16 जनवरी। अफ्रीका के उत्तरी कैमरून में, सिकुड़ते पानी के स्रोतों को लेकर तनाव के चलते, 5 दिसम्बर 2021 को शुरू हुए जातीय संघर्षों के बाद एक लाख लोग विस्थापित हुए हैं। इस क्षेत्र में पानी का दबाव लंबे समय से चले आ रहे जातीय तनावों को फैलाते हुए,समुदायों की हथियारबंद झड़पों में बदल रहा है।
इस बार, हिंसा की यह लहर कैमरून के सुदूर उत्तर क्षेत्र के औलूमसा गाँव से शुरू हुई। संघर्ष के एक तरफ मूसगौम मछुआरे और मस्सा किसान हैं, और दूसरी तरफ अरब चोआ पशुपालक। किसान और मछुआरे, जो मछली पकड़ने और फसलों की सिंचाई के लिए नालियाँ खोदते हैं, उनका आरोप है कि चरवाहों के मवेशियों ने नालियों को तोड़ दिया और बागानों और मछली पकड़ने के क्षेत्रों को नष्ट कर दिया। उन्होंने चरवाहों के पशुओ को मार दिया। और कभी-कभी चरवाहों के मवेशी भी इन नालियों में फँस कर मर जाते। इन सबके चलते, प्राकृतिक संसाधनों पर अपनी जीविका के लिए सीधे निर्भर इन समुदायों के लोगों के बीच तनाव बढ़ गया और उसने उग्र हथियारबंद जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। नाम न बताने की शर्त पर उत्तरी कैमरून के एक नेता ने रॉयटर्स को बताया, “अरब चोआ अपने मवेशियों के झुंड को नदी के किनारे ले जाना चाहते थे। मूसगौम (मछुआरे) और मस्सा (किसानों) ने उन्हें रोका।“
नेता ने कहा, “जब अलग-अलग समुदायों के दो लोगों के बीच कोई संघर्ष होता है, तो समुदायों के सभी लोग हथियारों के साथ शामिल हो जाते हैं।”
रविवार 5 दिसंबर से, कई दिनों तक जारी लड़ाई के दौरान कम से कम 22 लोग मारे गए हैं और 30 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए हैं।” हिंसा फिर पड़ोसी गाँवों में फैल गयी और दस गाँवों को जला दिया गया।
यूएनएचसीआर के अनुसार, तीन दिन बाद, 8 दिसंबर को, उत्तरी कैमरून के कौसेरी शहर में (जोकि 200000 जनसंख्या वाला एक स्थानीय वाणिज्यिक केंद्र भी है) में लड़ाई शुरू हो गयी जिसके फलस्वरूप वहाँ का पशु बाज़ार नष्ट हो गया।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के एक प्रवक्ता ने 10 दिसम्बर को कहा कि झड़पों के परिणामस्वरूप चालीस लोग मारे गए हैं और 100 से अधिक घायल हो गए हैं, 85,000 से अधिक लोग पड़ोसी चाड में भाग गए हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ और बच्चे हैं। कैमरून के अंदर ही कम से कम 15,000 और विस्थापित हुए हैं।संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता बोरिस चेशिरकोव ने स्थिति को जलवायु परिवर्तन से प्रेरित संघर्ष का एक उदाहरण बताया जो क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है।
“यह परिवर्तन, क्षेत्र के चरवाहों, मछुआरों और किसानों के बीच कठिन संबंधों में नवीनतम प्रकरण है, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन से प्रेरित सूखे के कारण चाड झील के पानी और सहायक नदियों को नाटकीय रूप से सिकुड़ते देखा है।”
“मुख्य कारण, जलवायु परिवर्तन है, क्योंकि वे लोग नदी के पानी पर निर्भर हैं, जो चाड झील की मुख्य सहायक नदियों में से एक है, चाड झील पिछले छह दशकों में सिकुड़ती जा रही है, इसने अपने सतही जल का 95 प्रतिशत (कैमरून वाले हिस्से मे) हिस्सा खो दिया है।”
“जलवायु संकट एक मानवीय संकट है; हम इसे साहेल में देख रहे हैं, हम इसे सुदूर उत्तरी कैमरून में देख रहे हैं, हम इसे पूर्वी अफ्रीका में देख रहे हैं, लैटिन अमेरिका के सूखे गलियारे में भी और हम इसे दक्षिण एशिया में देख रहे हैं, दुनिया के इतने सारे हिस्से में जहाँ हमारे विस्थापित समुदाय हैं”, चेशिरकोव ने एक प्रेस वार्ता में कहा।
‘रिलीफ वेव’ ने 17 दिसंबर 2021 के अपने संस्करण में लिखा “घटते जल संसाधनों को लेकर चरवाहों और मछुआरों और किसानों के बीच विवाद के बाद सीमावर्ती गाँव औलूमसा में 5 दिसंबर को शुरू में संघर्ष शुरू हो गया था। जलवायु संकट संसाधनों, विशेष रूप से पानी के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ा रहा है। पिछले 60 वर्षों में चाड झील के कैमरून वाले हिस्से की सतह में 95 प्रतिशत तक की कमी आयी है।”
जानकारों का कहना है कि चाड झील, जो 3 करोड़ से अधिक लोगों के लिए आजीविका का स्रोत है, 1970 और 80 के दशक के लंबे समय तक सूखे के दौरान लगभग 90 प्रतिशत तक सिकुड़ गयी, जिसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन के पहले प्रमुख परिणामों में से एक माना जाता था। जबकि पिछले कुछ दशकों में झील का सिकुड़ना बंद हो गया है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इस क्षेत्र में वर्षा को और अधिक अनिमियत और परिवर्तनशील बना दिया है। यह स्थानीय कृषि को, जो कैमरून की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, और अधिक कमजोर बना देता है।
अगस्त 2021 में भी चरवाहों और मछुआरों के बीच लड़ाई में 45 लोगों की मौत हो गयी थी और चाड में कम से कम 23,000 लोगों की आमद हुई थी, जिनमें से 8,500 तब से वहीं रह गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने नवंबर 2021 की एक रिपोर्ट में कहा कि कम बारिश से नदियाँ और मौसमी तालाब सूख गए हैं, जिन पर समुदाय निर्भर हैं, जिससे क्षेत्र में झड़पें हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र समाचार (वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मानव स्टोरीज) के 17 दिसम्बर 2021 के अंक में छपी रिपोर्ट के अनुसार लड़ाई से अभी तक 44 लोगों की जान चली गयी और 111 अन्य घायल हो गए और 112 गाँवों को कथित तौर पर जला दिया गया है।
सुदूर उत्तरी कैमरून में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है और निरस्त्रीकरण अभियान जारी है। यूएनएचसीआर के प्रवक्ता का कहना है, “संकट के मूल कारणों को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई न की गयी तो स्थिति आगे और खराब हो सकती है।”
(सर्किल ऑफ़ ब्लू, रिलीफ वेव, टीआरटी वर्ल्ड.कॉम और संयुक्त राष्ट्र समाचार के लेखों पर आधारित)
प्रस्तुति – उपेन्द्र शंकर