सड़क किनारे जो झुग्गियां बना कर रहते हैं, वे देश के नागरिक हैं या नहीं? क्या देश के नागरिक वहीं हैं जो मुफ्त में रोटियां तोड़ते हैं, देश का पैसा लूट कर बहुमंजिली इमारतें बनवाते हैं या सरकार के तलवे चाट कर या चटवा कर अकूत संपत्ति जमा करते हैं। झुग्गियों में रहने वालों की कभी गणना नहीं हुई। गणना होनी चाहिए, जिससे पता तो चले कि देश का विकास कितना हुआ है? दूसरी तरफ सरकार अपने पैसे से जनता की जमीन जबर्दस्ती खरीद लेती है और 1050 एकड़ जमीन महज एक रुपए में तीस वर्षों के लिए दे देती है। नयी सरकार बनते ही बिहार के कई जिलों में जनता सफाई योजना चल रही है। समस्तीपुर, जमुई आदि जिलों में सरकार की यह अमानुषिक कार्रवाई चल रही है।
एक जगह मैंने देखा कि जेसीबी से दो युवक लटक गये। वे हवा में तने रहे। बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। एक जगह एक आदमी कह रहा है कि मैं तो बीजेपी का कट्टर समर्थक हूं, बल्कि मेरा पूरा मुहल्ला बीजेपी मय है। जेसीबी को क्या मालूम कि कौन किसका समर्थक है? आप रहिए समर्थक, लेकिन बीजेपी कभी गरीब – गुरुआ के समर्थक नहीं रही। धन्ना सेठों के यहां पली- बढ़ी और हिन्दू राष्ट्र का सपना दिखाते हुए मुस्लिमों पर बरसते हुए यहां तक आयी है। अब तो अश्वमेध का घोड़ा छोड़ दिया गया है। बाहुबली फिल्म आने के बाद यह प्रश्न तैरने लगा कि ‘ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा’ ? उसी तरह से यह पता करना मुश्किल होगा कि झुग्गियां क्यों उजाड़ी जा रही हैं और उजाड़ी जा रही हैं तो उन्हें पहले बसा क्यों नहीं दिया जाता? दरअसल ये लोग सिर्फ घर नहीं बसाते हैं, बल्कि रोजी रोजगार खड़े करते हैं। मैंने अपने शहर में देखा है कि एक दिन पुलिस आती है। माइक लगाकर घोषणा करती है कि अतिक्रमण कारी अपनी दूकानें हटा लें। एक दिन दूकानें हट जाती हैं और दूसरे दिन से फिर दूकानें बसने लगती हैं।
देश का जो मध्य वर्ग और उच्च वर्ग है, वह खुद खून पसीना नहीं बहाता। वह बैठ कर खाता है। उल्टे-सीधे काम कर अपना उल्लू सीधा करता है। सरकार के लिए भक्ति गीत लिखता है और कमेरा वर्ग से नफ़रत करता है। जब आप ऐसी नीतियां बनायेंगे, जो गांव- देहात के संसाधनों को लूट कर शहर में जमा होगा। गांव देहात निछट्ट उजाड़ होगा तो जीने के संसाधनों की तलाश में लोग शहर आते हैं। जहां मैं रहता हूं। उसके थोड़ी ही दूर पर जीरो माइल है। सड़क किनारे बंसखोरों ने चार पांच झुग्गियां बना ली हैं। वहां न पानी का इंतजाम है, न ट्वायलेट का- तब भी बाल बच्चों के साथ रहते हैं। धूलों से झुग्गियां पट जाती हैं। तमाम परेशानियां हैं, तब भी वे परेशान नहीं दिखते।
बच्चे हाथ में रोटी या कटोरे में भात लिए खाते रहते हैं। उन्हें शायद ही पता हो कि देश में लोकतंत्र है और संविधान में उसके लिए भी प्रावधान है। दुष्यंत ने लिखा है -’ कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए, कहां चिराग़ मयस्सर नहीं शहर भर के लिए।’ संविधान में एक बड़ी गड़बड़ी है। वह आर्थिक गैर बराबरी के बारे में मौन है। नतीजा है कि कोविड में लोगों की हालत खराब थी तो एक पूंजीपति एक दिन में करोड़ों कमा रहा था। कानून में यह प्रावधान होना चाहिए था कि एक नागरिक के पास ज्यादा से ज्यादा कितनी संपत्ति होनी चाहिए। जीडीपी के कितने प्रतिशत! मनमानापन का ही कुल नतीजा है कि किसी के पास अरबों है और किसी पर बुलडोजर तना है। ऐसी भीषण आर्थिक गैर बराबरी में भला कोई देश शांत रहेगा!
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अंबेडकर पार्क लखनऊ में कितनी झुग्गियां थी सब की सब एका एक कैसे गायब हो गई थी