टीवी पर भेड़िए

0
पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
कुबेरदत्त (1 जनवरी 1949 – 2 अक्टूबर 2011)

कुबेरदत्त

 

भेड़िए
आते थे पहले जंगल से
बस्तियों में होता था रक्तस्राव
फिर वे
आते रहे सपनों में
सपने खण्ड-खण्ड होते रहे।

अब वे टीवी पर आते हैं
बजाते हैं गिटार
पहनते हैं जीन
गाते-चीख़ते हैं
और अक्सर अँग्रेज़ी बोलते हैं

उन्हें देख
बच्चे सहम जाते हैं
पालतू कुत्ते, बिल्ली, खरगोश हो जाते हैं जड़।

भेड़िए कभी-कभी
भाषण देते हैं
भाषण में होता है नया ग्लोब
भेड़िए ग्लोब से खेलते हैं
भेड़िए रचते हैं ग्लोब पर नये देश
भेड़िए
कई प्राचीन देशों को चबा जाते हैं।
लटकती है
पैट्रोल खदानों की कुंजी
दूसरे हाथ में सूखी रोटी

दर्शक
तय नहीं कर पाते
नमस्ते किसे दें
पैट्रोल को
या रोटी को।
टीवी की ख़बरें भी
गढ़ते हैं भेड़िए
पढ़ते हैं उन्हें ख़ुद ही।

रक्तस्राव करती
पिक्चर-ट्यूब में
नहीं है बिजली का करण्ट
दर्शक का लहू है।


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment