ऐतिहासिक घटना है किसान मोर्चा व श्रमिक संघों का साथ आना

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— सुनीलम —

क मई को दुनियाभर में मई दिवस, ‘दुनिया के मजदूरो एक हो’ के नारे के साथ मनाया जाता है। भारत में भी सभी श्रमिक एवं प्रगतिशील संगठन मई दिवस पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं। कोरोना संक्रमण से देश और दुनिया प्रभावित है। जहां लॉकडाउन है वहां रैलियां, सम्मेलन और आम सभाओं के कार्यक्रम नहीं हो सकेंगे परंतु तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सभी संगठन अपने अपने तरीके से मई दिवस अवश्य मनाएंगे।

मई दिवस उन श्रमिकों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने 8 घंटे काम की सीमा तय करने को लेकर कुर्बानियां दी थीं।
मई दिवस एकमात्र ऐसा दिवस है जिसे पूरी दुनिया में मजदूर बिना सरकारी संरक्षण और मदद के खुद स्वप्रेरणा से मनाते हैं।

लेकिन भारत में इस बार परिस्थिति बदली हुई है। अब 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम कराने को कानूनी मान्यता दे दी गई है। श्रमिकों के लिए जो 44 कानून थे उनकी जगह 4 लेबर कोड लागू कर दिए गए हैं। मोदी सरकार की श्रम विरोधी नीतियों के खिलाफ देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों सहित हजारों छोटे-बड़े श्रमिक संगठन लेबर कोड के खिलाफ मैदान में उतरे हुए हैं।

इस बार भारत में पहली बार मई दिवस को संयुक्त किसान मोर्चा तथा केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से ‘किसान मजदूर एकता दिवस’ के तौर पर मनाया जा रहा है। यह कार्यक्रम 28 अप्रैल हुई संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं एवं केंद्रीय श्रमिक संगठन के नेताओं की बैठक में संयुक्त रूप से तय किया गया था। संयुक्त बैठक में 28 प्रमुख किसान और मजदूर नेता शामिल हुए थे। उन्होंने संयुक्त प्रेस वक्तव्य भी जारी करने का निर्णय किया।

इस फैसले का अर्थ है कि दिल्ली की सरहदों पर जो किसानों के अनिश्चितकालीन धरने चल रहे है वहां बड़ी संख्या में श्रमिक नेता और श्रमिक संगठनों के कार्यकर्ता पहुंचकर किसान-मजदूर एकता दिवस मनाएंगे। इसी तरह के कार्यक्रम पूरे देश में किसान संगठनों एवं श्रमिक संगठनों द्वारा आयोजित किए जाएंगे। इस अवसर पर मध्यप्रदेश के किसान संगठनों व श्रमिक संगठनों द्वारा किसान मजदूर महापंचायत का आयोजन किया गया है।

इन कार्यक्रमों में 3 किसान विरोधी कानून रद्द कराने, 4 लेबर कोड वापस लेने, बिजली संशोधन बिल वापस लेने, एमएसपी पर सभी कृषि उत्पादों की खरीद की कानूनी गारंटी देने तथा सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण एवं कार्पोरेटीकरण रोकने आदि मुद्दों को जनता के बीच ले जाया जाएगा।

इस कार्यक्रम के माध्यम से बना नया गठबंधन देश के सत्ताधीशों के लिए नई राजनीतिक चुनौती पेश करेगा। परिवर्तन की राजनीति को नई ऊर्जा और धार देगा। देश के प्रमुख किसान नेताओं और श्रमिक नेताओं को अपनी सोच में व्यापकता लाने के लिए विशेष तौर पर बधाई दी जानी चाहिए क्योंकि यह सर्वविदित है कि अब तक आजादी के 74 वर्षों के बाद भी किसान संगठनों द्वारा मजदूर हितों की रक्षा के लिए आगे आने तथा श्रमिक नेताओं द्वारा किसानों के हितों के लिए सामूहिक संघर्ष करने की दिशा में कोई ठोस कार्यक्रम संभव नहीं हो सका था। दोनों अपने अपने मुद्दों पर अलग-अलग संघर्ष किया करते थे। यह अलगाव किस स्तर तक था वह इस बात से पता चलता है कि एक ही पार्टी के किसान और श्रमिक संगठन आमतौर पर अपने-अपने कार्यक्रम अलग अलग किया करते हैं।

वैचारिक दृष्टि से यह माना जाता रहा है कि क्रांति का नेतृत्व मजदूरों का हरावल दस्ता करेगा। किसान क्रांति का वाहक हो सकता है यह बात आमतौर पर स्वीकार नहीं की जाती परंतु भारत में किसानों ने जिस तरह से कारपोरेट, संघ परिवार और केंद्र सरकार को एकसाथ चुनौती दी है उससे यह कहा जाने लगा है कि किसान भारत में राजनीतिक बदलाव की धुरी बन रहा है। जमीनी स्तर पर यदि देखा जाए तो किसान भूस्वामी है,जमीन का मालिक है तथा उसके खेत में काम करने वाला खेतिहर मजदूर है।मध्यप्रदेश के मंदसौर में हुई पुलिस फायरिंग के बाद किसान संगठनों द्वारा बनाए गए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने किसान शब्द को व्यापकता दी है। उसमें खेतिहर मजदूरों, भूमिहीन किसानों, पशु पालकों, मछुआरों आदि उन सभी समूह को शामिल किया गया है जो किसानी के काम से जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के ढाई सौ संगठनों में बहुत सारे संगठन खेतिहर मजदूर, पशुपालक, मछुआरे आदि के हैं।

फिलहाल किसान संगठनों और मजदूर संगठनों की एकता कार्यक्रमों पर आधारित है लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा एवं केंद्रीय श्रमिक संगठनों के परिपक्व नेतृत्व को देखकर यह कहा जा सकता है कि आनेवाले समय में देश में किसानों और श्रमिक संगठनों का एक साझा मंच बनेगा जो देश में परिवर्तन की राजनीति का मूल आधार बनकर उभरेगा। क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन संभावनाएं तो स्प्ष्ट दिखने लगी हैं।

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