23 जुलाई। आवश्यक प्रतिरक्षा सेवा अध्यादेश के खिलाफ आज देशभर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया है।
इस अध्यादेश के जरिए आर्डनेंस फैक्टरियों में हड़ताल को गैरकानूनी ठहरा दिया गया है। इस अध्यादेश की जरूरत सरकार ने क्यों महसूस की? इसलिए कि वह 41 आर्डनेंस फैक्टरियों का निजीकरण करना चाहती है।
सरकार जानती थी कि ऐसे किसी भी कदम का श्रमिक संगठन कड़ा विरोध करेंगे, इसलिए आयुध फैक्टरियों में हड़ताल को गैरकानूनी ठहराने वाला अध्यादेश पिछले महीने के आखिर में जारी कर दिया गया। इसमेें न सिर्फ हड़ताल बल्कि सांकेतिक हड़ताल, धरना देने, धीमे काम करने, सामूहिक रूप से आकस्मिक अवकाश लेने को भी हड़ताल की परिभाषा में ला दिया गया है। साफ है आयुध फैक्टरियों के निगमीकरण के विरोध को कुचलना ही इस अध्यादेश का मकसद है। लेकिन श्रमिक संगठनों ने भी कमर कस ली है और वे इस अध्यादेश का तथा आर्डनेंस फैक्टरियों के निगमीकरण का लगातार विरोध कर रहे हैं।
यह अध्यादेश सरकार और भारतीय जनता पार्टी के रवैए पर कई सवाल खड़े करता है। रक्षा उत्पादन से जुड़े निजीकरण के किसी भी प्रस्ताव पर, भाजपा विपक्ष में रहते हुए आसमान सिर पर उठा लेती थी और उसे राष्ट्रीय सुरक्षा को भयानक खतरा नजर आता था। लेकिन अब उसके मुंह पर ताला लग गया है।
आवश्यक प्रतिरक्षा सेवा अध्यादेश को वापस लेने की मांग करते हुए हिंद मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू ने 9 जुलाई को रक्षामंत्री को पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने रक्षामंत्री को याद दिलाया था कि उनकी सरकार संसद में पहले कई बार यह आश्वासन दे चुकी है कि आयुध फैक्टरियों का निजीकरण नहीं जाएगा। फिर अब वह क्यों आयुध फैक्टरियों के निजीकरण पर आमादा है और इसके लिए अलोकतांत्रिक तरीका अख्तियार कर रही है?
अध्यादेश के जरिए आयुध फैक्टरियों में हड़ताल को गैरकानूनी ठहराने और हड़ताल की परिभाषा बढ़ाने के अलावा पुलिस अफसर को यह अधिकार दिया गया है कि वह हड़ताली कामगार या हड़ताल के लिए उकसाने वाले व्यक्ति के खिलाफ जो चाहे सो कार्रवाई कर सकता है। पुलिस अफसर को इतना अधिकार किसी लोकतांत्रिक देश के किस कानून में होगा?
बहरहाल, आज देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शन से जाहिर है कि आयुध फैक्टरियों का निजीकरण करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। डराने के लिए लाए गए अध्यादेश के बावजूद श्रमिक संगठनों ने संघर्ष का बिगुल बजा दिया है।