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शिव कुमार पराग के गीत और दोहे

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  रोशनी के शब्द   सिर उठाती है सलाखों की जकड़बंदी से मेरी चेतना फिर सिर उठाती है।   खुल रहा आकाश दिखलाई पड़ा है, रोशनी के शब्द मुझ तक आ गए। इंद्रधनुषी दिन भले गहरे...

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