16 जुलाई। मशहूर फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी शुक्रवार को अफगानिस्तान के कंधार प्रांत में अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच लड़ाई के दौरान मारे गए। उनकी मौत की खबर आयी तो यह सिर्फ एक पेशेवर पत्रकार की मौत की खबर नहीं थी, जिसने करियर में कोई खास मुकाम बनाया हो। दानिश की मौत ने तमाम जनसरोकारी लोगों को ग़म में डुबो दिया तो खासकर इसलिए कि वह ऐसे फोटो पत्रकार थे जो अपने कैमरे के जरिये हमेशा दुनिया को मानवीय कोण से देखते और दिखाते रहे।
चालीस साल के दानिश सिद्दीकी ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पढ़ाई की थी और एक टीवी पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बाद वह फोटो पत्रकार के रूप में न्यूज एजेंसी रायटर से जुड़ गये। वह रिपोर्टिंग असाइनमेंट पर अफगानिस्तान गये हुए थे। दानिश को 2018 में उनके सहकर्मी अदनान अबीदी और पांच अन्य के साथ पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया था। दानिश के खींचे कई फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुए, दुनिया भर में कवरेज में इस्तेमाल हुए और उन विशेष मौकों की पहचान बन गए। इनमें रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार की फौज के अत्याचार और रोहिंग्या लोगों के पलायन से लेकर भारत में मॉब लिंचिंग, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ की गयी क्रूरता और मजदूरों पर लाकडाउन के कहर तथा कोविड की दूसरी लहर के दौरान सामूहिक रूप से शवों को जलाने जैसे अनेक हृदयविदारक दृश्य शामिल हैं। किसान आंदोलन की भी उनके द्वारा ली गयी कई तस्वीरें यादगार बन गयीं। आज जब अपवादों को छोड़कर, मीडिया के संवेदनहीन हो जाने की शिकायतें आम हैं, दानिश सिद्दीकी का न रहना और भी ग़मगीन बनाता है। उनकी मौत गवाह है कि किस तरह वह खतरे उठाकर भी अपना काम करते रहे। और आखिरकार काम के दौरान मारे गये। समता मार्ग की ओर से श्रद्धांजलि।