श्रमिक संगठन भी 26‌ मई को मनाएंगे काला दिवस

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20 मई। संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई 2021 को भारतीय लोकतंत्र के काले दिन के तौर पर मनाने का आह्वान किया है। इसी दिन 2014 में नरेंद्र मोदी ने पहली बार और 2019 में 30 मई को पीएम के तौर पर दूसरी बार शपथ ली थी। 26 मई को ही दिल्ली चलो किसान आंदोलन के छह महीने पूरे हो रहे हैं।

सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने इसी दिन पूरे देश में हड़ताल का फैसला लिया था। इसी दिन छह महीने पहले गरीब परिवारों को कैश ट्रांसफर, सभी जरूरतमंदों को फ्री राशन, मनरेगा का विस्तार और ग्रामीण क्षेत्रों में नए रोजगारों के निर्माण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी विभागों का निजीकरण बंद करने, और पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने जैसी मांगों को लेकर राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई थी।

एक प्रेस विज्ञप्ति में एचएमएस, इंटक, सीटू समेत दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने कहा कि इस दिन को काला दिवस के तौर पर मनाने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि मोदी सरकार सात सालों में उन वादों को पूरा करने में नाकाम रही, जो वादे करके वह सत्ता में आई थी।

सरकार कोरोना की दूसरी लहर में पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना तरीके से बर्ताव कर मेहनतकश आबादी से छुटकारा पाने का प्रयास कर रही है। यह सब इसलिए कर पा रही है क्योंकि लोकसभा में उसे बहुमत हासिल है। केंद्र सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर से निपटने का जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़कर पल्ला झाड़ लिया है।

वैक्सीन, ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड यहां तक कि श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी पड़ना चिंताजनक है। सरकार ने वैक्सीन उपलब्ध न होने पर भी 18 से 44 साल की उम्र के लोगों के लिए वैक्सिनेशन का एलान कर दिया। ये सारी चीजें दिखाती हैं कि सरकार के पास इस मुश्किल समय से निपटने की कोई योजना नहीं है।

दरअसल सरकार इस महामारी को अवसर की तरह इस्तेमाल कर काॅरपोरेट के लाभ के लिए कानून बना रही है। चाहे वह खेती के कानून हों या चार लेबर कोड।

सरकार हर चीज का निजीकरण करना चाह रही है, चाहे वह रेलवे हो, बंदरगाह हों या फिर बैंक। नीलामी के लिए चिह्नित किए 500 कोयला ब्लाॅकों में से जिन 40 की नीलामी हुई है उनमें से 39 अडानी और मेदांता को सौंपे गए हैं, जबकि छह एयरपोर्ट पहले ही अडानी को बेचे जा चुके हैं।

दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले मजदूरों के लिए, जिन्हें अनाज, कैश सब्सिडी और रोजगार की तत्काल जरूरत है, उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।

सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अमीरों पर टैक्स बढ़ाकर मनरेगा जैसी योजना का दायरा बढ़ाए और नए रोजगार तैयार करे लेकिन इस मोर्चे पर वह पंगु नजर आती है।

वह ऐसे कानून बना रही है, जिनकी किसी ने मांग नहीं की थी, जैसे-खेती कानून, लेबर कोड, सीएए और नई शिक्षा नीति, जबकि जिन चीजों की लोग मांग कर रहे हैं उनके बारे में सरकार कोई पहल नहीं करती जैसे अनाज का न्यूनतम दाम और पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना।

एक तरफ सरकार पैसे की कमी का रोना रो रही है, दूसरी ओर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में 20,000 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।

सही सवाल उठाने वाले सिविल सोसाइटी के लोगों को एनएसए और यूएपीए लगाकर जेल में डाला जा रहा है जबकि राजनीतिक विरोधियों के लिए हथियार के तौर पर सीबीआई और ईडी जैसी सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

मांग
– सभी का फ्री वैक्सिनेशन हो।
– सरकार के सार्वजनिक उमक्रमों को मजबूत बनाया जाए।
– असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को फ्री में अनाज के साथ ही हर महीने 7500 रुपये कैश सब्सिडी दी जाए।
– खेती के तीनों कानूनों को और बिजली सुधार बिल 2021 को वापस लिया जाए।
– निजी क्षेत्र में प्रस्तावित चार लेबर कोड निरस्त किए जाएं।

( workersunity.com से साभार )

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