सिविल नाफरमानी के अभियान का शुभारंभ, गाँधीजी द्वारा, उनकी सुप्रसिद्ध दांडी यात्रा से किया गया।इस संघर्ष के दौरान गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने वाले सत्याग्रहियों से कहा कि वे शांतिपूर्वक नमक को मुट्ठी में दबा रखें और आत्मकलेश सहने के लिए तैयार रहें।आट में दिए गए उनके संदर्भित भाषण की, तोड़मरोड़ कर छापी गई ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’की रिपोर्ट की धज्जियां उड़ाते हुए गांधीजी ने जो लिखा, वह ‘दि हिन्दू’ ने दिनांक 11-4-1930 को छापा जिसका आपातकाल(1975-77)के दौरान, नरसिंहगढ़ जेल में समाजवादी चिंतक, लेखक और तत्कालीन सांसद मधु लिमये और मैने हिंदी में जो अनुवाद किया था, उसे दांडी मार्च की95 वीं वर्षगांठ पर, मित्रों के साथ शेयर कर रहा हूँ।
आज के दौर के इस संदर्भ में, गाँधीजी का यह पत्र सामयिक और पठनीय है, जब संसद द्वारा पारित सीएए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में चले अहिंसक सिविल नाफरमानी आंदोलन चलाने वालों को देश के हुक्मरान राष्ट्रद्रोही और दंगा भड़काऊ बताने का अपप्रचार कर रहे थे।
गांधीजी का पत्र!
“आट में दिए गए मेरे भाषण की, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रिपोर्ट की तरफ मेरा ध्यान खींचा गया है।मैंने जो कहा था, उसे दुष्ट बुद्धि से तोड़मरोड़ कर यह रिपोर्ट छापी गई है।एक आदमी की कलाई पर लगी मामूली चोट के कारण बहते हुए खून को देखकर, जो उन चार पांच सिपाहियों के बलप्रयोग का नतीजा था जो उस आदमी से जबरदस्ती नमक छीनने की कोशिश कर रहे थे, मैंने कहा था कि सत्याग्रहियों द्वारा उठाया गया नमक हिंदुस्तान के सम्मान का प्रतीक है और सत्याग्रहियों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे जान की बाजी लगाकर भी हिंदुस्तान के सम्मान की रक्षा करें।मैंने कहा था कि लोगों को तबतक नमक अपनी मुट्ठी में रखना चाहिए जबतक उनपर होने वाला बलप्रयोग वे बर्दाश्त कर सकते हों और अरक्षितों पर बरसाई जाने वाली पुलिस की मार के कारण अगर खून बहे, तो वे इसकी भी परवाह न करें।मैंने ये भी कहा था कि इस छीनाछपटी का प्रतिकार करते समय लोगों के मन में कोई दुर्भावना नहीं रहनी चाहिए, न ही उन्हें गुस्सा होना चाहिए और न ही मुंह से कोई अपशब्द निकालना चाहिए।अनावश्यक चोटों को टालने के लिए मैंने लोगों को सिर्फ उतना ही नमक उठाने की सलाह दी थी जो मुट्ठी में बंद करके रखा जा सकता हो और बच्चों तथा औरतों से भी मैंने कहा था कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे भी इस लड़ाई में शामिल शरीक हों।पुलिस को मैंने चुनौती भी दी थी कि वह बच्चों तथा औरतों पर हाथ उठाकर देखे।
मैंने कहा था कि पुलिस अगर औरतों और बच्चों पर हाथ उठाएगी तो सारे देश में आग लग जाएगी और वह भी उनके अपमान का मुकाबला करने के लिए वैसे ही आत्मपीड़ा झेलने के लिए तैयार हो जाएगा जैसीे कि बच्चों तथा औरतों ने झेली थी।इस अपमान का जवाब देने के लिए मैंने हिंदुस्तानियों से सत्याग्रह के अन्य तरीके अख्तियार करने की उम्मीद की थी और छात्रों से, विरोध स्वरूप, स्कूलों का बहिष्कार करने तथा सरकारी कर्मचारियों से नौकरी छोड़ देने की मैंने आशा की थी।इसमें अहिंसा के प्रति मेरी श्रद्धा हिलने का कोई सवाल ही नहीं है।सत्याग्रहियों से नमक छीनने की हरकत को मैं असभ्य हरकत मानता हूं।सरकार की असभ्यता जितनी जादा बढ़ती जाएगी, आत्मपीड़ा का मेरा आह्वान उतना ही तेज होता जाएगा।”