हिंदू और मुसलमान – राममनोहर लोहिया : आठवीं और अंतिम किस्त

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मकबूल फ़िदा हुसेन का बनाया चित्र। 

(देश में इस वक्त जो हालात हैं और जो राजनीतिक-सामाजिक चुनौतियां दरपेश हैं उनके मद्देनजर सभी संजीदा एवं संवेदनशील लोग हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अविश्वास की खाई पाटने तथा सौहार्द का रिश्ता मजबूत व जनव्यापी बनाने की जरूरत शिद्दत से महसूस करते हैं। इस तकाजे की एक समझ और दृष्टि बने, इस मकसद से डॉ राममनोहर लोहिया का 3 अक्टूबर 1963 को हैदराबाद में दिया गया भाषण बहुत मौजूं है। यह भाषण हिंदू और मुसलमान शीर्षक से छपता रहा है। हमने इसे आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर से प्रकाशित पुस्तिका से लिया है, जिसमें लोहिया का एक और प्रसिद्ध प्रतिपादन हिंदू बनाम हिंदू भी संकलित है।)

दुनिया का महासंघ भी कभी न कभी तो बनेगा। मैं चाहता हूं बने। प्रधानमंत्री साहब उसके लायक नहीं हैं, क्योंकि उन्हें गद्दी का इतना मोह है कि वे ऐसे सपने देख नहीं सकते। बनेगा, लेकिन पता नहीं अभी उसको कितने बरस, पचास वर्ष लगें, सौ वर्ष लगें, पता नहीं और ज्यादा वर्ष लग जाएं। वैसे तो मैं हिंदुस्तान-चीन के भी महासंघ का सपना देखता हूं। देखना चाहिए, क्योंकि चीन की मौजूदा राक्षसी सरकार हमेशा चीन पर राज करेगी ऐसी बात तो नहीं। कभी न कभी तो राक्षसी सरकार खत्म होगी। और हिंदुस्तान की जो गंदी सरकार है वह भी खत्म होकर के कोई अच्छी सरकार बनेगी। जरूर कोई न कोई दूसरे रास्ते निकलेंगे।

लेकिन जो आदमी चीन को और पाकिस्तान को एक सतह पर रखता है, हिंदुस्तानी होकर के, उसको कोई भी जरा भी इल्म नहीं है, उसको बुद्धि नहीं, विद्या नहीं है। कभी हिंदुस्तान-चीन एक राज्य रहे हैं? हिंदुस्तान-पाकिस्तान तो एक ही धरती के अभी-अभी दो टुकड़े हुए हैं। अगर दोनों देशों के लोग थोड़ी भी विद्या, बुद्धि से काम करते चल गए तो 10-15 वर्ष में फिर से एक होकर के रहेंगे। इसलिए इनको और चीन को एक सतह पर रखना बहुत जबरदस्त नादानी है।

मैं इस सपने को देखता हूं कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान फिर से किसी न किसी एक इकाई में बँधें।

यह काम अगले 5-10 वर्ष में हो सकता है। चीन के साथ यह काम नहीं हो सकता। अगले 20 वर्ष में नहीं हो सकता, 30 वर्ष में नहीं। 50 तक तो मैं नहीं जाता क्योंकि एक नई शक्ल दुनिया के सामने आ जाती है। इसलिए जो कोई आदमी दोनों को एक सतह पर रखे, चीन को और पाकिस्तान को, उससे आप बहस करना कि देखो आप गलती कर जाते हो।

पाकिस्तान के बंगाल में कौन लोग हैं? उनकी कौन-सी जबान है? मुसलमान समझते होंगे कि लिखावट, उर्दू वाली लिखावट, दाएं से बाएं चलने वाली, मुसलमानों की खास लिखावट है, और दूसरी बात यह कि इस कौम की खास लिखावट है। दोनों बातें बिलकुल अलग हैं। पाकिस्तान के जो भी 8 करोड़ या 9 करोड़ मुसलमान हैं उनमें से आधे से ज्यादा बंगाल में हैं। उनकी लिखावट यही नागरी वाली लिखावट है क, ख, ग वाली। उनकी भाषा बंगला है और लिखावट नागरी। उसी तरह, बहुत-से ईसाई समझते हैं कि उनकी लिखावट रोमन है और अंग्रेजी उनकी भाषा। और यह जो रेडियो चलता है हिन्दुस्तान का, उसमें सबेरे के वक्त वंदना सुनते हैं। कभी गीता से कुछ सुना देते हैं, कुछ रामायण से कुछ कुरान से और एकाध ईसाइयों की कविता या गाना सुनाते हैं। इसी वक्त तबीयत होती है कि रेडियो को तोड़ दिया जाए, क्योंकि हमेशा वह गाना मैंने अंग्रेजी में सुना, जैसे ईसू मसीह साहब अंग्रेजी जबान बोलते थे।

कोई ऑल इंडिया रेडियो को बताए जाकर के कि ईसू मसीह साहब की जबान अरमैक जबान थी, जो शायद अपनी हिंदुस्तानी के ज्यादा नजदीक है बनिस्बत अंग्रेजी के। लेकिन न जाने क्यों बेवकूफ लोग यही सोचते हैं कि ईसू मसीह साहब की जबान अंग्रेजी थी। तबीयत तो कई दफा होती है कि स्कूल खोला जाए जिसमें दुनिया के बारे में लोग जान जाएं। खैर। यह मैंने पूर्व पाकिस्तान या बंगाल की लिखावट के बारे में, भाषा के बारे में आपसे कहा कि वह कितनी मिली-जुली है।

उसी तरह, पाकिस्तान के इधर वाले लाहौर, कराची वाले हिस्से को देखो। अभी भी जब लोग मिल जाया करते हैं- कम मिलते हैं लेकिन जब मिलते हैं, दीवार तो जरूर आ गई है बीच में लेकिन कभी-कभी जब वह दीवार टूटती है- तो मजा आता है। अभी कुछ दिनों पहले एक आदमी आया था। वह पाकिस्तान की सरकार का अफसर था। मैंने उससे एक बात कही जो बिलकुल सही बात है,

कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान में जैसे और दो मुल्कों में दोस्ती होती है वैसी तो दोस्ती  हो नहीं सकती, क्योंकि जहां हमारी दोस्ती शुरू होगी, वह रुक नहीं सकती, दोस्ती बढ़ती ही चली जाएगी और बढ़ती चली जाएगी। कहीं न कहीं वह महासंघ या एके पर रुकेगी। उसके पहले नहीं।

और अगर वह दोस्ती नहीं होती तो दुश्मनी, युद्ध की जैसी स्थिति बनेगी, चाहे युद्ध हो न हो लेकिन युद्ध जैसी स्थिति रहेगी। हम दोनों एक ही जिस्म के दो टुकड़े हैं, इसलिए हमारे बीच में मामूली दोस्ती के सवाल मत उठाना। तब वह हंसा, कहने लगा, हां, वह बात तो आपकी मैं जानता हूं लेकिन इस वक्त आप मुझसे न करें तो अच्छा है। आप दूसरी बातें करें। मैंने कहा, कभी न कभी तो तुमको इस बात का सामना करना पड़ेगा कि दोस्ती होगी तो खुलकर होगी, नहीं तो फिर मामला रुक-रुका जाएगा।

मैं आपसे यह बात क्यों कह रहा हूं। कई दफा चीन वाले घमंड के साथ कहा करते हैं, हम 60 करोड़ हैं। 60 करोड़ का, 65 करोड़ का उनको घमंड है। हम भी थोड़ी अक्ल से काम लें, उदारता से, दयानतदारी से, तो क्या जाने हमारी भी तकदीर खुल जाए, तब हम भी घमंड से नहीं लेकिन ताकत से कह सकेंगे कि हम भी 60 करोड़ हैं। दोनों एक हैं, हिंदुस्तान-पाकिस्तान अलग-अलग नहीं, हम दोनों 60 करोड़ हैं। इतनी ताकत हम हासिल करें उसके लिए कुछ अक्ल की जरूरत होती है।

मैंने शुरू से आखिर तक जो आपको बताया, हिंदू-मुसलमान वाली, हिंदुस्तान-पाकिस्तान वाली बात, उसपर आप लोग छोटी-छोटी टोलियां बनाकर सोच-विचार करना। अगर इसमें से आपने कुछ नतीजा निकाला, जगह-जगह अपने मोहल्लों में टोलियां बनाईं, कहीं कोई सियासत खड़ी की, मिली-जुली सियासत, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों मिलकर आगे चलें, चाहे वह अंग्रेजी जबान को मिटाने के लिए, चाहे महंगी को खत्म करने के लिए तो अच्छा होगा। कितनी चीजें महंगी हो गई हैं। जैसे शक्कर है! मैंने आज ज्यादा उस पर जिक्र नहीं किया लेकिन आप जानते हो, शक्कर का दाम सवा रुपया, डेढ़ रुपया है लेकिन हमारा जो उसूल है, उसके मुताबिक शक्कर का दाम साढ़े तेरह आने, चौदह आने सेर होना चाहिए। हालांकि नौ आने सेर में शक्कर बनती है और उसे सरकारी टैक्स, नफा वगैरह लगाकर डेढ़ गुना तक– साढ़े तेरह आने सेर में बेचो। उसके लिए कुछ आंदोलन करो। सरकारी लूट के खिलाफ आंदोलन करो। पैसेवालों की लूट के खिलाफ आंदोलन करो। आप अपनी पार्टी को चुनो। पार्टी नहीं तो किसी एक मोर्चे में जाओ। कहीं कोई हैदराबाद शहर में नई जान पैदा करो कि जिसमें यह मालूम हो कि अब सब लोग आ गए।

मैंने आज खासतौर से हिंदू-मुसलमान की बात कही लेकिन आप याद रखना, यह बात इसी तरह से हरिजन, आदिवासी और पिछड़ी जाति वालों, औरतों के लिए भी समझ लेना, क्योंकि औरत तो जो कोई भी है, चाहे ऊंची जाति की, चाहे नीची जाति की, सबको मैं पिछड़ी समझता हूं और मैं क्या समझता हूं, आप जानते हो, औरत को हिंदुस्तान में, दुनिया में दबाकर के रखा गया है। उसे यहां बहुत ज्यादा दबाकर रखा गया है। मर्द ही मर्द सुन रहे हैं मेरी बात को। औरतें कितनी सुनने आई है? तो ये जितने पिछड़े हैं, इनको विशेष अवसर देना होगा, ज्यादा मौका देना होगा, तब से ये ऊंचा उठेंगे।

जब मैंने तीन आने वाली बात कही, यह जब मैं इन पिछड़ों की बात कहता हूं तो मेरा मकसद खाली एक होता है कि जो सबसे नीचे है उसके ऊपर अपनी आंखें रखोगे और उसको उठाओगे तो जो उसके ऊपर है वह तो खुद-ब-खुद ऊंचा उठेगा। सबसे नीचे है उस पर अपनी आंख रखो। मैं आपसे आखिर में यही प्रार्थना करता हूं कि इन सब चीजों पर खूब गंभीरता से सोच-विचार करना और बन पड़े तो हैदराबाद में एक नई जान पैदा करने की कोशिश करना।

(समाप्त )

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