मदरसा शिक्षा बोर्ड की प्रगतिशील भूमिका

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— अब्दुल क़य्यूम अंसारी —

(मदरसा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ विद्यालय होता है। भारत के मदरसों में दी जानेवाली शिक्षा को लेकर समाज में कई तरह की गलतफहमियां और भ्रांतियां फैलाई गयी हैं। कुछ लोग मदरसों को मुस्लिम समाज में दकियानूसी विचार को फैलाने का आरोप तक लगाते रहे हैं तो वहीं  एक खास विचारधारा के लोगों द्वारा मदरसों को आतंकवाद का अड्डा तक बताया जाता रहा है। लेकिन सच्चाई कुछ और है। आज भी मदरसे मुस्लिम समाज में शिक्षा संस्कृति के प्रमुख केंद्र हैं।आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम समाज के बच्चों का कुछ हिस्सा अपनी प्राथमिक तालीम इन्हीं मदरसों में पाता है। यह लेख बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष क़यूम अंसारी से मेरी बातचीत पर आधारित है। – अरमान अंसारी)

दरसा और स्कूल दोनों की शिक्षा एक ही है। अलग-अलग भाषाओं में कहने का अलग-अलग रिवाज है। जहाँ तक तालीम का संबंध है कुरान और हदीस की रोशनी में इल्म का एक ही मायने है शिक्षा। शिक्षा वह है जो लोगों को नफा पहुँचाये। इल्म ऐसा हो जो, एक तरफ नैतिक मूल्य को बढ़ाये, दूसरी तरफ समाज को रचनात्मक और सकारात्मक रूप से कुछ दे सके। पैगम्बर मोहम्मद जब इस दुनिया में आए तो कुरान की पहली आयत नाजिल हुई ‘ईकरा’, इसका संबंध पढ़ने से है। सनातन धर्म में, वेद 6 हजार साल पहले आए, उनमें इल्म पर विशेष जोर दिया गया है। लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों में  इल्म पर जोर दिया गया है। इल्म के बगैर इंसान के अंदर अख़लाक़ी क़दरें नहीं आ पाती हैं। वह प्राणावस्था में होते हुए भी जानवर की तरह होता है। जैसे जानवर खाते-पीते हैं, सोते हैं, प्रजनन करते हैं। शिक्षा इन्सानों को तहज़ीब देती है।

‘बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड’ 1920 से चल रहा है जिसे 1981 में एक अधिनियम के तहत औपचारिक रूप से ‘बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड’ के रूप में राज्य द्वारा मान्यता दी गयी। जिसका काम बिहार राज्य में चल रहे मदरसों को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करना है। आजादी के बाद यह माना गया कि स्कूल में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है, ऐसी स्थिति में मदरसा शिक्षा बोर्ड और संस्कृत शिक्षा बोर्ड जैसे बोर्ड की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य यह है कि इन बोर्डों द्वारा संचालित संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी  दी जाएगी।

बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड की तमाम व्यवस्था, बहुत पुरानी थी। जब मैं चेयरमैन बना तो एक कमिटी बनायी गयी, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्विद्यालय, देवबंद, नदवा, यूनिसेफ आदि-आदि संस्थानों से विशेषज्ञ बुलाये गये। उनके सुझाव के अनुसार मदरसा बोर्ड ने पाठ्यक्रम से लेकर आंतरिक व्यवस्था में मदरसा को डिजिटल किया गया। मदरसा बोर्ड को नया रूप दिया गया। एनसीईआरटी की पुस्तकों को प्रकाशित कराकर मदरसों में पहुँचाया गया। कुरान, हदीस जैसी धार्मिक पुस्तकों को भी मदरसों के पाठ्यक्रम में उचित स्थान दिया गया। वहीं बोर्ड द्वारा संचालित मदरसों को आधुनिकीकरण करने के लिए बिहार के लगभग 1100 मदरसों में कम्प्यूटर और प्रिंटर आदि की सहूलियतें उपलब्ध कराई गयी हैं। शिक्षकों को कम्प्यूटर चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया। मदरसा के शिक्षक मनोवैज्ञानिक रूप से भी अहसास-ए-कमतरी के शिकार न हों इसके लिए स्कूल के शिक्षकों के बराबर उन्हें वेतन-भत्ता तथा अन्य सहूलियतें दी गयी हैं।

शिक्षा अधिकार कानून 2009 (आरटीई) के तहत मदरसों के बच्चों को भी स्कूलों के बच्चों की तरह पोशाक, साइकिल और मिड-डे मील जैसी योजनाओं का लाभ दिया गया। देश भर में बिहार ही, एकमात्र ऐसा राज्य है जहां तमाम तरह की सरकारी सहूलियतें मदरसों में तालीम हासिल कर रहे बच्चों को भी दी जाती हैं। तकनीकी स्तर पर भी बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को कम्प्यूटरीकृत/ डिजीटल किया गया है। इससे मदरसा में पंजीयन से लेकर नामांकन और फिर अंकपत्र बच्चे ऑनलाइन डाउनलोड कर सकते हैं।

मदरसा बोर्ड के ऑनलाइन होने के कई फायदे और हुए हैं, इनमें विभिन्न तरह की सूचनाएं, पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु, मदरसा में पढ़ाई जानेवाली पुस्तकों की पीडीएफ प्रति, कोरोना के दरम्यान ऑनलाइन कक्षाएं, बोर्ड की विभिन्न तरह की गतिविधियों आदि की जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।

बिहार के मदरसों में हो रहे बदलाव की खबर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय को भी है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने एक बैठक इंडिया हैबिटेट सेंटर में की थी। बैठक में देश भर में जहाँ-जहाँ मदरसा बोर्ड हैं उन राज्यों को, वहीं देश भर के अल्पसंख्यक मंत्रालय के सचिवों को बुलाया गया था। सबके साथ देश भर के मदरसों में दी जा रही शिक्षा की समीक्षा की गयी । समीक्षा में पाया गया कि ‘बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड’ पूरे देश के लिए रोल मॉडल है। इसकी तुलना यदि हम अन्य राज्यों की आबादी और मदरसों की संख्या से करें तो आंकड़े चौंकानेवाले वाले लगेंगे। उत्तर प्रदेश में लगभग 4 करोड़ मुस्लिम आबादी है। वहां कुल 19123 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं इनमें मात्र 588 मदरसों को ही सरकारी अनुदान मिल पाता है।इनमें कितने मदरसों के बच्चों को शिक्षा अधिकार कानून का लाभ मिला होगा, इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओड़िशा आदि प्रदेशों में ही ‘राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड’ हैं। इसके अतिरिक्त बहुत सारे राज्यों में कोई मदरसा शिक्षा बोर्ड नहीं है।इनमें तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक,आंध्र प्रदेश जैसे बड़े-बड़े राज्य भी हैं। देश के बहुत सारे राज्यों में निजी मदरसे आम-आवाम के चंदे से चलते हैं। कोरोना सरीखी दुश्वारियों की वजह से मदरसों में चंदा आना बंद हो गया। ऐसी स्थिति में बहुत सारे मदरसे बंद हो गए। बच्चे जो उन मदरसों में अध्ययन कर रहे थे उनकी पढ़ाई छूट गयी। कितने बच्चे वापस फिर से अपनी अध्ययन प्रक्रिया में पुनः वापस आ पाये कहना मुश्किल है। यदि उन राज्यों में मदरसा शिक्षा बोर्ड होता तो मदरसे शिक्षा बोर्ड के साथ रजिस्टर्ड होते जिनसे उन्हें भी अनुदान सरीखी तमाम सरकारी सहूलियतें देकर अल्पसंख्यक बच्चों की शैक्षिक उन्नति के लिए बोर्ड काम कर सकता था।

अब तक मदरसे और उनके होस्टल आम-अवाम के चंदे से बनते और चलते आ रहे हैं। बिहार में सरकार ने प्रत्येक मदरसे में दो-दो कमरे और शौचालय बनाने का निर्णय लिया है।सरकार के इस कदम से बिहार के मदरसों की स्थिति में सुधार होगा। मुस्लिम समाज के सामने कई तरह की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व शैक्षिक चुनौतियां हैं। इन तमाम तरह की चुनौतियों का जिक्र सच्चर कमिटी से लेकर रंगनाथ मिश्रा कमिटी तक कर चुकी हैं। सच्चर कमिटी ने तो मुस्लिम समाज की स्थिति हिंदू दलितों से बदतर बतायी थी। इनमें शैक्षिक चुनौतियों से निपटने के लिए बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा सैकड़ों मदरसों को उन्नयन कर उन्हें दसवीं व बारहवीं तक बनाया गया है। इससे मदरसे के बच्चों द्वारा बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। बच्चे माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा आसानी से प्राप्त कर लेंगे।

बोर्ड के इस कदम से लड़कियों के नामांकन और उनकी शिक्षा में सकारात्मक असर दिखाई पड़ रहा है। आगे की उच्च शिक्षा के लिए मदरसों के बच्चे जेएनयू, जामिया, दिल्ली विश्वविद्यालय, इग्नू , मदीना विश्वविद्यालय, जहाँ चाहे दाखिला ले सकते हैं। इन तमाम विश्वविद्यालयों ने मदरसा शिक्षा बोर्ड की डिग्री को मान्यता भी दी है। वहीं मदीना विश्वविद्यालय की डिग्री को बिहार राज्य शिक्षा मदरसा बोर्ड ने भी मान्यता दी है।बोर्ड के इस कदम से मदीना विश्वविद्यालय में अध्ययन कर वापस आनेवाले छात्रों को रोजगार में लाभ होगा। अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक व शैक्षिक पहचान के साथ बिहार के मदरसे मुस्लिम समाज में शिक्षा की नयी रोशनी फैलाने का काम कर रहे हैं।

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