नागार्जुन की कविता – उनको प्रणाम !

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रेखांकन : मुकेश बिजोले

      

जो नहीं हो सके पूर्ण-काम

मैं उनको करता हूँ प्रणाम!

कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट

जिनके अभिमंत्रित तीर हुए,

रण की समाप्ति के पहले ही

जो वीर रिक्त तूणीर हुए!

–  उनको प्रणाम !

जो छोटी-सी नैया लेकर

उतरे करने को उदधि-पार ;

मन की मन में ही रही, स्वयं

हो गए उसी में निराकार !

– उनको प्रणाम !

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े

रह-रह नव-नव उत्साह भरे,

पर कुछ ने ले ली हिम-समाधि

कुछ असफल हो नीचे उतरे !

– उनको प्रणाम !

एकाकी और अकिंचन से

जो भू-परिक्रमा को निकले ;

हो गए पंगु, प्रति-पद जिनके

इतने अदृष्ट के दाँव चले !

– उनको प्रणाम !

कृत्कृत्य नहीं जो हो पाये ;

प्रत्युत फाँसी पर गए झूल,

कुछ ही दिन बीते हैं, फिर भी

यह दुनिया जिनको गई भूल !

– उनको प्रणाम !

थी उग्र साधना, पर जिनका

जीवन नाटक दुःखांत हुआ !

था जन्म-काल में सिंह लग्न

पर कुसमय में देहांत हुआ !

– उनको प्रणाम !

दृढ़ व्रत औ’ दुर्दम साहस के

जो उदाहरण थे मूर्तिमंत ;

पर निरवधि बंदी जीवन ने

जिनकी धुन का कर दिया अंत !

– उनको प्रणाम !

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय

पर विज्ञापन से रहे दूर ;

प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके

कर दिए मनोरथ चूर-चूर !

– उनको प्रणाम !

(1939)

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