एक छोटा-सा अनुरोध
आज की शाम
जो बाजार जा रहे हैं
उनसे मेरा अनुरोध है
एक छोटा-सा अनुरोध
क्यों न ऐसा हो कि आज शाम
हम अपने थैले और डोलचियां
रख दें एक तरफ
और सीधे धान की मंजरियों तक चलें
चावल जरूरी हैं
जरूरी है आटा दाल नमक पुदीना
पर क्यों न ऐसा हो कि आज शाम
हम सीधे वहीं पहुंचें
एकदम वहीं
जहां चावल
दाना बनने से पहले
सुगंध की पीड़ा से छटपटा रहा हो
उचित यही होगा
कि हम शुरू में ही
आमने-सामने
बिना दुभाषिये के
सीधे उस सुगंध से
बातचीत करें
यह रक्त के लिए अच्छा है
अच्छा है भूख के लिए
नींद के लिए
कैसा रहे
बाजार न आए बीच में
और हम एकबार
चुपके से मिल आएं चावल से
मिल आएं नमक से
पुदीने से
कैसा रहे
एकबार…सिर्फ एकबार…