— जयराम शुक्ल —
अब यह बताने की जरूरत नहीं कि मासूमों के साथ बलात्कार फिर हत्या जैसे अपराधों का सैलाब क्यों तेजी से उफनने लगा है। जवाब है- लोकलाज की वर्जनाएं टूट गईं, सबकुछ खुल्लमखुल्ला हो गया।
पहले कैसेट्स में ब्लू फिल्में आईं, फिर ये कम्प्यूटर में घुसीं और अब इनकी जगह जेब के मोबाइल फोन में बन गई। एन्ड्रॉयड एक तरह से पोर्न की ट्रैजरी बन चुका है। और सरकारें हैं कि इन्हें उदारतापूर्वक बच्चों के बीच बाँटने की योजनाओं पर काम कर रही हैं।
यह ठीक है कि एन्ड्रायड फोन और इंटरनेट ने दुनिया को मुट्ठी में ला दिया है लेकिन उसके साथ कई घातक बातें भी हैं..जिसमें पोर्न का खजाना और पबजी और ब्लूह्वेल जैसे खेल भी बच्चों को साइकोटिक और हिंसक बनाने में उत्प्रेरक का काम करते हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि कुल नेट सामग्री में तीस फीसद पोर्न भरा है। है। दो साल पहले दिल्ली के मैक्स हास्पिटल ने स्कूली छात्रों के बीच सर्वे के बाद पाया कि 47 फीसद छात्र रोजाना पोर्न की बात करते हैं।
नेट के सामान्य उपयोगकर्ता को प्रतिदिन कई बार पोर्न सामग्री से वास्ता पड़ता है। वजह प्रायः नब्बे फीसद समाचार व अन्य जानकारियों की साइट और अब तो फेसबुक में भी पोर्नसाईट्स से लिंक रहती हैं या बीच में नंगे-अश्लील विज्ञापन घुसे रहते हैं।
कई बहुप्रतिष्ठित अखबारों पर यह आरोप लग चुका है कि वे यूजर्स, लाइक्स, हिट्स बढ़ाने के लिए पोर्न सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि यूजर्स की संख्या के आधार पर ही विज्ञापन मिलते हैं।
यानी कि वर्जनाओं को वैसे ही फूटने का मौका मिला जैसे कि बाढ़ में बाँध टूटते हैं। सारी नैतिकता इसके सैलाब में बह गई।
कमाल की बात यह कि सांस्कृतिक झंडाबरदारी करनेवाली सरकार ने इसे रोकने की दिशा में कोई दृढ़ता नहीं दिखाई है।
कुछ वर्ष पहले इंदौर हाईकोर्ट के वकील कमलेश वासवानी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 850 पोर्नसाइट्स पर प्रतिबंध लगाने को कहा। सरकार ने दृढ़ता के साथ कार्रवाई शुरू तो की लेकिन जल्दी ही कदम पीछे खींच लिये।
कथित प्रगतिशीलों और आधुनिकतावादियों ने इसे निजत्व पर हमला बताया और कहा कि इससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है।
नेशनल क्राइम ब्यूरो के भयावह आंकड़ों के बाद भी सरकार ने आसानी से कदम पीछे खींच लिये। जनहित के अपने निर्णय पर वैसी नहीं डटी जैसे कि जीएसटी-नोटबंदी में डट गई थी।
तत्कालीन एटार्नी जनरल ने चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष कहा- पोर्नसाइट्स पर प्रतिबंध लगाने को लेकर समाज और संसद में व्यापक बहस की जरूरत है। सरकार की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि जब प्रधानमंत्री डिजटलाजेशन की बात कर रहे हैं तब पोर्न को बैन करना संभव नहीं है। यह बात रेकॉर्ड में दर्ज है।
अभी सिर्फ चाइल्ड पोर्न पर पाबंदी है लेकिन चाइल्ड पोर्न न देख पाएं, ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं। प्रायः समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि यौनिक अपराधों यहां तक कि अपहरण व हत्याओं की बढ़ोतरी के पीछे पोर्नसाइट्स हैं जो हर उम्र के लिए खुली हैं।
गूगल ट्रेन्ड के मुताबिक पोर्न शब्द की खोज करनेवाले 10 अव्वल देशों में एक भारत भी है। नैतिक श्रेष्ठता का दम भरनेवाली सरकार को चाहिए कि इस मामले में चीन से सीख ले।
एन्ड्रॉयड क्रांति के तत्काल बाद ही चीन ने अश्लीलता के खिलाफ अभियान चलाते हुए 1,80,000 ऑनलाइन प्रकाशन रोके। पोर्नसाइट्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाइयां कीं। कैमरून जब इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री थे तब माइक्रोसॉफ्ट और गूगल को धमकाया था कि यदि पोर्नसाइट्स पर लगाम नहीं लगाई तो उनका डेरा-डकूला देश से बाहर फेक देंगे।
दुनिया का हर समझदार देश इस गंदी सड़ांध के खिलाफ है, एक सिवाय भारत के। तमाम घटनाओं के बाद भी कोई सबक नहीं ले रहा। आधुनिकता और प्रगतिवादी सिर्फ पोर्नसाइट्स के मामले में ही सुने जाते हैं। अन्य मामलों में तो ये भौंकते ही रह जाते हैं सरकार को जो करना होता है कर लेती है।
कौन पता लगाए इसके पीछे क्या रहस्य है? बहरहाल, समाज और नई पीढ़ी को पतनशीलता से बचाना है तो बात-बात पर सनातनी संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रवाद की दुहाई देनेवाली सरकार को संसद में कानून बनाकर दृढ़ता के साथ ही पूर्ण पोर्नबंदी करनी होगी।