भारतीय राजनीति के दधीचि थे सुरेन्द्र मोहन : पहली किस्त

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— डॉ सुनीलम —

(डॉ सुनीलम ने 15 नवंबर 2012 को भोपाल सेंट्रल जेल में यह लेख लिखा था)

माजवादी चिंतक पूर्व सांसद  सुरेंद्र मोहन जी से 1984 में दिल्ली पहुँचने के बाद लगातार मुलाकात होती थी। जनता दल  में जनता पार्टी की तरह ही वे मुख्य भूमिका में थे। पार्टी की बैठकों और सम्मेलनों में प्रस्ताव बनाने की जिम्मेदारी भी वे ही निभाते थे। मुझे भी पढ़ने-लिखने का शौक था इस कारण सुरेंद्र मोहन जी से नजदीकी बन गयी। नियमित तौर पर उनसे मुलाकात होती थी, कार्यालय में भी और  घर पर भी। सुरेंद्र मोहन जी की पत्नी मंजू जी के साथ भी आत्मीय रिश्ता था। जो भी घर जाता वे सभी का खयाल रखतीं। सभी कार्यकर्ताओं के प्रति मंजू जी का सदा स्नेहपूर्ण  भाव और व्यवहार देखा। अंतिम वर्षों में  मंजू जी सदा सुरेंद्र मोहन जी  के साथ रहती थीं। समय से दवाई लें, विश्राम करें, इसका विशेष ध्यान रखती थीं।

समाजवादी आंदोलन में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के आधार पर विभाजन जमीनी स्तर तक रहा। सुरेंद्र मोहन जी पीएसपी से थे। मुझे जॉर्ज फर्नांडिस जी और मधु लिमये जी के साथ जुड़ा होने  के कारण एसएसपी (संसोपा) खेमे का माना जाता था। हालाँकि कभी भी मैंने इस तरह का पूर्वाग्रह अपने पूरे राजनीतिक जीवन में नहीं रखा। लेकिन मैंने देखा, जहाँ कहीं भी पार्टी के पदाधिकारी बनाये जाते, स्पष्ट तौर पर राज्यवार सुरेंद्र मोहन जी की सूची में सभी समाजवादी कार्यकर्ता प्राथमिकता पाते थे। यूपी में वे विशेष रुचि लिया करते थे। सोशलिस्ट इंटरनेशनल से उनका खास रिश्ता था। हम कई बार आईयूएसवाई और एसआई की बैठकों में साथ गये। वे लगातार अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को फॉलो  किया करते थे। युवा जनता में भी काम करते हुए उन्होंने एक बार कहा था आप युवा जनता वाले महिलाओं को बढ़ावा नहीं देते। कहीं भी आपकी कमेटी में लड़कियाँ नहीं होतीं। तभी हमने राष्ट्र सेवा दल से एक महिला साथी को  युवा जनता की ओर से सहयोग किया। सुरेंद्र मोहन जी के कहने पर  उन्हें अपनी तरह इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सोशलिस्ट में उपाध्यक्ष बनवाने में भी सहयोग किया।

सुरेंद्र मोहन जी का नजदीकी संबंध मधु दंडवते जी और बापू कालदाते जी से था। मैं भी दोनों से उनके साथ मिलता रहता था। बापू जी से मुलाकात इसलिए ज्यादा होती थी क्योंकि वे जनता पार्टी, बाद में जनता दल कार्यालय में नियमित तौर पर बैठते थे। हम भी नियमित तौर पर दिल्ली  विश्वविद्यालय में शोधकार्य के बाद वहीं बैठते थे। यादव रेड्डी, विमल धर, अरुण श्रीवास्तव, विजय दुबे, कैप्टन विक्रम सिंह और अन्य साथी नियमित बैठते थे। सुरेंद्र मोहन जी के करीबी तत्कालीन सांसद जयपाल रेड्डी जी के यहाँ बाकी समय अड्डेबाजी होती थी। वीपी सिंह जी (पूर्व प्रधानमंत्री) से भी मेरा गहरा रिश्ता  था।  वे भी भारतीय राजनीति में सुरेंद्र मोहन जी और  मधु दंडवते जी को सर्वोच्च स्थान देते थे। उन्हें भारतीय राजनीति के दधीचि कहते थे।

सुरेंद्र मोहन जी के साथ मेरा नजदीकी संबंध मुलताई पुलिस फायरिंग की 12 जनवरी 1998 की घटना के बाद हुआ। हालाँकि उसके पहले हम एक ही स्थान वीपी  हाउस में रहते थे। हर दिन  कई बार मिलते थे लेकिन गोलीकांड  ने हमें बहुत नजदीक ला दिया। मैं यह कह सकता हूँ कि सुरेंद्र मोहन जी ने गोलीचालन के बाद जितना समय किसान संघर्ष समिति मुलताई के साथियों तथा मेरे परिवार को दिया, उतना साथ उनके अलावा उनके कद के किसी भी नेता ने नहीं दिया। जबकि इस घटना के पहले तक मैं जॉर्ज फ़र्नान्डिस और अन्य नेताओं के अधिक करीब था।

जब मैं जेल में था  तब वे लगातार हर सप्ताह दिल्ली से मुलतापी जाते थे। दिल्ली में वंदना से मिलते थे। सरकार पर दबाव डालने का काम करते थे। उन्होंने ही वीपी सिंह जी  से गोलीचालन के खिलाफ बयान चैनलों में  प्रेस कॉनफ्रेंस कर दिलवाया था। उन्होंने ही दिल्ली के साथियों को जोड़कर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से मुलाकात कर हस्तक्षेप के लिए मजबूर किया था। वे किसान संघर्ष समिति के हर एक कार्यकर्ता को नाम से जानते थे। उन्होंने ही अनिरुद्ध मिश्रा को अनिरुद्ध गुरुजी का नाम दिया। 1998 के बाद सुरेंद्र मोहन जी की मृत्यु तक मैं समाजवादी नेताओं में उन्हीं के करीब रहा।

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