— अरुण कुमार त्रिपाठी —
विन्सेंट शीन ऐसे अमरीकी पत्रकार थे जिन्होंने बहुत साफ शब्दों में कह दिया था कि महात्मा गांधी की कभी भी हत्या हो सकती है। यह बात उन्होंने प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार और लेखक विलियम एल. शरर से कही और उसके बाद वे गांधी से मिलने अमेरिका से चल निकले। विलियम शरर वे चर्चित पत्रकार और लेखक हैं जिन्होंने `राइज एंड फाल ऑफ थर्ड रीक’ के अलावा `गांधी अ मेम्वायर’ जैसी किताब भी लिखी है। विन्सेंट शीन पाकिस्तान होते हुए भारत पहुंचे थे और जब भारत पहुंचे तो महात्मा गांधी अनशन कर रहे थे। वे अनशन करते हुए गांधी को नहीं देखना चाहते थे क्योंकि उन्हें गांधी को उस अवस्था में देखकर बहुत कष्ट होता था।
इसलिए वे 21 जनवरी को यानी जिस दिन गांधी का अनशन खत्म हुआ उस दिन बिड़ला भवन गए और लौट आए। बाद में उनकी 27 जनवरी 1948 को पहली बार गांधी से भेंट हुई और एक घंटे की वार्ता हुई। गांधी ने उन्हें अपना चेला बना लिया। गांधी से आध्यात्मिक रूप से तो वे बहुत पहले ही जुड़े हुए थे। वे दोबारा मिलने और गांधी के साथ वर्धा जाने के वायदे के साथ नेहरू जी के साथ उनकी रैली देखने अमृतसर गए। लेकिन उनकी फिर गांधी से मुलाकात नहीं हो सकी क्योंकि तीसरे दिन गांधी का हत्या हो गई।
विन्सेंट शीन ने गांधी पर दो चर्चित पुस्तकें लिखीं। इनमें एक पुस्तक का नाम है- लीड काइंडली लाइट, दूसरी किताब है- महात्मा गांधी ए ग्रेट लाइफ इन ब्रीफ। विन्सेंट शीन ने मुसोलिनी का रोम मार्च देखा था, 1927 की चीनी क्रांति देखी थी, 1929 का फिलस्तीन दंगा देखा था, स्पेन का गृहयुद्ध देखा था, इथियोपिया का युद्ध, 1945 का सेनफ्रांसिस्को कांफ्रेस और महात्मा गांधी की हत्या देखी थी।
विन्सेंट शीन लिखते हैं, “मैं उस आखिरी प्रार्थना स्थल पर था। शाम को 5.12 हो रहे थे। उन्हें 5.00 बजे आना था। सरकारी बयान कहता है कि वे 5.05 पर पहुंचे थे। वे प्रार्थना स्थल पर चढ़ ही रहे थे कि नाथूराम गोडसे उनके आगे झुका और उन्हें गोली मार दी। हत्यारा मानता था कि भारत और पाक में युद्ध होनेवाला है और गांधी उसे रोक रहे हैं। लेकिन गांधी की हत्या के बाद हत्यारे को युद्ध नहीं शांति मिली।”
विन्सेंट शीन पाकिस्तान होते हुए भारत आए थे और बाद में भी पाकिस्तान होते हुए अमरीका गए। उन्होंने लिखा है :
“मुझे पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में पूछा गया कि गांधी कैसे मारे गए। मुझे कुछ कठोर लोगों की आंखों में भी आंसू दिखे। शांति के इस देवदूत की हत्या पर सारे भारत और पाक में शोक मनाया गया। अगर उस समय भारत और पाक में युद्ध हुआ होता तो उसमें पूरी दुनिया को शामिल होना पड़ता। गांधी के बलिदान ने उसे बचा लिया, दिल्ली भारत और विश्व को। जैसी उन्होंने प्रार्थना की थी उनकी मृत्यु ने उनके जीवन के उद्देश्य को पूरा कर दिया। उनकी हत्या उसी तरह से हुई जिस तरह से इतिहास के आरंभ से धार्मिक लीलाएं होती रही हैं। उन्होंने नजरेथ के ईसा की तरह ही संपूर्ण मानवता के लिए युद्ध का वरण किया। जो जीवन पूरी तरह से भक्ति, बलिदान, अपरिग्रह और प्रेम के लिए समर्पित था उसका इससे सुंदर अंत हो नहीं सकता था।
“हमारे समय में इस व्यक्ति का कोई मुकाबला नहीं है। वह वैसा व्यक्ति था जो सभी को बराबर मानता था। जिस तरह सुकरात के बारे में पुराने दिनों में कहा जाता था वैसे ही इस व्यक्ति के बारे में कहा जा सकता है कि हम जितने लोगों को जानते हैं वह उनमें सबसे बुद्धिमान था और सबसे अच्छा था।’’
विन्सेंट शीन ने सुकरात से गांधी की तुलना करते हुए लिखा, “सुकरात ने कहा था कि एथेंसवासियों मैं आपका सम्मान करता हूं और आपको प्यार करता हूं, पर मैं आपके मुकाबले ईश्वर के आदेश का पालन करूंगा। जब तक मेरे पास शक्ति है मैं दर्शन पढ़ाने और उसका आचरण करने से नहीं हटूंगा।” विन्सेंट शीन के अनुसार गांधी के भीतर ‘सरमन ऑन द माउंट के लिए’ जो प्रेम था उसके कारण ईसाई लोगों को उनमें ईसा मसीह का काफी प्रभाव दिखता है। 1925 में ईसाई मिशनरियों से बात करते हुए गांधी ने कहा था, “मैं पूरी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि हिंदूवाद मेरी आत्मा को संतुष्ट करता है, वह मेरे अस्तित्व को पूरी तरह से परिपूर्ण कर लेता है और मैं भगवत गीता और उपनिषद में वह शांति पाता हूं जो मुझे सरमन ऑन द माउंट में नहीं मिलती।’’
लेकिन दो साल बाद वे यंग इंडिया में लिखते हैं, “मुझे सरमन ऑन द माउंट और भगवतगीता में किसी तरह का कोई फर्क नहीं दिखाई देता। ‘सरमन ऑन द माउंट’ जिस बात को रैखिक तरीके से व्याख्यायित करता है उसे भगवतगीता वैज्ञानिक फार्मूले का रूप दे देती है। गीता एक वैज्ञानिक पुस्तक नहीं है लेकिन यह प्रेम के नियम और त्याग के नियम को वैज्ञानिक रूप से स्थापित करती है। ‘सरमन ऑन द माउंट’ उसी नियम को अद्भुत भाषा में पेश करता है। न्यू टेस्टामेंट से हमें असीम सुख और आनंद मिलता है। मान लीजिए आज मेरे पास गीता न रहे और मैं उसकी सारी सामग्री भूल जाऊं पर मेरे पास सरमन की एक प्रति रहे।”
विन्सेंट शीन लिखते हैं कि गांधी ने पूरी दुनिया की आत्मा को छू लिया था। गांधी पर 1927 में रेने फुलम मिलर ने एक किताब लिखी। उसका शीर्षक था- लेनिन एंड गांधी। लेकिन तब तक गांधी को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। शीन लिखते हैं कि उन्हें पहला गंभीर झटका तब लगा जब गांधी ने नमक सत्याग्रह छेड़ा। उनके नमक सत्याग्रह ने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया और कुछ समय के लिए उससे पूरी दुनिया अभिभूत हो गई। “मैं ईश्वर के समुद्र तट पर जा रहा हूं। वहां मैं अपने हाथ से नमक बनाऊंगा और विदेशी सरकार मुझे गिरफ्तार कर लेगी और जेल में डाल देगी। लेकिन यह मेरा सच है और मैं इसके लिए अपनी जान दे दूंगा।’’ गांधी ने ऐसा कहा था।
विन्सेंट शीन ने लिखा है, “मैं बहुत दिनों तक गांधी को गंभीरता से नहीं लेता था। लेकिन सितंबर 1947 में जब गांधी कलकत्ता में दंगा शांत करा रहे थे तब मुझे लगा कि वे निश्चित तौर पर मार दिए जाएंगे।….उन्होंने कलकत्ता में चमत्कार किया। वे पंजाब के लिए चल दिए थे पर दिल्ली में रोक लिए गए। …मुझे उनकी शहादत इतनी सुनिश्चित लग रही थी कि मैंने उनके बारे में तमाम संपादकों से चर्चा की। लेकिन किसी की भारत में ज्यादा रुचि नहीं थी।’’
“मैंने होलीडे मैगजीन के टेड पैट्रिक से बात की और वे मेरा खर्च उठाने को तैयार हो गए। मैं 13 नवंबर को न्यूयार्क से लंदन के लिए रवाना हुआ। पेरिस, प्राग, वियना, रोम, काहिरा, कराची होते हुए कछुए की चाल से दिल्ली के लिए चला। मैं 26 दिसंबर 1947 को कराची पहुंचा। पाकिस्तान जिन्ना का जन्मदिन मना रहा था। मुझे लगा कि यह उनका आखिरी जन्मदिन होगा। मैं पाकिस्तान को देखना, समझना चाहता था लेकिन तब तक कराची में दंगा हो गया। इस बीच मैं गांधी की गतिविधियों के बारे में निरंतर पढ़ता रहता था। 13 जनवरी को उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उपवास शुरू किया। मैं इसे समझ नहीं पाता था। मुझे लगता था कि यह दूसरों पर दबाव डालने का प्रयास है पर उनके दिमाग में यह ईश्वर से एक प्रार्थना थी। यह समझते ही मेरी पाकिस्तान में रुचि समाप्त हो गई।’’
“पाकिस्तान में जब मैंने दिल्ली जाने की इच्छा यह कहते हुए जताई कि गांधी का जीवन खतरे में है तो उन्होंने मुझे मूर्ख समझा। एक पश्चिमी प्रभाव वाले युवक ने मुस्लिम युवक ने भी मुझसे सहमति नहीं जताई। मैं 14 जनवरी 1948 को दिल्ली पहुंच गया। होटल भरे हुए थे। मैं अमरीकी दूतावास गया जो इंपीरियल होटल के सामने था। वहां कैप्टन टामी एटकिन्स मिले। मैं देरी से आने के लिए अपने को लगातार कोसता रहा। मैंने नेहरू को पत्र लिखा।….गांधी के उपवास से भारत हिल गया था। बांबे और कलकत्ता का स्टाक एक्सचेंज बंद हो गया था।”
“द ताज के परिसर में अमरीकी दूतावास के लोग और कई पत्रकार थे। उन पत्रकारों में टाइम पत्रिका के बाब नेविल्ले और द संडे इवनिंग पोस्ट के मशहूर पत्रकार एडगर स्नो थे। मेरी चिंता यह थी कि मैं गांधी को देख पाऊंगा या नहीं। इस बीच नेहरू के सचिवालय से सात बार फोन आया। मैं जब रात में दस बजे नेहरू के आवास पर गया तो कोई गार्ड नहीं था। जैसे मोहल्ले में किसी के घर की घंटी बजाई जाती है वैसे मैने नेहरू के घर की घंटी बजाई। दरवाजा खुला तो देखा नेहरू के अलावा वहां मार्गरेट बर्क व्हाइट भी मौजूद थीं। बर्क व्हाइट नेहरू का इंटरव्यू कर रही थीं। उनके बाद मैंने बात शुरू की। मुझे लगा नेहरू थके हैं। नेहरू ने महात्मा के बारे में कहा कि उन्हें नहीं लगता कि महात्मा जी का काम समाप्त हुआ है। नेहरू ने सलाह दी कि गांधी जहां जाएं वहां जाओ। उन्होंने संकेत दिया कि उपवास जल्दी समाप्त होनेवाला है। मैं गांधी के साथ वर्धा जाना चाहता था।’’
विन्सेंट शीन की 27 जनवरी को गांधी से भेंट हुई। उनके साथ फोटोग्राफर हेनरी कार्टर भी थे। उनकी गांधी से एक घंटे बातचीत हुई। ये बातें दार्शनिक और आध्यात्मिक ज्यादा थीं। गांधी ने ईश्वर, सत्य और अहिंसा के बारे में अपनी सोच को साझा किया। गांधी ने कहा, “सच ही ईश्वर है। अहिंसा सत्य का अंतिम पुष्प है। ईश्वर आंतरिक चेतना है, वह कानून और कानून निर्माता है। मैं अब तक सोचता था कि ईश्वर ही सच है लेकिन अब मैं यह कहना चाहता हूं कि सत्य ईश्वर है। मेरे पिछले उपवास के दौरान सारे तर्क उसके विरुद्ध थे लेकिन कानून सारे तर्कों से ऊपर था (जो मेरे भीतर से बोलता था)। कानून (ईश्वरीय) तर्क को संचालित कर रहा था।’’
गांधी से जब पूछा गया कि क्या निश्चितता त्याग से पहले आती है? उनका जवाब था कि नहीं, पहले त्याग आता है तब निश्चितता आती है। गांधी कहते हैं कि त्याग अपने में जीवन का कानून है।