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नरेन्द्र कुमार मौर्य की ग़ज़ल और दोहे

by Rajendra Rajan
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ग़ज़ल
सुनता ही नहीं कोई मिट्टी की कहानी भी
घाटे का मियाँ सौदा है खेती किसानी भी

दरिया तू हुआ कैसे ये मुझको बता जालिम

प्यासे को अगर तुझसे मिलता नहीं पानी भी

गुज़रा है कोई जत्था मांगों को लिए अपनी
नारों से महकती है सड़कों की वीरानी भी

कर ज़ोर जुलम कितना हक़ मांगने वालों को
इन्आम ही लगती है ज़ख़्मों की निशानी भी

सुनते वो हमें कैसे क्या ज़ख़्म दिखाते हम
सरकार तो बहरी है इक आंख से कानी भी

तौबा ये बुढ़ापे में अब हमको सिखाता है

जब फ़स्लें उगाने में खो बैठे जवानी भी

कालिख से निकलता है कानून भी काला ही
गाली ही बके देखो अब बैठ के नानी भी

जिस दिन ये समझ लोगे हक़ सबके बराबर हैं
आएंगे समझ में फिर हर बात के मानी भी

मिल जाए मुहब्बत जो हर दिल को यहाँ प्यारे
लगती है बहुत अच्छी फिर दुनिया ए फ़ानी भी

दोहे
बढ़ जाएगी याद रखदिल्ली तेरी शान,
दिल दरवाज़ा खोलिएबाहर खड़ा किसान।

सड़कें खोदे देखिएमूरख का अभिमान,
रखे बड़े पत्थर मगरउनसे बड़ा किसान।

उस ठंडी बौछार नेली इक-दो की जान,
डंडे मारे पुलिस नेचीखा नहीं किसान।

किसके रोके से रुकायारों कब तूफ़ान,
काँप गई सरकार भीजब-जब चला किसान।

नीयत है खोटी बहुतमोटा भाईजान,
छोटा तू साबित हुआसबसे बड़ा किसान।

दालें भी चुप न रहींख़ूब दहाड़े धान,
खेती गुस्से में बहुतबेबस नहीं किसान।

बिलकिस दादी को पकड़या ले हमरी जान,
जालिम तेरे जुल्म सेकब तक डरे किसान।

काशी में ठुमकत फिराये कैसा परधान,
अपनी मांगों को लिएचीखत रहा किसान।

मूरख छोड़ गुरूर कोकर विरोध का मान,
हर काले कानून कोकर दे राख किसान।

देख रहा है गौर सेसारा हिन्दुस्तान,
बौराई सरकार सेकैसे लड़ा किसान।

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