स्वप्निल श्रीवास्तव की तीन कविताएँ

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फोटो : कौशलेश पांडेय
स्वप्निल श्रीवास्तव

1. किसान

 

जिस किसान की फसल बरबाद हो गयी हो

उस किसान का रोना आपने देखा है

क्या आपने देखी है उस आततायी की हँसी

जो दमन की कार्यवाही के बाद

अपनी जीत का जश्न मना रहा है?

 

क्या आपने उन कातिल विदूषकों को देखा है

जो हँसने के लिए हमें उत्तेजित करते रहते हैं

 

क्या आपने देखा है वह समय

जिसमें झूठ बोलनेवालों की ताकत

सच बोलनेवाले से ज्यादा बढ़ गयी है

 

क्या आपने इन प्रहसनों के नायकों से

परिचित हैं जो अपने मनोरंजन के लिए

हमें दर्शक बनाते जा रहे हैं

 

ये हमारे समय के प्रश्नवाचक वाक्य हैं

जिनके जवाब भविष्य में छिपे हुए हैं।

 

2. किसान पिता

 

मेरे पिता किसान थे

जब वे कंधे पर हल लिये

चलते थे तो मुझे उन सैनिकों की

याद आती थी जो अपने कंधे पर

इसी शान से बंदूक रखे हुए सीमांत पर

कवायद करते हैं

 

मैं गौरव से भर जाता था

पिता अनाज की रखवाली करते थे

और सैनिक सीमा की रक्षा के लिए

तैनात होते थे

 

पिता और सैनिक दोनों एक साथ

याद आते थे

दोनों जमीनों के लिए जान देने को

तत्पर थे

 

पिता कहते थे कि सब कुछ चला जाय

लेकिन जमीन को हाथ से न जाने देना

 

यह जमीन तुम्हारी जन्मभूमि है

जिसकी धूल से तुम पैदा हुए हो

 

पिता सूत्रों में बात करते हुए कहते थे

जो अपनी जमीन को नहीं बचा सकता

उसे जमीन पर रहने का कोई हक नहीं है

 

जमीन पर रहकर आसमान के सपने

देखे जा सकते हैं

 

यही बात दिल्ली की सरहद पर आंदोलन

करते हुए किसान याद दिलाते हैं

 

3. इतिहास में दर्ज हो

 

इतिहास में दर्ज हो कि नमकहरामों ने

नमक की कीमत नहीं अदा की है

उलटे नमकहलालों का मजाक उड़ाते रहे

 

वे रसूखदारों के पक्ष में लड़ते रहे

जो उनसे असहमत हुआ उसे देशद्रोही

कह कर उसकी पीठ पर मुकदमे लाद

दिये गये

इतिहास में दर्ज हो कि जो सत्ता के समर्थक हैं

उन्हें सत्ता का दलाल और जनता का दुश्मन

कहा जाय

 

नराधमो! उनके अनाज के जरिये तुम्हारी

धमनियों में दौड़ रहा है रक्त

और तुम उसे शर्मसार कर रहे हो

 

जब तुम्हें भूख लगती है तो क्या

डॉलर या सोने-चाँदी से अपनी क्षुधा

शांत करते हो?

 

नहीं! उनके अनाज से तुम्हें जीवनदान

मिलता है

 

हे बिके हुए लोगो – अपनी आत्मा की

आवाज सुनो – अन्यथा यह धरती नहीं

सुनेगी तुम्हारी आवाज

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