क्या है एल्गार परिषद? 2018 की पहली जनवरी को पुणे से पच्चीस किलोमिटर की दूरी पर भीमा कोरेगांव नाम का एक गाँव है, जहाँ पर दो सौ साल पहले पुणे के ब्राह्मण पेशवा और अंग्रेजों की लड़ाई हुई और अंग्रेजी फौज की महार रेजिमेंट के एक हजार से भी कम सैनिकों मे महार, कुणबी, मराठा तथा अन्य जातियों के भी सैनिक थे। लेकिन महार (डॉ बाबासाहब आंबेडकर की जन्मना जाति) के सैनिकों की संख्या ज्यादा थी। और इधर पेशवाओं के सैनिकों की संख्या ज्यादा थी। कोई कहता है कि बीस हजार! खैर, संख्या यहां कोई विचारणीय विषय नहीं है! लेकिन उस 203 साल पहले की लड़ाई मे पेशवाओं की हार और अंग्रेजों की जीत हुई! और शनिवारवाडा पर, पेशवा के किले की प्राचीर पर पेशवाओं की हार के कारण हमेशा के लिए ब्राह्मणों की सत्ता खत्म हुई।
इसमें मेरे जैसे स्वतंत्रता सेनानी के बेटे को भी धुलिया से पुणे बस से जाते समय आज से पचास साल पहले भीमा कोरेगांव का विजय स्तंभ देखकर अकसर गुस्सा आता था। (15-16 साल की उम्र में!) लेकिन डॉ बाबासाहब आंबेडकर ने जब से भीमा कोरेगांव शौर्य दिन मनाने की शुरुआत की और राष्ट्र सेवा दल के शिविरों और अभ्यास मंडल के कारण मेरी भारत की जाति व्यवस्था की समझ बदली, तो मुझे उम्र के शुरुआती दौर में आनेवाले गुस्से की जगह गौरव महसूस होने लगा!
ब्राह्मणवादी मानसिकता के कारण 2018 में तत्कालीन सत्ताधारियों को भीमा कोरेगांव शौर्य दिन मनाने की कल्पना से ही नफरत थी। दूसरी तरफ शौर्य दिन मनाने के लिए, वह भी दो सौ साल के उपलक्ष्य में, शौर्य दिवस मनाने की समिति का गठन साल भर पहले ही कर लिया गया था जिसमें राष्ट्र सेवा दल से लेकर महाराष्ट्र के ज्यादातर सामाजिक परिवर्तनवादी संगठन शामिल थे। शायद दो सौ से भी ज्यादा संगठनों ने मिलकर एल्गार परिषद की स्थापना की थी।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष पीबी सामंत एल्गार परिषद के अध्यक्ष चुने गए थे और मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटील से लेकर (राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष के नाते) मुझ समेत अनेक लोग एल्गार परिषद के सदस्य रहे हैं। और यह कमिटी दरअसल भीमा कोरेगांव शौर्य दिन मनाने के लिए स्थापित की गई परिषद थी क्योंकि भीमा कोरेगाव की लड़ाई का 2018 में दो सौ साल पूरे होने पर यह आयोजन किया गया था और पुणे के शनिवार वाडा में 31 दिसंबर 2017 के दिन न्यायमूर्ति पीबी सामंत की अध्यक्षता में वह सभा हुई जिसमें न्यायमूर्ति बीजी कोलसे पाटील से लेकर काफी वक्ता शामिल थे।
एक जनवरी 2018 के दिन भीमा कोरेगांव के विजय स्तंभ के पास देशभर से दलित और जाति-धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए काम करनेवाले लोग हजारों की संख्या में इकट्ठा हुए थे! लेकिन तत्कालीन ब्राह्मणवादी सरकार और उसकी छत्रछाया में पले हुए मनोहर भीडे और एकबोटे विगत बीस-पच्चीस सालों से पश्चिम महाराष्ट्र के बहुजन समाज के युवाओं को शिवाजी महाराज के बनाये किले के दर्शन के बहाने तथा शिवाजी महाराज व संभाजी महाराज के नाम पर जहर पिलाने का काम कर रहे हैं और उन्हीं लोगों ने एक जनवरी को भीमा कोरेगाव के दंगे को अंजाम दिया।
मैं यह इतने आत्मविश्वास के साथ इसलिए लिख रहा हूँ कि एक हफ्ते के भीतर, आठ जनवरी 2018 को पूरे दिन मेरी अध्यक्षता में जाँच कमिटी ने भीमा कोरेगांव, वढू बुद्रुक इत्यादि दंगाग्रस्त इलाके का दौरा किया और स्थानीय लोगों से लेकर पुलिस-प्रशासन से बातचीत करने के बाद ही हमने राष्ट्र सेवा दल की तरफ से रिपोर्ट मराठी, हिंदी और अंग्रेजी मे बनाकर जारी की और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने अपने डिसेंट जजमेंट मे वह संपूर्ण रिपोर्ट उद्धृत की है और पुणे के सेशन कोर्ट तथा मुंबई हाईकोर्ट में भी भीडे-एकबोटे की जमानत के खिलाफ इस्तेमाल करने की बात है, और मुख्य बात यह कि (पूर्व न्यायाधीश) जेएन पटेल जांच कमीशन (जो महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले में गठित किया है) के सामने भी राष्ट्र सेवा दल की रिपोर्ट मैंने खुद पुणे में जमा की है!
फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी एलगार परिषद के नाम पर हुई थी! जहाँ तक मुझे मालूम है कि एल्गार परिषद, 2017 से महाराष्ट्र के जातिनिर्मूलन आंदोलन से संबंधित दो सौ से भी ज्यादा संगठनों ने मिलकर, एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस के दो सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में, एक भव्य समारोह का आयोजन भीमा कोरेगांव में करने के लिए गठित किया था। और उसके एक दिन पहले पुणे के शनिवार वाडा के सामने बड़ी सभा करने और उसमें लोगों की जमकर भागीदारी सुनिश्चित करने तथा व्यवस्था संबंधी देखरेख के लिए एक कमिटी का गठन किया था, जिसका नाम एल्गार परिषद रखा गया था।
फादर स्टेन स्वामी के अलावा और भी जो लोग एल्गार परिषद के सिलसिले में जेल भेजे गए उनमें से ज्यादातर लोगों को मैं खुद काफी सालों से जानता हूँ! हमारे वैचारिक मतभेद जरूर हैं लेकिन इनमें से एक भी नहीं होगा जो भारत की एकता-अखंडता के साथ खिलवाड़ करता होगा, उलटे भारत के दलित, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यक समुदाय के सवालों को लेकर बरसों से ये काम कर रहे हैं और मैं इनके संपर्क में आया तो इसकी वजह भी ये मुद्दे ही हैं, जिन्हें लेकर राष्ट्र सेवा दल की स्थापना के समय से हम लोग सक्रिय रहे हैं।
यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि इन लोगों पर भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया गया है। यह मनगढ़ंत और बहुत ही बचकानापन आरोप है!
फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के समय वह अस्सी साल पार कर चुके थे। झारखंड में रहनेवाले अस्सी साल के स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी हुई एल्गार परिषद के नाम पर! बहुत ही हैरानी की बात है! और जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तभी से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी इसके तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने के बावजूद न्यायालय ने उसपर गौर नहीं किया। हालांकि कुछ-कुछ मामलों में न्यायालय ने सरकार के खिलाफ निर्णय दिया है लेकिन एल्गार परिषद के नाम पर गिरफ्तार किए गए लोगों के मामले में न्यायालय ने केवल सरकारी पक्ष की बातों को तरजीह दी है।
इन गिरफ्तारियों को तीन साल हो रहे हैं और सुनवाई नहीं हो रही है!
लिहाजा, फादर स्टेन स्वामी की मौत के लिए सरकार व प्रशासन के साथ-साथ न्यायपालिका भी जिम्मेवार है। फादर की मृत्यु के बाद हमारे देश के लेखकों, कवियों और कुछ सामाजिक सरोकार वाले लोगों के लेख और प्रतिक्रियाएं दे खकर लगता है कि अभी भी कुछ बचा हुआ है!