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चंद्रकांत देवताले की कविता

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औरत   वह औरत आकाश और पृथ्वी के बीच कब से कपड़े पछीट रही है,   पछीट रही है शताब्दियों से धूप के तार पर सुखा रही है, वह औरत आकाश और...

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