11 फरवरी। “हर एक व्यक्ति की मृत्यु मुझे कम कर देती है
क्योंकि मैं इस मानवजाति में शामिल हूं।
यह जानने की जरूरत नहीं है कि,
मृत्यु की घंटी किसके लिए बजायी गयी है।
मृत्यु की यह घंटी हम सभी के लिए है।”
जॉन डोन की कविता की इन पंक्तियों के साथ चारधाम परियोजना की निगरानी करनेवाली सुप्रीम कोर्ट की उच्च अधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के चेयरमैन पद से रवि चोपड़ा ने इस्तीफा दे दिया है।

पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने अपने इस्तीफा-पत्र में कहा है कि सितंबर, 2019 में जब हमसे इस उच्च समिति का चेयरमैन पद संभालने के लिए कहा गया था उस वक्त मैं अपनी उम्र की वजह से जिम्मेदारी निभाने को लेकर सशंकित था लेकिन हिमालय के पर्यावरण को हो रहे नुकसान को कम करने और वहां के लोगों के लिए 40 साल की अपनी प्रतिबद्धता के कारण अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर मैं इस समिति का काम करने को राजी हुआ था। अब इसी अंतररात्मा की आवाज मुझे कह रही है कि मैं इस समिति से बाहर हो जाऊं। यह विश्वास टूट सा गया है कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति इस बेहद नाजुक पारिस्थतिकी को संरक्षित कर सकती है। मैं अब और काम नहीं कर सकता, इसलिए इस समिति से मैं इस्तीफा दे रहा हूं।
27 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटी जनरल को भेजे गए इस पत्र में कहा गया है कि मैंने 2013 की केदारनाथ त्रासदी को लेकर अपनी रिपोर्ट दी थी, इसके बाद मुझे सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह कठिन चुनौती दी गयी थी कि चारधाम परियोजना के चौड़ीकरण कार्य कीे निगरानी करनेवाली उच्चस्तरीय समिति की मैं अध्यक्षता करूं। सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर, 2020 को परियोजना के दौरान नाजुक हिमालय के संरक्षण को लेकर मेरी सिफारिशों वाली रिपोर्ट को स्वीकार भी किया।
14 दिसंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने समिति की भूमिका को स्पष्ट करते हुए दो ऐसी सड़कें जो रक्षा क्षेत्र के लिए इस्तेमाल नहीं होंगी, सिर्फ उनके चौड़ीकरण में समिति की ओर से दी गयी सिफारिशों को लागू कराने को लेकर कहा था। हालांकि पूर्व में दी गई सिफारिशों की सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय उपेक्षा करता रहा है। ऐसा लगता है कि दो नॉन डिफेंस रोड के चौड़ीकरण के मामले में भी ऐसा होता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में शामिल सभी पक्षकारों को नॉन-डिफेंस हाईवे के चौड़ीकरण को लेकर भी कानूनी राहत की मांग करने का रास्ता खोल दिया है। ऐसी परिस्थिति में मैं नहीं समझता कि गठित उच्च समिति के साथ और अधिक जुड़ा रहूं।
रवि चोपड़ा ने अपने पत्र में लिखा है कि टिकाऊ विकास यह मांग करता है कि हिमालय के लिए भौगोलिक और पारिस्थातिकी दोनों स्तरों पर ध्यान रखा जाए। ऐसे विकास न सिर्फ आपदा प्रतिरोधी बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बेहतर हैं। वह भी उस वक्त में जब जलवायु परिवर्तन के कारण ढलान की स्थिरता और अधिक अस्थिर व जोखिम वाली हो गयी है।
प्रकृति के खजाने को जब नुकसान पहुंचता है तो वह इस चीज को न कभी भूलती है और न कभी माफ करती है। हम खुद इस चीज के साक्षी रहे हैं कि कई सड़कें गायब हो गयीं और बाद में महीनों उनकी रिपेयरिंग का काम चलता रहा है। पूरी मानवजाति पर खतरा है। इसके लिए प्रकृति समय-समय पर खतरे की घंटी बजाती रही है। इसकी आवाजें हमें 2013 की त्रासदी हो या फिर फरवरी, 2021 में चमोली त्रासदी में सुनाई पड़ती रही हैं।
डाउनटुअर्थ से साभार
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