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नवल शुक्ल की पांच कविताएं

by Rajendra Rajan
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1.

पुरुष बहुत जल्दी थक जाते हैं 

 

पुरुष बहुत जल्दी थक जाते हैं

अक्सर वे थके ही रहते हैं

वे अपनी थकान से अधिक थक जाते हैं ।

 

वे बार-बार कहते हैं कि थक गया हूं

काम इतना अधिक था कि थक गया हूं

जबकि अधिकांश के पास नहीं होता कोई काम

वे रोज काम खोजते हुए थक जाते हैं।

 

जो थक जाते हैं वे सामान्य पुरुष होते हैं

थकते हुए सामान्य सेवक की तरह

लेकिन कुछ लोग चौबीसों घंटे काम करते हैं

और वे कहते हैं कि नहीं थकते

वे बिना थके हुए महापुरुष होते हैं

वे पीढ़ियों को थकाने के काम करते हैं।

 

2.

समय के मुहाने पर थोड़ी गपशप

 

हो सकता है हम तुमसे पहले जैसे नहीं मिल पाएंगे

न आ पाएंगे एक दूसरे के घरों में

हमारे घर, घरों से दूर होते जाएंगे

वे पहले जैसे नहीं रह जाएंगे।

 

हो सकता है तुम हमारे पास आना सोचो

तो वह निर्णय की तरह रखवालों के पास पहुंच जाए

और तुमसे सोचने पर सवाल किए जाएं।

 

तुमसे इतने सवाल किए जाएं

और सवालों के इतने संदर्भ दिए जाएं

कि तुम अपने को भूल सकते हो

और अपने को नए सिरे से जानना शुरू कर सकते हो

तब, तुम जानोगे कि तुम जो थे वह नहीं हो

और अब तुम्हें हिदायतों के साथ अपडेट रहना है।

 

हो सकता है तुम अपनी त्वचा को छुओ

अपने बालों पर हाथ फेरो

कोई फूल देखो

और आईने में देखो खुद को

तो इनकी प्रतिक्रियाएं कहीं और दर्ज हों

और हिदायतें तुम्हें प्राप्त हों।

 

हो सकता है तुम लोगों से मिलने की जगह

बचने के लिए सोचने लगो

हम ऐसे ही समय के मुहाने पर हैं

चलो थोड़ी गपशप हो, थोड़ा बतिया लें।

 

3.

हेल्प लाइन

 

जब किसी से बात करता हूं

आवाजों में खोजता हूं प्यार और दुख की आहटें

तो ढेर सारे हेल्पलाइन नंबर प्राप्त होते हैं

जो किसी को नहीं जानते

वे नंबर सांत्वना, चिढ़ और अन्याय की तरह  रहते हैं।

 

जो स्थायी नंबर हैं वे स्थायी रूप से व्यस्त हैं

जो तात्कालिक हैं वे अल्पकालिक हैं

वे दूसरे नए नंबरों में बदल जाते हैं

और दिनोंदिन नई बढ़ी हुई शर्तों के साथ आते हैं

जैसे दिनोंदिन आश्वासन और अत्याचार के ढंग बदल रहे हैं।

 

आसपास से गुजरते लोगों को देख रहा हूं

मुझे देखते हुए कोई नहीं देख रहा है

अनावश्यक वस्तु की तरह पड़ा हुआ हूं

जीवन के क्षणिक आखिरी समय के पास

भूख तितली की तरह उड़ रही है

जितना देख पा रहा हूं

उसे देखने से लगाव बढ़ रहा है

धड़कनें कम हो रही हैं

इससे सहमा हुआ निरपेक्ष होता जा रहा हूं

यह कुछ नहीं है जीवन जो सिमटता जा रहा है

और मैं पीली तितली की तरह विदा हो रहा हूं।

 

अब आवाजें नहीं हैं मेरे पास

न दुख, न प्यार

बगल में हेल्प लाइन लेटा है यार।

 

रेखांकन : बसंत भार्गव

 

4.

भगवान बहुत कुछ हमारे जैसे हैं

 

भगवान बहुत कुछ हमारे जैसे हैं

वे भी सोते जागते हैं

मौसम का असर उन पर भी होता है

उन्हें भी सर्दी जुकाम होता है

उन्हें भी भूख लगती है

विश्राम के भी निर्धारित हैं उनके समय।

 

भगवान के कक्ष और प्रांगण के लिए जरूरी है रोशनी

सुगंधित वायु आवश्यक है

सुबह की प्रार्थना और संध्या वंदन भी

वे भी वस्त्र धारण करते हैं

श्रृंगार करते हैं, संगीत सुनते हैं

और नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं

 

एक भगवान के लिए एक घर है और कई घर हैं

खिड़कियां और दरवाजे हैं

अकेला रहना उन्हें भी पसंद है

चौपड़ खेलना भी

उनके भी कपाट बंद होते हैं

 

हम न होंगे तो भी भगवान होंगे

वह हमारे सुखों में भागीदार

और हमारे दुखों में मूर्तिवत रहेंगे

हम घंटियां बजाएंगे, गाना गाएंगे

लड़ेंगे, मरेंगे, मारे जाएंगे

 

5.

इंतजार में

 

मैं इस तरह सोचता हूं और इंतजार में हूं

कि बची रहें मनुष्यता की जगहें

और मनुष्यों की गरिमा अंत तक बची रहे

और ऐसे मुकम्मल इंतजाम पहले हों

फिर सरकार हो तो इतना कम कि

सरकार होने का पता न चले

यदि वह सब्जी भाजी खरीदते समय

गाहे बगाहे कहीं मिल जाए

तो हम सरकार से पूछ सकें कि

क्यों, कैसी चल रही है सरकार।

 

पर सरकारें अधिक से अधिक सरकार बनती जा रही हैं

वे सहयोग की तरह आईं

और अधिकार की तरह व्यवस्थित हो गईं

हमारा होना न होना उनकी व्याख्या की परिधि में है

यह मनुष्यों के स्थगन की प्रारंभिक प्रक्रिया है

जो बाद में भयानक है।

 

इन आती हुई भयानक आहटों से दूर

अभी ठीहों, वीरानों  और सूनी जगह पर हूं।

 

अमावस्या के आकाश के नीचे

जहां कुछ लोग बैठे हैं

लगभग आदिम समय के सन्नाटे के बीच

अपने को मनुष्य मानते हुए

मैं वहीं हूं

वे जिस इंतजार में हैं मैं भी हूं

वे कहीं नहीं पहुंचे तो मैं भी नहीं पहुंचा

वे मर गए तो इनकी मौत पर है मेरा जीना

अभी इनके पास हूं तो जिंदा रहना चाहता हूं

जो किसी की मृत्यु पर

जीवित रहने की तरह जिंदगी नहीं बिता रहे हैं।

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6 comments

गिरधर राठी June 13, 2021 - 5:43 AM

ठहर कर,अपने भीतर और अपने समय के भीतर पैठ कर, कुछ और बेचैनी इन कविताओं से आ जुड़ती है

Reply
Sadanand Shahi June 13, 2021 - 6:39 AM

पुरुष तक जाते हैं,जो नहीं रखते महापुरुष होते हैं वे सबको थकाने का काम करते हैं। वाह साधुवाद।

Reply
Sanjeev Kaushal June 13, 2021 - 7:48 AM

बहुत अच्छी कविताएँ हैं।

Reply
Bahadur patel June 16, 2021 - 4:09 PM

बहुत अच्छी कविताएँ…

Reply
Pragya Rawat September 2, 2021 - 8:50 AM

मेटाफ़िजिक्स की तरफ़ अग्रसर कविता तत्व….।
पुरुष थकान से अधिक थकते हैं….वाह!

Reply
Pragya Rawat September 2, 2021 - 8:54 AM

मेटाफ़िज़िक्स की तरफ़ अग्रसर कविता तत्व….।

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