदू राष्ट्र को स्थापित करने में जीवनदायिनी बनाकर जुटा दिया। जाहिर है कि इसका आर्थिक जरिया सरकारों के मंत्रियों तथा बड़े पूंजीपतियों के द्वारा दिए गए धन पर आश्रित है। अगर कोई यह कहे कि भाजपा के मंत्री, एमपी, एमएलए भ्रष्टाचारी नहीं है तो वह हकीकत कबूल नहीं कर रहे। परंतु इसके आर्थिक दोहन का बड़ा हिस्सा संगठन में जाता है। इसके बरक्स कांग्रेस के राज में मंत्रियों की धन लूट का सारा हिस्सा उनकी जेब में ही रहा। जिसका नतीजा हुआ कि कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय के बिजली, पानी के बिल, कर्मचारियों को तनख्वाह देने के भी टोटे पड़ गए। अपने संगठन के फैलाव बढ़ाने में बीजेपी किस तरह के तरीके अख्तियार कर रही है उसकी सबसे बड़ी मिसाल दिल्ली की कावड़ यात्रा है।
अब हर साल दिल्ली में कावड़ यात्रा के जुलूस में दिल्ली की मलिन बस्तियों, कच्ची कॉलोनी, झुग्गी झोपड़ियां,गरीबों के कटरों में रहने वाले अधिकतर बेरोजगार पिछड़े, दलित हिंदू नौजवानों को पहले से संपर्क कर कावड़ यात्रा में शिरकत करने के लिए तैयार किया जा रहा है। कावड़ यात्रा से पहले बैठक कर यात्रा में हर तरह की सुख सुविधा का इंतजाम तथा यात्रा से धार्मिक लाभ की घुट्टी भी पिलाई जाती है। नवयुवकों के इन जत्थेबंदी को बजरंग दल के झंडे और उत्तेजित नारे लगाए जाने की ट्रेनिंग देकर मुस्लिम नफरत की चासनी चटवाने की भी कवायद की जाती है। चुनाव के वक्त यही नौजवान भाजपा का बूथ मैनेजमेंट करते लगते हैं। और इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा के किसी भी उच्च वर्ग का बेटा इसमें शिरकत नहीं करता।भाजपा अपने संगठन और अनुशासन की ताकत पर चुनाव में फायदे के मद्देनजर बड़े से बड़ा उलट फेर किसी भी वक्त करने की ताकत रखती है। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को हटाकर पिछड़े वर्ग के सैनी को मुख्यमंत्री घोषित कर पासा पलट दिया गया। मध्य प्रदेश में बड़े-बड़े नामवर भाजपा नेताओं के होने के बावजूदश मोहन यादव को मुख्यनमंत्री का चेहरा बना बना दिया गया, मजाल की कोई भी नेता चूं तक कर सका, क्या यह और किसी पार्टी में संभव है? भाजपा के वरिष्ठतम, तजुर्बेकार बड़े नेताओं के होने के बावजूद राष्ट्रपति पद पर दलित रामनाथ कोविंद जिन्हें एक वक्त मांगने पर भी लोकसभा का टिकट भाजपा ने नहीं दिया था। तथा अब राष्ट्रपति पद पर एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बना दिया। किसी भी सुबे पर केंद्रीय आला कमान कोई भी फैसला ले ले, मजाल कि इसकी मुखालफत पार्टी में किसी प्रकार देखने को मिले।
अब दूसरी तस्वीर को देखिए। विरोधी पक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के संगठन का मुलाहिजा किया जाए, किसी भी स्तर पर वैचारिक ढांचा तैयार करने की कोई कार्य योजना उसमें नहीं। नेताओं की परिक्रमा ही सबसे बड़ी सीढ़ी है पद पाने की। कांग्रेस सत्ता का सबसे ज्यादा फायदा कुछ तथाकथित वामपंथी, प्रगतिशीलन, कम्युनिस्ट छाप ने कांग्रेस के मंत्रीयो को प्रगतिशील का तमगा बांट कर उठाया। क्षेत्रीय दलों का सिद्धांत, विचारधारा, नीति, कार्यक्रम से किसी भी प्रकार के सरोकार का कोई मतलब ही नहीं रहा। जाति, धर्म, दौलत और गुंडागर्दी के माहिर खिलाड़ीयों का समीकरण ही उनकी राजनीति की घुरी बनी रही। व्यक्तिगत ईमानदारी कितनी रही? परिवार का कोई सदस्य सत्ता से महरूम न रह जाए इसका पूरा ध्यान रखा गया। बिहार जिसे जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर राममनोहर लोहिया, कपूरी ठाकुर, रामानंद तिवारी, भूपेंद्र नारायण मंडल जैसे नेताओं ने समाजवादी नीतियों तथा अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी, सादगी तथा गरीब पिछड़े वर्गों में मेहनत कर गहरी पैठ स्थापित की थी, उसको लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव ने दरकिनार कर अपनी ही ताकत को सर्वोपरि मान कर सियासत चलाई। बिहार में लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार सभी समाजवादी आंदोलन की देन है।
परंतु सत्ता का ऐसा मद चढ़ा कि इन्होंने समाजवादी विचारधारा और उसके आस्थावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार ही नहीं किया,उनका मजाक भी उड़ाया, नतीजा सामने है। नीतीश कुमार बिहार की जीत के आज हीरो है। बीस साल से मुख्यमंत्री भी बने हुए हैं, आगे भी 5 साल बने रह सकते हैं। परंतु उन्होंने क्या खोया और क्या पाया? उसको भी जानना जरूरी है। बिहार के समाजवादी नेताओं में वैचारिक रूप से दक्ष, जानकारी वाले नेता ये रहे है। व्यक्तिगत ईमानदारी और कुनबा परस्ती भी उनमें नहीं है। समाजवादी तहरीक में सालों साल मैंने और नीतीश ने एक साथ कार्य किया है। नीतीश ने कई साल एक जमीनी कार्यकर्ता के रूप में समाजवादी विचार दर्शन के सिद्धांतों का प्रचार किया। परंतु भाजपा के समर्थन से सत्ता के रथ पर सवार होकर नीतीश को क्या मिला? जिस भाजपा का बिहार में कोई वजूद नहीं था, नीतीश की ताजपोशी की आड़ में भाजपा अपना संगठन रोज-बरोज मजबूत करती गई। आज हालात यह है कि भाजपा बिना नीतीश के भी अपनी सरकार बिहार में बना सकती है।
पलटूराम की इमेज, सरकारी झंडेवाली कार, बंगला और सलामी तो जरूर मिली, परंतु सरकार से हटने पर क्या जॉर्ज फर्नांडीज जैसी हालत उनकी नहीं होगी? ओवैसी जैसो की मजहबी तकरीर ही भाजपा की असली खुराक बन जाती है। मुसलमान के बीच में मजहबी जज्बात को भड़काना आसान है परंतु हिंदू मुस्लिम एकता बने उससे उन्हें कोई सरोकार नहीं। ओवैसी के मुकाबले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने ज्यादा जहरीली तकरीर करके भाजपा को सीटे जितवा दी। जब भाजपा हिंदू मुसलमान का दंगा सड़कों पर भड़काएगी उस समय ओवैसी हैदराबाद में अपने घर में बैठकर जुमले फैंकते रहेंगे, परंतु दंगाग्रस्त क्षेत्रों में गांधीवादी, समाजवादी, मार्क्सवादी विचारधारा के हिंदू कार्यकर्ता ढाल बनकर दंगों को शांत करने, और अकलियतों की हिफाजत करेंगे।
अब सवाल यह है कि क्या किया जाए? व्यक्तिवादी, जात, मजहब धन, दबंगई के बल पर जुगाड़ से सियासत करने वाले भाजपा जैसी पार्टी का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि विचारधारा पर आधारित कैडर तैयार कर मजदूरों किसानों, कामगारों, गरीबों, पिछड़ों, दलितों, अकलियतों को गोलबंद कर उनके हको लिए सड़क पर संघर्ष और जेलो में जाने के लिए तैयार होना होगा।
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