— रवीन्द्र गोयल —
गेहूं, सरसों, चना, मसूर, आलू, प्याज और अन्य रबी फसलों की बुवाई शुरू होनेवाली है। सितंबर के बाद से हुई अतिरिक्त बारिश के कारण मिट्टी की नमी की स्थिति भी सबसे अनुकूल है। किसानों को उत्साहित होना चाहिए था लेकिन किसान परेशान हैं क्योंकि उनको जरूरत भर खाद उपलब्ध नहीं हो पा रही है। आमतौर पर किसान डायमोनियम फॉस्फेट (DAP), मुरियेट ऑफ पोटाश (MOP) या पोटैशियम क्लोराइड और यूरिया खाद के रूप में इस्तेमाल करता है। रबी की सबसे महत्त्वपूर्ण फसल गेहूं की खेती के लिए किसान को प्रति एकड़ 110 किलो यूरिया, 50 किलो डाइमोनियम फॉस्फेट और 20 किलो मुरियेट ऑफ पोटाश चाहिए।
सबसे पहले किसान डाइमोनियम फॉस्फेट खाद खेत को बुवाई से पहले तैयार करने के लिए इस्तेमाल करता है। नाइट्रोजन और फास्फोरस युक्त डाइमोनियम फॉस्फेट फसलों के लिए प्राथमिक पोषक तत्त्व हैं। बाद में नवम्बर में किसानों को बुवाई के 25/26 दिन बाद यूरिया भी चाहिए।
लेकिन बाजार में इन सबकी भारी कमी है। स्वाभाविक तौर पर खेती पर निर्भर किसान परेशान है, बदहवास है। बाजार में न डाइमोनियम फॉस्फेट है और न यूरिया ही आसानी से निर्धारित दामों पर उपलब्ध है। पंजाब के किसान कह रहे हैं कि डाइमोनियम की कमी के कारण उर्वरक की कालाबाजारी हो रही है। किसान इस खाद को पड़ोसी हरियाणा से महंगे दामों पर लाने को मजबूर हैं।
डाइमोनियम फॉस्फेट के एक बैग की कीमत 1,200 रुपये है जो 1,400 रुपये में बिक रहा है। इतना ही नहीं, किसानों को डाइमोनियम फॉस्फेट के साथ अन्य सामान भी खरीदने को मजबूर किया जा रहा है। पंजाब के एक किसान ने बहुत दुखी होकर इंडियन एक्सप्रेस (अखबार) को बताया कि आमतौर पर किसान जो धान बेचने जाते हैं (वर्तमान में जिसकी कटाई की जा रही है), डीजल बचाने के लिए उसी ट्रैक्टर ट्रॉली पर अपनी अगली गेहूं की फसल के लिए डाइमोनियम फॉस्फेट वापस लाते हैं। लेकिन इस बार वे सभी खाली लौट रहे हैं। राजस्थान के भरतपुर और अलवर के किसान राज्य में यूरिया उर्वरक की भारी कमी से जूझ रहे हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि सरकार मणिपुर में किसानों को जरूरत भर यूरिया उपलब्ध न करा के उसको पिछले चार सालों से अफीम की खेती करनेवालों को दे रही है। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि देश के कोने-कोने से किसान आक्रोश की खबरें मिल रही हैं। मध्यप्रदेश में कृषिमंत्री के चुनाव क्षेत्र समेत कई जगहों से सीधे ट्रक से ही किसानों द्वारा खाद के बोरे लूटने की खबर आ रही है। श्योपुर (मध्यप्रदेश) में पुलिस संरक्षण में किसानों को खाद उपलब्ध करायी जा रही है। ऐसा ही देश के अन्य भागों में भी हो रहा है।
वर्तमान खाद संकट कोई अकस्मात घटी घटना नहीं है। महीनों से पता था कि देश में खाद की कमी है। इस साल सितंबर में सब्जी उत्पादकों ने भी डाइमोनियम फॉस्फेट उर्वरक की कमी की शिकायत की थी।
तब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है और कौन है इसका जिम्मेवार? अगर हम विभिन्न खादों के स्टॉक की स्थिति देखते हैं तो पाते हैं कि पिछले सालों के मुकाबले इस साल खाद का स्टॉक काफी कम है। डाइमोनियम फॉस्फेट और मुरियेट ऑफ पोटाश का स्टॉक तो पिछले साल के मुकाबले आधा है (देखें खाद के स्टॉक सम्बन्धी तालिका लेख के अंत में)। ऐसा इसलिए है कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में खाद की कीमत बढ़ी हुई है और सरकारी मदद के अभाव में व्यापारियों ने महंगी खाद आयात नहीं की, क्योंकि उसको देश में ऊंची कीमत पर बेचना इतना आसान न होता।
और यह जब सभी जान रहे हैं तो यह मानने का कोई आधार नहीं है कि सरकार को या उसके अफसरों को यह नहीं पता होगा कि 2020 से दुनिया में सभी प्रकार की खाद के दाम बढ़ने लगे थे और यह महंगाई 2022 तक तो कम से कम रहेगी ही, क्योंकि खाद का पेट्रोल आधारित कच्चा माल महंगा हुआ है। होना तो यह चाहिए था कि सरकार समय रहते जागती लेकिन निकम्मेपन की वजह से या बदनीयती के चलते सरकार को इस साल 12 अक्टूबर को ही होश आया कि किसानों को सही दामों में खाद उपलब्ध कराने के लिए ज्यादा सबसिडी देनी होगी, और उसने सबसिडी को बढ़ाने का फैसला लिया। अब व्यापारी लोग खाद आयात करेंगे।
यदि आयातक बहुत मुस्तैदी भी दिखाएंगे तो भी किसानों को खाद मिलने में देरी होगी। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि शायद नवम्बर के शुरुआती दिनों में किसानों को खाद मिल पाए। लेकिन ताजा खबरों से पता चलता है कि चीन ने वहां से खाद के निर्यात में कुछ रोक-टोक चालू कर दी है, और चूँकि भारत चीन से बड़ी मात्रा में खाद खरीदता है इसलिए संभव है किसानों को नवम्बर के शुरुआती दिनों में खाद मिलने की उम्मीद पूरी न हो पाए।
लेकिन यह तय है कि सरकारी निकम्मेपन की वजह से देरी से खाद मिलने के घाटे की भरपाई किसानों को खुद ही करनी होगी।