एक
लॉकडाउन के इस उबाऊ समय में
बिस्तर पर पड़ा रहूँ आलस्य करते
सुबह-सुबह अख़बार देख लूँ सरसरे तौर पर
जो भी किताब हाथ लगे उसे पढ़ने लगूँ
बीच बीच में चाय पीता रहूँ और
सुरती बना कर मुँह में दबाये हुए
लेता रहूँ तम्बाकू और चूने का स्वाद
बार बार साबुन से हाथ धोता रहूँ
बच्चों के साथ लूडो और कैरम खेलता रहूँ
समय पर भोजन करता रहूँ जैसा भी बना हो
पत्नी के साथ बतियाता रहूँ सुख-दुख की बातें
दिन को गुज़ार दूँ अनावश्यक व्यस्तता में
कोई हल्की-फुल्की कविता लिख लूँ
दूर बैठे रिश्तेदारों की याद आये अचानक तो
कुछ देर फोन पर बात कर लूँ उनसे
मित्रों की खोज-ख़बर लेता रहूँ और देख लूँ
कुछ देर टेलीविजन पर ताज़ा समाचार
जब भी चाहूँ उदास और दुखी हो लूँ
महामारी से मरने वाले लोगों को याद करते हुए
उन खाते-पीते अघाये लोगों के बारे में सोच लूँ
जो सुरक्षित हैं अपने सुविधासम्पन्न घर में
जिन्हें नहीं व्यापते कोई चिन्ता-फिक़्र
गर्म पानी के साथ अवसादरोधी दवा ले लूँ
रात के भोजन के बाद नींद लेने की कोशिश करते
सुबह निश्चिन्तता से जागने की कामना करूँ
लॉकडाउन के इन उबाऊ दिनों में
कम कर लूँ अपनी दैनिक आवश्यकताएं
पुलिसिया डण्डों की मार से बचने के लिए
बिल्कुल नहीं काटूँ बाज़ार के चक्कर
बस कमरे से छत और छत से कमरे में ही
डोलता रहूँ ऊपर नीचे साँस लेते हुए
आख़िर कैसे जीवित रहूँ इस संक्रामक समय में
लगभग मरे हुए आदमी की तरह?
दो
मालिकों का पालतू बनना छोड़ देंगे
मेहनत करेंगे अपने घर-गाँव में
वन-जंगलों से कर लेंगे उदरपूर्ति योग्य उपार्जन
शहर की ओर नहीं जाएंगे अब कभी
कह रहा था वह कृशकाय नौजवान
साथ चलते हुए अपने मजदूर साथियों से
मरेंगे अगर किसी महामारी से तो
अपनी जमीन पर तो मरेंगे कम से कम
रोज मिल सकेंगे माई और बाबा से
बच्चों को भी दिखा-बता सकेंगे अपना देस
शहर तो परदेस ही हुआ है न हमारे लिए
वार त्योहार ही भूल गये थे शहर में
याद करते रहते थे गाँव के रस्ते पगडण्डियाँ
अब छोड़ दिया तो छोड़ दिया बस
मुँह भी नहीं करेंगे शहर की तरफ भूले से
शहर की जिल्लत भरी कमाई से
गाँव की सूखी रोटी सात गुना अच्छी भाई
बहुत अच्छा हुआ कि चले आये हम
परदेस में भेड़ बकरियों की तरह रहने की बजाय
देस में आदमी की तरह तो रहेंगे
तीन
मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ वाकई
बहुत प्यार है मुझे तुमसे किन्तु
दवाइयाँ बहुत महँगी आती हैं तुम्हारी बीमारी की और
आलिंगन करते हुए दम फूलने लगता है मेरा भी
बावजूद इसके मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
गर्मियाँ इतनी तेज हैं कि सिर भन्ना रहा है और
आँधियाँ रेत के बगूले लेकर आ रही हैं छत पर
बिजली गायब है दो-तीन घण्टे से और
पानी कल भी आएगा या नहीं इसकी चिन्ता में
हम दोनों बहुत परेशान हैं अभी
रात का दूसरा पहर शुरू ही हो रहा है कहीं
बहुत दूर से सुनाई दे रहा है झींगुरों का समवेत-संगीत
बीच-बीच में गूँज पड़ती है उलूक-ध्वनि
कर्कशता का सीधा रिश्ता जोड़ते हुए अंधकार से
कोई कुत्ता विलाप कर रहा है बाहर सड़क पर
शायद कल ही आखिरी तारीख है
बैंक में जीवित प्रमाण-पत्र दाखिल करने की और
कई बार तुम्हारी शिकायत वाजिब भी लगती है
कि मेरा प्यार कम होता जा रहा है तुम्हारे प्रति
लेकिन मैं सच कहता हूँ अपने हृदय की साक्षी में कि
मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ अभी भी
बस तुम भी तो समझो समय की क्रूरता में लिथड़ी
मेरी विवशताएं यदि तनिक धैर्य से
महामारी फैल रही है मुल्क में और
हजारों लोग मर रहे हैं रोजाना बैमौत जबकि
जिन्दा लोग भी बहुत मुश्किलों में जी रहे हैं
मैं तुमसे दूर दूर रहता हूँ आजकल और बाहर भी
बहुत कम निकलता हूँ और घर में बहुत किल्लत है
खाने-पीने की चीजों और रुपयों पैसों की
कैसे बताऊँ तुम्हें कि बहुत परेशान हूँ मैं भी लेकिन
तुम भी तो समझो इस बुरे समय की सच्चाई
कि दिल में बहुत प्रेम होने के बावजूद
अभी मैं बहुत मजबूर और पाबन्द हूँ
तुम्हें शायद पता नहीं कि
सिर्फ इसीलिए छोड़ दिया मैंने सिगरेट पीना
चार
नदियों की जलधारा पर बहे जा रहे थे शव
नदियों के किनारों की धरती में दफ़्न हो रही थीं लाशें
नदियों के तटों पर जलाये जा रहे थे मृतक
एक पवित्र नदी का पुत्र बना था शासक
असमय मरती हुईं ऐसे पुत्रों के पाप धोते
लाखों हत्याओं की साक्षी थीं हमारे समय की नदियाँ
लिखेगा ही भविष्य में कोई इतिहासकार
पाँच
गोबर का लेप करो
गौमूत्र से स्नान करो
गाय के पिछवाड़े नाक लगा कर
आक्सीजन ग्रहण करो
रामचरित मानस और गीता का
अखण्ड पाठ करो
सस्वर हनुमान चालीसा पढ़ो
श्मशान की राख का टीका लगाओ
घर के दरवाजे़ पर नींबू मिर्च लटकाओ
मरे हुए ऊँट का कपाल
सिरहाने रख कर सोओ
प्रधान जी की दाढ़ी के बाल का ताबीज़
दाहिनी भुजा पर बाँधो
कौअे की बीट से बनी कड़क चाय
पितरों को अर्पित करो
तड़ीपार के मारक मंत्र से
सिध्द किये हुए जल का आचमन करो
बाबाजी का सिखाया योग करो
सलवार पहन कर दौड़ लगाओ
थाली चिमटे बजाते हुए सारे दिन
रात के आठ बजे की प्रतीक्षा करो
आत्मनिर्भर बनो
भाग कोरोना भाग का जाप करो
अंधभक्ति में मग्न हो कर
विपक्षियों को गाली बको
महामारी भगाओ
सरकार के भरोसे मत रहो
सरकार आपदा में अवसर तलाश रही है
वह कुछ नहीं कर सकती
वह भव सागर मुक्त हो चुकी है
छह
मृत्यु नाच रही है मुल्क में चारों ओर
शहर-शहर गाँव-गाँव
सड़क-सड़क गली-गली
मृत्यु दबोच रही है लोगों को
बालक वृध्द नवयुवक
अकाल मृत्यु से मर रहे हैं स्त्री-पुरुष
अस्पतालों में जगह नहीं है और
चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिये हैं
औषधियाँ उपलब्ध नहीं हैं कहीं
प्राणवायु तक नहीं मिल पा रही
और कीड़े-मकोड़ों की तरह मर रहे हैं लोग
राजा बनवा रहा है नया महल कि
पुराना महल रास नहीं आ रहा राजा को
मृत्यु नाच रही है मुल्क में और
राजा को चिन्ता है अपने गैरकानूनी
सबूतों को सुरक्षित रखने की अभी
नहीं है उसकी सत्ता को खतरा
मृत्यु नाच रही है मुल्क में और
राजा के गुणगान कर रही है ग़ुलाम प्रजा
सात
हम लिखेंगे अपने समय के अँधेरे
जिन्हें अपने सीने में दबा कर रखा हुआ है हमने
अपने हिस्से की रौशनी के निमित्त
जीवित रखेंगे हम अँधेरी कोठरी की ताख पर
अपने भविष्य के दुर्दमनीय स्वप्न
हम लिखेंगे महामारी के समय में
आम लोगों के लिए जरूरी प्राणवायु को
संगृहीत करने वाले दुष्टों को पकड़ने में नाकाम
और झूठे भाषण देने वाले सत्ताधीशों का
घिनौना चरित्र और पूँजीवादी विकास का सत्य
हम लिखेंगे मृत्यु के बीच उमगती हुई
जीवन की असीमित सम्भावनाएं
हाँ साथी हाँ
हम लिखेंगे हत्यारी व्यवस्था के रहस्य और
उसे नष्ट करने को तत्पर अपना साहस हम
जरूर लिखेंगे
हमारी जीवित उम्मीद कोई कोने में दुबका हुआ
कचरा बिल्कुल नहीं है जिसे कि
बुहार कर फेंकने का अपराध करें हम जान-बूझ
हमारी उम्मीद वह सदाबहार है जो
हर मौसम में खिला रहता है अपनी दीप्त आभा लिये
उसे निगाहों से सहलाते रहेंगे हम
कि अगली बारिश तक बिखर जाएं सैकड़ों बीज
हमारी पीढ़ियों की उपजाऊ मिट्टी में हमारी उम्मीद
सदाबहार की तरह पनपेगी स्वत:
हम अपना समय लिखेंगे साथी
सत्ता के हजारों हजार प्रतिबन्धों के बावजूद
और हमारे ही बीच छिपे कपटी
सत्ता के अंधभक्तों की बहुसंख्या के बावजूद
हम अपना समय जरूर लिखेंगे
कोरोना काल की बेहतरीन अभिव्यक्ति… आपको हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनाएं राजेंद्र सर..
सहज और संवेदनाधर्मी कविताएँ । कवि कैलाश मनहर को बधाई ।