— अशोक माथुर —
भारत और पाकिस्तान में फैले हुए थार के रेगिस्तान ने अनेक उथल-पुथल देखी है। मुअनजोदड़ो से लेकर रंग महल, पल्लू व सरस्वती घाटी सभ्यता का उजड़ना और निर्जन रेगिस्तान में मानव सभ्यताओं का पतन होना एक गम्भीर सबक वर्तमान युग के लिए हो सकता है।
देश के अप्राकृतिक विभाजन के साथ ही थार का रेगिस्तान दो भागों में बँट गया। कभी किसी ने गम्भीरता से यह नहीं सोचा कि पानी क्या कुछ नहीं कर सकता। हवा, पानी और आग आज भी सर्वशक्तिमान हैं। यह बात शासक व शासित दोनों को भली-भांति समझ लेनी चाहिए। विकास की अन्धी दौड़ में रेगिस्तान तक तिब्बत की मानसरोवर झील का पानी लाने की कोशिश को इंसानों की लगन व मेहनत का परिणाम माना जा सकता है। प्रकृति इंसानों द्वारा बनायी गयी देश व राष्ट्रों की सीमाओं को स्वीकार नहीं करती। इंसान द्वारा सीमाएँ खींच लेने के बावजूद हवा और पानी किसी राजनेता की इच्छा से संचालित नहीं होते।
भारत में जो थार का हिस्सा है उसमें उत्तर-पश्चिमी राजस्थान व दक्षिणी पंजाब की शक्ल को हिमालय के पानी ने बदल दिया। विशेषकर राजस्थान के रेगिस्तान में पिछले सौ सालों से गंग, भांखड़ा व इंदिरा गांधी नहर ने एक बार फिर सरस्वती घाटी सभ्यताओं को जीवित कर दिया। सतलज, व्यास व रावी के पानी से रेगिस्तान में फसल लहलहा उठी और करोड़ों लोग पश्चिमी राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के इलाकों में खेती, उद्योग और व्यवसाय करने लगे। पेट भरने पर स्थानीय लोगों का भटकना बंद हो गया और शिक्षा व संस्कृति का भी विकास होने लगा।
हमारी इस खूबसूरत विकास यात्रा की सबसे बड़ी वजह पानी ही तो है। कल्पना कीजिए अगर नहरी तंत्र किसी भी कारण से तबाह हो जाता है तो क्या हम सदियों पहले सरस्वती नदी और हकड़ा से उजड़ने वाली सभ्यता की तरह फिर से बर्बाद होकर भटकने के लिए मजबूर नहीं हो जाएंगे?
नहरी तंत्र में पानी हिमालय और पंजाब के बाँधों से आता है और इन बाँधों में हिमालय के पिघलते हुए ग्लेशियरों व बर्फ के पिघलने से आता है। इन सबसे ऊपर जाएँ तो पता चलता है कि चीन के तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील का पानी हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी के माध्यम से आगे बढ़ता है।
हर साल यह समाचार आता है कि बाँधों में पानी कम है। थिन, पांग, भाखड़ा इत्यादि छोटे-बड़े बाँधों में पानी का संग्रहण कम क्यों होने लगा। गर्म होती जलवायु से पिघलने वाली बर्फ का पानी कहां जाने लगा है। हिमालय की छोटी-बड़ी नदियों के कैचमेंट एरिया का क्या हाल है? भू-स्खलन से होनेवाली मिट्टी (गाद) कहां जाती है। खरबों रुपये लगाकर जो बाँध बनाये गये उनमें भराव की क्षमता क्या है? उनमें मिट्टी आ रही है तो उसको रोकने व निकालने की क्या कोई व्यवस्था की गयी है?
मानसरोवर झील हमारी अंध-धार्मिकता के लिए जरूर चर्चा में आती है लेकिन भारत और चीन के बीच, उसके पानी को लेकर क्या कोई चर्चा की गयी है। सीमा रेखा के झगड़े हम कब सुलझा पाएँगे? यह तो शासकों की मर्जी पर है। सीमाएँ शासकों ने बनायी हैं। लेकिन हिमालय, उसकी बर्फ, झील, पानी व प्रकृति तो कुदरत की देन हैं।
हिमालय का वरदान पूरे जीव-जगत के लिए समान रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। चीन, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश इत्यादि हिमालय-पुत्रों के देश क्या पानी को लेकर कोई साझा-समझ आपस में विकसित कर सकते है। हिमालय पुत्रों को पानी को लेकर साझा-समझ विकसित करनी पड़ेगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो खरबों रुपयों के विकास का ढकोसला हमें एक बार फिर उजाड़ देगा।
(कल दूसरी किस्त)