भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के वादे पर सत्ता में आयी थी, लेकिन उसने इसे जंगलराज में बदल दिया है। इस बात को महज राजनीतिक आरोप कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। यह आम अहसास बन चुका है और देश के अनेक पूर्व नौकरशाहों ने भी बाकायदा एक खुला पत्र जारी करके उत्तर प्रदेश में गवर्नेन्स के पूरी तरह चौपट हो जाने तथा कानून का शासन की घोर अवहेलना पर चिंता जतायी है। पत्र पर जिन 74 लोगों ने हस्ताक्षर किये हैं उन्होंने साफ किया है कि उनका किसी राजनीतिक दल से कोई वास्ता नहीं है, लेकिन वे ‘भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्ध हैं’ और बस इसीलिए उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है उसपर अपना दर्द बयान कर रहे हैं।
इस पत्र का देश के दो सौ से अधिक जाने-माने नागरिकों ने समर्थन किया है।
पत्र यह कहता है कि हम दिनोंदिन बढ़ती चिंता के साथ यह रेखांकित कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार ने गवर्नेन्स का ऐसा मॉडल पेश किया है जिसमें संवैधानिक मूल्यों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं और कानून के शासन की उत्तरोत्तर अवहेलना हो रही है।
आगे पत्र कहता है कि प्रशासनिक मजिस्ट्रेट और पुलिस समेत प्रशासन की सभी शाखाएं विफल हो चुकी हैं। पूर्व नौकरशाहों ने राज-काज और राज्य की संस्थाओं को हुए गहरे नुकसान पर चिंता जतायी है।
इस संदर्भ में पत्र जारी करनेवालों ने गैरकानूनी हिरासत, आपराधिक मामलों में फंसाने, और असहमति को कुचलने के लिए असहमत लोगों से वसूली के के उदाहरण दिये हैं।
अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने हमला किया। राज्य में विरोध प्रदर्शन करनेवालों के खिलाफ 10,900 एफआईआर दर्ज की गयी। पुलिस फायरिंग में 22 लोग मार दिये गये। लखनऊ में कुछ ऐक्टिविस्टों के फोटो प्रदर्शित करनेवाले होर्डिंग लगाये गये। 41 बच्चों को हिरासत में लेने और यातना देने की घटनाएं हुईं। पत्रकार सिद्दीक कप्पन की हिरासत की अवधि बार-बरा बढ़ायी गयी।
पत्र में मुठभेड़ की घटनाओं पर भी सवाल उठाये गये हैं। पुलिस द्वारा मीडिया को जारी किये गये आंकड़ों का हवाला देते हुए यह बताया गया है कि 2017 से 2020 के बीच 6,476 ‘मुठभेड़ों’ में आपराधिक आरोप वाले 124 व्यक्ति मार डाले गये। योगी सरकार ने जो ‘मुठभेड़’ अभियान चलाया उसने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं। आंकड़े बताते हैं कि इन मुठभेड़ों में मारे गये ज्यादातर लोग ऐसे थे जिन्होंने या तो छोटे-मोटे अपराध किये थे या बेगुनाह थे, जिनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुए थे। मुठभेड़ों में मारे गए लोग अमूमन मुसलिम, दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के थे।
यह तथ्य अपने आप बहुत कुछ कह देता है कि अगस्त 2020 तक मुठभेड़ों में मारे गए व्यक्तियों में मुसलिमों का अनुपात बहुत ज्यादा था।
उन्मादी गुटों को खुली छूट
यह हवाला देते हुए कि हिंदू युवा वाहिनी तथा गोरक्षा के नाम पर हिंसा करनेवाले अन्य समूहों पर उनके हिंसक कृत्यों के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई, पूर्व नौकरशाहों और पूर्व आईपीएस अफसरों ने अपने खुले पत्र में कहा है कि “इन समूहों के सदस्यों को पुलिस मित्र के रूप में नियुक्त किया गया जिससे उन्हें अधिकार और वैधता मिल गयी तथा पुलिस इनके साथ मिलकर काम करने लगी। सामुदायिक पुलिस के नाम पर प्रांतीय रक्षक दल और S 10 के गठन के लिए जो हालिया प्रशासनिक आदेश जारी किये गये उससे उन्मादी गतिविधियों को संस्थागत शक्ल देने की प्रक्रिया और आगे बढ़ायी गयी है।”
लव जिहाद, गिरफ्तारियां और भेदभावपूर्ण जांच
पत्र यह कहता है कि गैरकानूनी धर्मान्तरण पर रोक का कानून ध्वनिमत से पारित किया गया जबकि लव जिहाद का जो हौवा खड़ा किया गया था उसके पीछे न तो अनुभव का, न कानून का कोई आधार था। यह कानून उन बेगुनाह मुसलिम पुरुषों को मुकदमों में फंसाने के लिए इस्तेमाल किया गया है जिनका किसी हिंदू स्त्री से प्रेम का या रूमानी रिश्ता था, या जिन्होंने किसी हिंदू महिला से विवाह किया। अध्यादेश जारी होने के सिर्फ एक माह के भीतर 16 मामलों में 86 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किये गये, विवाह या प्यार के लिए धर्मान्तरण के आरोप में। 54 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें मुख्य आरोपी के दोस्त और परिजन भी शामिल थे।
पत्र के मुताबिक मौजूदा उप्र सरकार ने सत्ता में आते ही अपनी मुसलिम विरोधी मानसिकता जाहिर कर दी थी। पत्र में यह आशंका जतायी गयी है कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार के ऐसे कारनामों पर रोक नहीं लगायी गयी तो वह राज्य को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और अव्यवस्था के दलदल में ले जा सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का दुरुपयोग
नेशनल सिक्युरिटी ऐक्ट (एनएसए) यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) को एक खतरनाक निरोधक कानून बताते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा है कि अधिकारी इस कानून का मुसलमानों, दलितों और असहमत लोगों के खिलाफ खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक पिछले साल इस कानून के तहत 139 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किये गये, इनमें से 76 गोहत्या के आरोपी थे, 13 सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल थे, और 37 पर संगीन अपराधों के आरोप थे।
कोविड संकट से कैसे निपटा गया
उत्तर प्रदेश में मेडिकल सेवाओं को भगवान भरोसे छोड़ देने की हाई कोर्ट की कटूक्ति का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया है कि “गोरखपुर जिले के धनोली गांव में एक भी घर कोविड से अछूता नहीं बचा था। गांवों में बहुत-से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या तो बंद थे या वहां कोई स्वास्थ्यकर्मी नहीं था। लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। कहीं टेस्टिंग सेंटर नहीं था। आक्सीजन न मिलने से मरीजों का दम तोड़ देना आम बात थी।
पत्र आगे कहता है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने न सिर्फ आक्सीजन न मिलने की शिकायतों को खारिज कर दिया बल्कि जिन अस्पतालों ने आक्सीजन की कमी होने की बात कही, उनके खिलाफ पुलिस ने मामले गढ़ दिये।
सरकार की नाकामी का सबसे भयावह नजारा तब सामने आया जब गंगा में हजारों लाशें तैरती दिखीं, हजारों लाशें गंगा के किनारे रेत में दबा दी गयीं। उत्तर प्रदेश सरकार की कर्तव्यविमुखता राज्य के लोगों पर कहर बनकर टूटी और सारी दुनिया इसकी गवाह बनी। कोविड से राज्य में हुई मौतों को वास्तविकता से काफी कम करके बताया जा रहा है।
पत्र में की गयी मांगें
पूर्व नौकरशाहों के इस पत्र में संवैधानिक मानदंडों की बहाली के साथ ही अनेक मांगें उठायी गयी हैं, जैसे कि-
1. मनमाने ढंग से गिरफ्तार करने, यातना देने और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के हमले का सिलसिला बंद हो तथा संपत्ति के नुकसान के आरोप में वसूली के मनमाना कानून पर अमल रोक दिया जाए।
2. मुठभेड़ का गैरकानूनी, गैरसंवैधानिक चलन बंद हो।
3. उन्मादी गतिविधियों को संस्थागत रूप और वैधता देना बंद किया जाए।
4. ‘लव जिहाद’ की बाबत कोई अनुभवजन्य और कानूनी आधार तथा आधिकारिक तथ्य नहीं है, लिहाजा यह भ्रामक धारणा न फैलायी जाए।
5. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का दुरुपयोग बंद हो और जब कार्रवाई लायक पूरी तरह न्यायसंगत और ठोस आधार दिखे तो सामान्य दंड प्रक्रिया के प्रावधानों को ही लागू किया जाए।
6. कोविड जनित संकट से तत्परता से निपटा जाए, और शिकायतकर्ता को ही दोषी मानने की प्रवृत्ति बंद हो।
(‘द क्विन्ट ’ की एक खबर के आधार पर )
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