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धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’ की सात ग़ज़लें

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1 जग से रखता आसरा है मन भी कितना बावरा है कॉंपता है सारा जंगल सिर्फ़ इक पत्ता झरा है दे रहा हूँ सबको हिम्मत मन तो मेरा भी डरा...

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