असहमति और उसे कहना लिखना भारतीय लोकतंत्र के लिये प्राणवायु है
— रमाशंकर सिंह —
हमने पिछले पचास पचपन बरसों से इस संवैधानिक प्रावधान का सबसे अधिक इस्तेमाल करते जनसंघ भाजपा और उनके आनुषंगिक संगठनों को...
स्वतंत्रता की छ्पी साँसें
— परिचय दास —
जो शब्द नहीं कहे जा सके, वे छपते रहे। जो छप न सके, वे दीवारों पर लिखे गए और जो दीवारों...
संकट के समय सरकार और नागरिक
— राकेश कायस्थ —
संकट के समय सरकार के साथ खड़े होना नागरिक का कर्तव्य है। लेकिन सरकार का कर्तव्य क्या है? पिछले सात दिनों...
अम्बेडकर का यश
— कनक तिवारी —
डाॅ. भीमराव अम्बेडकर तटस्थ मूल्यांकन के बनिस्बत अतिशयोक्ति अलंकार बनाए जा रहे हैं। उन्हें संविधान के आर्किटेक्ट या निर्माता के रूप...
निष्पक्ष और जनपक्षधर मीडिया युग का अवसान
— रमाशंकर सिंह —
निष्पक्ष लेकिन जनपक्षधर सरोकारी पत्रकारिता व मीडिया का अवसान हो चुका है , सीधे शब्दों में इसकी मौत हो चुकी है।...
भारत का गणतंत्र दिवस और हमारा आज
— परिचय दास —
भारत का गणतंत्र दिवस केवल एक तिथि नहीं है, न ही यह केवल औपचारिक झंडारोहण और परेड का अवसर है। यह...
कब तक कहते रहेंगे कि कोई डर नहीं लग रहा ?
— श्रवण गर्ग —
नागरिकों को या तो भान ही नहीं है कि वे भयभीत हैं या फिर उन्होंने किसी और भी बड़े ख़ौफ़ के...
संविधान दिवस पर संविधान की आत्मा का बयान
— कनक तिवारी —
हे पवित्र संविधान! आज संविधान दिवस के अवसर पर मैं इकबाल करता हूं कि मैं तुम्हारे यज्ञ की समिधा हूं। मैंने...
हो रही है अतीत की शत्रुता की ब्राण्डिंग, खाली पड़ी हैं...
— ध्रुव शुक्ल —
इतिहास गवाही देता है कि पूरी दुनिया का जीवन और उसकी तत्कालीन राज्य व्यवस्थाएं अपने-अपने मुल्कों में आक्रांताओं, लुटेरों और उपनिवेशवादियों...
प्रजातंत्र में मोक्ष की प्रयोगशाला
— ध्रुव शुक्ल —
देह ही मोक्ष की प्रयोगशाला है। अपने आपको भूलकर जीते रहने से किसी के होने और न होने का अहसास ही...