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किसान आंदोलन का अंदेशा सही निकला, दालों पर स्टॉक सीमा लगानी पड़ी

by Rajendra Rajan
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3 जुलाई। संयुक्त किसान मोर्चा शुरू से कहता आ रहा है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके असीमित जमाखोरी की छूट देने से महंगाई बढ़ेगी। मोर्चा की यह आशंका सही साबित हुई है। भारत सरकार को बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए दालों पर स्टॉक सीमा लगानी पड़ी है। सरकार यह कदम इसलिए उठा सकी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में आवश्यक वस्तु अधिनियम में 2020 में किए गए संशोधनों के कार्यान्वयन को निलंबित रखा हुआ है। ऐसी स्टॉक सीमा को हटाने और आपूर्ति श्रृंखला को डी-रेगुलेट करने के लिए संशोधन लाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में किसानों के भारी प्रतिरोध और आंदोलन के कारण आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 सहित तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया। दालों पर स्टाक सीमा लगाने के सरकार के फैसले से जाहिर है कि एग्री बिजनेस कंपनियों के दबाव में गलत कानून बनाया था। विडंबना यह है कि अब भी सरकार इन गलत कानूनों को सही ठहरा रही है!

किसान मोर्चा ने अपने ताजा बयान में यह भी कहा है कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार के विरोधाभासी बयानों के लिए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी और महाराष्ट्र सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की मांग है कि इस तरह का स्पष्टीकरण तत्काल दिया जाए। एसकेएम ने राज्य सरकार को उन निगमों और केन्द्र सरकार के दबाव  में आने के खिलाफ चेतावनी दी है जो इन काले कानूनों से लाभान्वित होंगे। जारी  किसान संघर्ष के प्रमुख मुद्दों में से एक यह है कि कृषि विपणन विषय पर राज्य सरकार का संवैधानिक अधिकार है।

एमवीए (MVA ) के तीनों दलों ने पूर्व में किसान आंदोलन और उसकी मांगों का समर्थन किया था। इसमें मुंबई के आजाद मैदान में 23 से 25 जनवरी 2021 तक एक विशाल महापड़ाव शामिल है, जिसमें एमवीए और अन्य नेताओं ने भी भाग लिया था, साथ ही मई 2021 में 12 राजनीतिक दलों द्वारा हस्ताक्षरित संघर्ष का समर्थन करनेवाला एक बयान भी शामिल है। हाल ही में, जब किसान नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने महाराष्ट्र में पवार से मुलाकात की, तो उन्होंने वास्तव में उन्हें किसानों की मांगों के लिए सरकार के समर्थन का आश्वासन दिया। रिपोर्ट किए गए बयान और उसके बाद के स्पष्टीकरण भ्रम पैदा कर रहे हैं, और भाजपा सरकार इस अवसर का लाभ उठा रही है। एसकेएम ने कहा है कि केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर संशोधन के लिए पवार के कथित सुझाव के साथ जो करना चाहते हैं वह कर सकते हैं, लेकिन विरोध करनेवाले किसान तबतक नहीं हटेगे जबतक  कृषि कानूनों को निरस्त करने की उनकी मांग पूरी नहीं की जाती।

संयुक्त किसान मोर्चा ने विश्वप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी एवं चिंतक प्रो नोम चॉम्स्की को ‘भारत के संघर्षरत किसानों को सलाह और प्रोत्साहन के कुशल और उत्साही शब्दों’ के लिए धन्यवाद दिया। प्रो चॉम्स्की को भेजे गए एक पत्र में, एसकेएम ने उल्लेख किया कि खेती और खाद्य सुरक्षा पर कॉर्पोरेट कब्जे के हमले के खिलाफ अपने दृढ़ और शांतिपूर्ण प्रतिरोध को जारी रखने हेतु उनकी ‘सैद्धांतिक एकजुटता भौर समर्थन ने किसानों के संकल्प को मजबूत किया है।‘

पंजाब और उत्तर प्रदेश में, किसान अपनी धान की फसल के सूखने तथा लगातार और लंबी बिजली कटौती के कारण फसल के नुकसान से चिंतित हैं। इस समस्या के समाधान के लिए विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पंजाब के किसान संघों ने भी राज्य सरकार को 5 जुलाई 2021 तक मामले को सुलझाने का अल्टीमेटम जारी किया है।

एसकेएम नोट करता है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने किसानों के विरोध के कारण राजमार्ग संचालकों को उनके कुल राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए कदम आगे बढ़ाया है। वहीं किसानों के मामले में (जब वे अपनी उपज का विक्रय करते हैं और लाभकारी मूल्य न मिल पाने के कारण नुकसान उठाते हैं) सरकारें स्पष्ट रूप से ऐसी सहायक नीति  नहीं अपनाती हैं।

ट्रैक्टर रैलियों और अन्य माध्यमों से किसानों के कई जत्थे विभिन्न धरना स्थलों पर पहुंच रहे हैं। गाजीपुर सीमा पर शामली और मेरठ से किसानों के आने की उम्मीद है। कई किसान राजस्थान के विभिन्न जिलों जैसे कोटा, बूंदी, हनुमानगढ़ और जोधपुर से शाहजहांपुर विरोध स्थल के लिए रवाना हो गए हैं। अलवर जिले के भवाल चौरासी खाप गांव से शाहजहांपुर के लिए एक बड़ा काफिला जल्द पहुंचने की उम्मीद है। बीकेयू चढूनी के नेतृत्व में काफिला शनिवार को चंडीगढ़ से सिंघू बॉर्डर के लिए रवाना हुआ।

किसान आंदोलन को उन असाधारण व्यक्तियों से ताकत मिलती है जो विरोध में शामिल हुए हैं। ये ऐसे नागरिक हैं जो महसूस करते हैं कि यह ऐतिहासिक विरोध देश में किसानों और खेती के भविष्य को महत्वपूर्ण रूप से निर्धारित करेगा। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं बीकेयू राजेवाल से जुड़े हसनपुर खुराद (गुरदासपुर जिला, पंजाब) के बलजिंदर सिंह, जो 26 नवंबर 2020 से विरोध प्रदर्शन की शुरुआत से सिंघू बॉर्डर पर जमे हैं। वह आंदोलन के एक निडर सिपाही हैं और इस आंदोलन को जीत की ओर ले जाने के लिए उनके लिए कोई भी बलिदान बड़ा नहीं है। वह यहां अपने छोटे बच्चों और परिवार के साथ 7 महीनों से अधिक समय से हैं। वह 32 वर्ष के हैं और तीन भाइयों के परिवार में सबसे छोटे हैं। उन्होंने इस आंदोलन के माध्यम से किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए अपना छोटा ईंट भट्ठा व्यवसाय और एक एकड़ जमीन छोड़ दी है। सिंघू बॉर्डर पर, बलजिंदर सिंह स्टेज से संबंधित लॉजिस्टिक्स में मदद करते हैं।

जारीकर्ता – बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शनपाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव

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