तेज बारिश के बावजूद किसान संसद चली, कान्ट्रैक्ट खेती पर हुई बहस

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28 जुलाई। बुधवार को 200 किसानों का एक और जत्था पहले की तरह अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से सिंघू बॉर्डर से दिल्ली पहुंचा। भारत की संसद के समानांतर चल रही किसान संसद के पांचवें दिन, 2020 में अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके से केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून पर बहस हुई।

बहस में भाग लेने वाले कई सदस्यों ने कॉन्ट्रैक्ट खेती के साथ अपना निजी अनुभव भी साझा किये। इसमें किसानों के पूरे सत्र की मेहनत के बाद कंपनियों द्वारा उपज को एक या दूसरे बहाने की आड़ में अस्वीकार कर देना शामिल था। उन्होंने इस बारे में बात की कि कैसे यह केंद्रीय कानून कॉर्पोरेट खेती और संसाधन हथियाने के बारे में है। पर्यावरणीय बिगाड़ के अलावा, कॉन्ट्रैक्ट खेती से खाद्य सुरक्षा पर संभावित खतरे पर प्रकाश डाला गया। सदस्यों ने किसानों के साथ क्रूर मजाक और कानून (“मूल्य आश्वासन”) के नाम में विडंबना की ओर भी इशारा किया, जबकि यह कुछ और ही था। कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून पर बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी।

संसद में भी किसान मुद्दों की गूंज

जबकि किसान संसद ने विस्तृत विचार-विमर्श और बहस के अपने अनुशासित तरीके को जारी रखा, भारत की संसद ने एक और तस्वीर पेश की। लेकिन वहां भी कृषि आंदोलन की विषय-वस्तु परिलक्षित हुई। प्रश्नकाल ने किसानों की चिंताओं और वर्तमान संघर्ष को दर्शाया। संसद भवन में प्ले-कार्ड ले जाकर प्रदर्शित किया गया। संसद के सातवें दिन, सदन को बार-बार स्थगित करना पड़ा। संयुक्त किसान मोर्चा की विज्ञप्ति के मुताबिक सात विपक्षी दलों ने कृषि कानूनों सहित महत्वपूर्ण मामलों पर भारत के राष्ट्रपति को एक संयुक्त पत्र भेजा है, वहीं 14 दलों ने अपनी अगली कार्रवाई की योजना बनाने के लिए एक संयुक्त बैठक की, जब सांसद स्थगन प्रस्ताव नोटिस भी दे रहे थे।

एक कानून मछुआरों के खिलाफ भी

जहां लाखों किसान जो फसलों और बागों की खेती करते हैं, या पशुपालन करते हैं, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कृषि कानूनों के खिलाफ आठ महीने से अधिक समय से 3 कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं किसानों की एक अन्य श्रेणी यानी मछुआरे भारतीय समुद्री मात्स्यकी विधेयक 2021 के खतरे का सामना कर रहे हैं। यह विधेयक वर्तमान सत्र में संसद में पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध है। विधेयक का प्रारूपण गैर-भागीदारी वाला रहा है जिसमें मछुआरों से परामर्श या उन्हें प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है।

मछुआरों के संगठन कह रहे हैं कि यह भारत सरकार द्वारा मछुआरे समुदायों की उपेक्षा और अनदेखी है। समुद्री मात्स्यकी विधेयक राज्य सरकार की शक्तियों का उल्लंघन और उनकी वित्तीय स्थिति को भी कमजोर करता है। इस विधेयक में पंजीकरण और लाइसेंस प्रक्रिया बनाई गई है जो पारंपरिक मछुआरे समुदायों के लिए बेहद कष्टमय है और उनके जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है। मछुआरों के संगठन इस ओर भी इशारा कर रहे हैं कि कैसे यह विधेयक समुद्र से मछली पकड़ने के संसाधनों को कॉर्पोरेट के द्वारा अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विधेयक में और भी कई गंभीर खामियां हैं, और मछुआरा संगठनों की मांग है कि इसे संसद में न लाया जाए। तमिलनाडु जैसी राज्य सरकारें भी इस मुद्दे को केंद्र सरकार के सामने उठा रही हैं।

बारिश में मोर्चा

किसानों के विरोध स्थलों पर बुधवार को तेज़ बारिश होती रही। इन ‘विरोध बस्तियों’ में किसान खुशी-खुशी और बिना किसी शिकायत के अपनी दिनचर्या जारी रखे हुए थे। जंतर मंतर पर किसान संसद में भी बारिश से कार्यवाही बाधित नहीं होने दी गई, और सदस्यों ने समय सीमा का पालन करते हुए विषय पर विस्तार से चर्चा की। इस संसद में शामिल किसान प्रतिनिधियों ने गीले फुटपाथ पर बैठकर दोपहर का भोजन खुशी-खुशी किया। पिछले सप्ताह की रिपोर्टों के अनुसार, इस तरह की कमी और असमान वर्षा के कारण महाराष्ट्र (जो कुछ स्थानों पर बाढ़ और अन्य स्थानों में वर्षा की कमी से जूझ रहा है), राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि में बुआई में कमी आई है। हमेशा की तरह, ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में किसानों के लिए सरकार की ओर से कोई सुरक्षात्मक तंत्र नहीं है।

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