
— डॉ सुरेश खैरनार —
बगल के देश अफगानिस्तान में तालिबानी दोबारा सत्ता में आ चुके हैं। और अपने बदले-बदले जनाब का दावा करने के बावजूद, वे अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं ! ऐसा भारत का मुख्य धारा का मीडिया लगातार बताने की कोशिश कर रहा है। लेकिन हमारे अपने ही देश में किसी रिक्शाचालक, या चूड़ियां बेचनेवाले से लेकर एक डोसा बनानेवाले के ऊपर हमले हो रहे हैं ! इसके पहले गाय के नाम पर सौ से भी ज्यादा लोगों की मॉब लिंचिग करके हत्या करनेवाले लोगों को क्या कहेंगे? एक हिंदी फिल्म का डायलॉग याद आ रहा है कि शीशे के घर में रहनेवाले दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते!
क्या भारत का मुख्य धारा का मीडिया पागल हो गया है ? कि उसे अपने खुद के घर में क्या हो रहा है यह नहीं दिखाई देता है? और दूसरे देशों की, वह भी मुख्यतः मुस्लिम देशों घटनाओं को खूब बढ़ा-चढ़ाकर और मसाले लगाकर दिखाने के लिए एक दूसरे के साथ होड़ लगी हुई है!
लेकिन कानपुर, इंदौर और अब मेरठ में, तीनों जगह रोज कमाकर खानेवाले लोग है! और तीनों मुस्लिम समुदाय के होने के कारण,उन्हें जबरदस्ती जय श्रीराम, वंदे मातरम, भारत माता की जय जैसे नारे लगाने के लिए मारा-पीटा जा रहा है, उनकी दाढ़ियां नोची जा रही हैं! और अब डोसा बनानेवाले की दुकान का नाम हिंदू देवता के नाम पर क्यों हैं, यह कहकर उसकी दुकान का साइनबोर्ड तोड़ दिया और उसके साथ मारपीट की !
देखिए इनका बावलापन, अन्य जगहों पर तो जोर-जबरदस्ती से जय श्रीराम कहलवाने के लिए, और एक जगह, भारत में रहना है तो हिंदू धर्म के देवों के नाम लेने के लिए मार रहे हैं ! डोसा बनानेवाले की दुकान का नाम हिंदू देवता के नाम पर क्यों है, यह कहकर उसकी दुकान का बोर्ड तोड़ दिया और उसके साथ मारपीट की! तो मुसलमान होने के बावजूद वह हिंदू देवता के नाम पर दुकान चला रहा है ! वह भी डोसा जैसा वेज डिश! एक मिनट के लिए ठहरकर सोचिए, अगर उसने बिरियानी या मुर्गा, मटन बनाकर बेचा होता तो?
यह जो भी कुछ चल रहा है इसमें स्थानीय पुलिस-प्रशासन की भूमिका संदेहास्पद दिखती है! क्योंकि कानपुर की घटना में पुलिस के सामने उस रिक्शाचालक को लोग मारे जा रहे थे- उस रिक्शाचालक की छह-सात साल की बच्ची बिलख-बिलख कर रोते हुए कह रही थी, मेरे अब्बू को मत मारो लेकिन लोगों का लात मारना बदस्तूर जारी था!
इंदौर की घटना को लें। भारत में चूड़ियां बनाने का काम सदियों से मुसलमानों द्वारा हो रहा है। और फिर एक आदमी के चूड़ी बेचने में एतराज की क्या वजह है? भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति में ऐसे कितने काम हैं जो मुसलमानों द्वारा किए जाते हैं और हिंदुओं के मंदिर के पूजा के सामान बेचनेवाले अयोध्या में ज्यादातर मुसलमान ही हैं ! वही बात बनारस, मथुरा, वृंदावन और कई-कई मंदिरों में सदियों से चल रही है। तो क्या अब सब कुछ बदल डालोगे?
डोसा बनानेवाले की दुकान का नाम हिंदू देवता के नाम पर है! तो फिर मुसलामानों को पकड़कर जय श्रीराम का और अन्य देवों के नाम लेने के लिए जोर-जबरदस्ती क्यों? इन परस्पर विरोधी हरकतों को देखकर तो एक ही बात दिखती है कि कुछ भी हो, मुसलमान को अपमानित करने के बहाने चाहिए !
फिर वर्तमान समय में अफगानिस्तान में जो कुछ घटित हो रहा है उस पर भारत को आलोचना करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है!
जबकि आप खुद भारत में वही धार्मिक फूहड़पन की प्रैक्टिस करते हो तो किसी और धार्मिक फूहड़पन या कट्टरपंथी तत्वों को लेकर कुछ भी बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है!
असल में 1925 के दशहरे के दिन नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम के एक उग्र हिंदू संगठन की शुरुआत हुई! और उसने न भारत की आजादी के आंदोलन में भाग लिया है और ना ही साढ़े छह हजार से भी ज्यादा जातियों में बंटे हुए हिंदू समाज में छुआ-छूत और ऊंच-नीच की घृणित परंपरा के खिलाफ कभी कोई काम किया है ! उलटे, हम शाखा में आनेवाले स्वयंसेवकों की जाति नहीं पूछते जैसे बेमानी तर्क देते हैं।
डॉ बाबासाहब की भाषा में हिंदू धर्म चार मंजिला इमारत है लेकिन इसमें सीढ़ियां नहीं हैं ! इसलिए ऊपर का ऊपर और नीचे का नीचे! और बीचवाले बीच में ! जिनमें किसी भी तरह का आवागमन या आदान-प्रदान नहीं है ! और हजारों सालों से यही स्थिति है। और संघ की स्थापना इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए की गयी है!
सन 2025 में संघ की स्थापना को सौ साल हो जाएंगे! और इन सौ सालों में सामाजिक आदान-प्रदान के लिए,
समता के लिए एक भी कार्यक्रम करने का कोई उदाहरण ढूंढ़े भी नहीं मिलेगा !
उलटे आग्रह यह कि भारत के संविधान की जगह पर मनुस्मृति होनी चाहिए! 5 अगस्त 2020 के दिन, अयोध्या के मंदिर के नींव रखने की पूजा के समय वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मनुस्मृति के ब्राह्मण श्लोक का उच्चारण करके समस्त विश्व पर ब्राह्मण ही राज कर सकता है यह दोहराया !
और द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ गुरुजी ने संस्थापक सरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की 1940 में मृत्यु होने के बाद, अपनी मृत्यु पर्यंत तीस साल से भी ज्यादा समय, संघ की स्थापना के बाद ,विस्तार और वैचारिक मार्गदर्शन किया ! जिसमें उग्र हिंदुत्व के लिए ‘बंच ऑफ थाट’ और वी या समग्र गोलवलकर (बारह खंडों में) जैसी किताबों में लिखा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक समुदाय की सदाशयता के आधार पर रहना होगा!
और गोहत्या बंदी से लेकर मस्जिदों को गिराकर मंदिर खड़े करना! और नागरिकता संशोधन कानून से लेकर कश्मीर के 370 को खत्म करने की तो सिर्फ शुरुआत की है ! और आज दोसा बनानेवाले की दुकान से लेकर कानपुर, इंदौर और भारत के किसी भी हिस्से में मुसलमानों को अपमानित करने के कार्यक्रम कुछ चंद सिरफिरे या गुंडे कर रहे ऐसी बात नहीं है ! यह एक योजना के तहत सात साल से भी अधिक समय से जारी है ! कहीं गाय के नाम पर तो कहीं अब हाथ से काम करके,पेट चलाने की कोशिश करनेवाले लोगों को दहशत का माहौल बनाकर, भयभीत मनोदशा (फीअर सायकी) में डालने का सिलसिला लगातार जारी है और जारी रहेगा! पुलिस-प्रशासन के रवैये से साफ दिखाई देता है, कि उन्हें कुछ विशेष अलिखित आदेश मिले होंगे, कि ऐसी किसी भी घटना पर कुछ नहीं करना!
लेकिन संघ परिवार को पता होना चाहिए कि भारत के मुसलमानों की जनसंख्या विश्व के किसी भी मुस्लिम देश की तुलना में दो नंबर की है ! और अंदाज से 30-35 करोड़ की आबादी है! जो इंग्लैंड, अमरीका, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों से भी ज्यादा है!
और यह बात मैं संघ की शाखा में 1965-67 के दौरान से ही कहता आ रहा हूँ ! कि अपने को मुसलमान अच्छे लगें या नहीं लेकिन भारत में रह रहे मुसलमानों के साथ जीने का तरीका ढूंढ़ने की जरूरत है! और वह तरीका आँखें दिखाकर नहीं ! प्यार मुहब्बत से ! और उनके लिए भी संघ के दरवाजे खोलकर उन्हें अंदर लेकर ही सहजीवन से आगे बढ़ने की जरूरत है ! और मेरी इसी बात पर मुझे शिंदखेडा, जिला धुलिया,महाराष्ट्र की शाखा से निकाल बाहर किया गया! दशहरे के दिन 1965 -66 की घटना है !
संघ को रोकने के लिए बनाया 4 जून ,1941 को बना था राष्ट्र सेवा दल। यानी राष्ट्र सेवा दल को अस्सी साल हो गए। विगत 54-55 सालों से पहले शाखा नायक बनकर फिर संघटक, और दो साल पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष
के नाते देश के लगभग सभी हिस्सों में जाकर संघ के विकल्प के रूप में, राष्ट्र सेवा दल के प्रचार-प्रसार के लिए दस लाख से भी ज्यादा किलोमीटर का सफर किया है ! और शायद ही भारत के किसी प्रदेश को छोड़ा होगा! कर्नाटक, बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे बडे़ प्रदेशों में छह-सात बार और कश्मीर, उत्तरपूर्व, दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, आंध्र-तेलंगाना, ओड़िशा के लिए एक-एक बार, वहीं राजस्थान, पंजाब, गुजरात और सबसे ज्यादा समय उत्तराखंड में दिया है! क्योंकि वह कहने के लिए देवभूमि है लेकिन घोर जातिवादी, और महिलाओं की खरीद-फरोख्त आजादी के पचहत्तर साल बाद भी हो रही है और बच्चियों को बेचने की प्रथा बदस्तूर जारी है!
कौन-सा नैतिक अधिकार है हमें अफगानिस्तान के तालिबान की आलोचना करने का ? देवभूमि में जन्म पायी लड़की रजस्वला होती है तो तुरंत बेचने में लग जानेवालों लोगों को, अफगानिस्तान की औरतों पर अत्याचार पर हाय हाय करते देखकर लगता है कि भारत जैसा पाखंडी और ढोंगी देश दुनिया में ढूंढ़े नहीं मिलेगा। आज भी दलित अगर शादी में बैंड बाजा लगाकर बारात निकालते हैं तो सवर्ण हमला करते हैं, नये कपड़े या नयी चप्पल, नये जूते पहनकर गाँव में चला तो मारपीट आम बात है ! कोई दलित मूंछ नहीं रखेगा और रखी तो मूंछ ऊपर की तरफ मुड़ी हुई नहीं होगी नीचे झुकी हुई होनी चाहिए! और बहू-बेटियों को उठाने की बात गाय, बकरी से ज्यादा आसान है! और लक्ष्मण बाथे जैसी घटनाओं को क्या कहेंगे?
सिर्फ आजादी के बाद भारत में दलितों और महिलाओं को जलाकर मारने के आंकड़े इकट्ठा किये जाएं तो विश्व के किसी भी देश से ज्यादा बर्बरता भारत में दिखाई देगी ! और बच्चियों को गर्भ के अंदर ही मार डालने की परंपरा वाले देश के लोग दूसरे देश की औरतों पर हो रहे अत्याचार पर फब्तियां कस रहे हैं। इतना दोमुंहेपन का उदाहरण और कहां मिलेगा?
गाय को लेकर माॅब लिंचिग करनेवाले औरतों की कितनी इज्जत करते हैं ? उलटे उनसे बलात्कार करके उन्हें जिंदा जलानेवाले जल्लादों, और भगवान के घरों में तक नाबालिग लड़कियों का बलात्कार करने के बाद तिरंगा लेकर जुलूस निकालते हुए कौन-सी इंसानियत का परिचय दिया है? चले तालिबानियों की आलोचना करने?
आज भी कई मंदिरों में और बहुत से घरों में दलितों का प्रवेश वर्जित है। और गलती से दलित-सवर्ण की शादी हो गयी तो फिर तालिबान से भी बुरा सलूक होगा, दोनों को विवस्त्र करके जुलूस निकालते हुए उन्हें जिस बर्बरता से पीटते हैं! और वीडियो बनाकर उस बर्बरता की शेखी बघारते हैं ! कौन-से भारत की बात कर रहे हैं ? और चले तालिबान की आलोचना करने!
हमारे देश के चार बेहतरीन लोगों को दिनदहाड़े मारने के बावजूद हत्यारे आराम से घूम रहे हैं ! डॉ नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को 20 अगस्त को आठ साल हो गये। और प्रोफेसर कलबुर्गी की 30 अगस्त को, और उसी तरह कामरेड गोविंद पानसरे और हमारी मित्र गौरी लंकेश की हत्या करनेवाले लोगों को मै शुरू से ही हिंदू तालिबानी बोल-लिख रहा हूँ !
6 दिसंबर 1992 के दिन अयोध्या में पांच सौ साल पुरानी मस्जिद को लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठा करके धराशायी करना! और बामियान की बुद्ध मूर्तियों को बम से उड़ाना, क्या फर्क है? और हमारे देश की सेकुलर अदालत मस्जिद गिराकर संगीन अपराध किया बोलकर मंदिर बनाने की इजाजत देती है ! और मस्जिद को गिरने नहीं दूंगा ऐसा लिखित हलफनामा देनेवाले मुख्यमंत्री को भारत का सबसे बड़ा हिंदू बोलनेवाले लोगों को क्या तालिबान के ऊपर कुछ भी बोलने का नैतिक अधिकार है?
क्या इस तरह के परस्पर विरोधी आदेश देनेवाली कोर्ट को सही मायनों मे कोर्ट कहा जाएगा? फिर भारत के संविधान का क्या? मैंने इस तरह के आदेश के बाद दसों बार कहा है कि यह भारत के न्यायिक इतिहास का सबसे हैरान करनेवाला और हमारे देश के सेकुलर होने पर सवाल खड़ा करनेवाला आदेश दिया है और उस आदमी को तुरंत बाद ही राज्यसभा में मनोनीत करना, क्या संदेश देना चाहते हो? और तिस पर उसी के मातहत काम करनेवाली महिला द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाने के बाद यह खुद न्याय देता है ! चले तालिबानियों की आलोचना करने!
आज भारत का हिंदू तालिबानीकरण होने से बचाने के बाद ही अफगानिस्तान के तालिबान पर बोलने का नैतिक अधिकार होगा ! और वह अधिकार मुझे है, मैंने सभी तरह के तालिबानियों के खिलाफ उनके क्षेत्र में जाकर बोलने की कोशिश की है! और आज भारत और अफगानिस्तान के तालिबान को लेकर समान रूप से अपनी बात रखने का नैतिक अधिकार मेरा है!
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