1 अगस्त। वर्ष 2021 गोवा मुक्ति संघर्ष की 75वीं जयंती और गोवा की पुर्तगाल से से साढ़े चार सौ बरस की गुलामी के बाद आजादी की 60वीं जयंती का वर्ष है। समाजवादी समागम की ओर से भारत की विदेशी राज से आज़ादी के इस अंतिम अध्याय के सेनानियों की कुर्बानी और साहस के सम्मान में पूरे वर्ष विविध कार्यक्रमों का निर्णय लिया गया है। इस क्रम में अबतक 1 मई को तीन किताबों का पुनर्प्रकाशन और लोकार्पण तथा 18 जून को एक राष्ट्रीय आभासीय परिचर्चा (वेबिनार) के बाद 31 जुलाई को ‘गोवा मुक्ति संग्राम जयंती संवाद’ संपन्न हुआ।
डॉ. अनिल ठाकुर (दिल्ली विश्वविद्यालय) के संचालन में इसका शुभारम्भ इतिहासकार डॉ. प्रजल साखरदांडे द्वारा गोवा मुक्ति संघर्ष के 15 बरस के कालखंड के रोमांचक विवरण से हुआ। डॉ. टी.बी. कुन्हा को ‘गोवा मुक्ति का जनक’ (फादर ऑफ़ गोवा लिबरेशन मूवमेंट) बताते हुए डॉ. प्रजल ने रेखांकित किया कि समाजवादी स्वतन्त्रता सेनानी डॉ. राममनोहर लोहिया द्वारा 18 जून को जलायी मशाल गोवा के आजाद होने तक गोवा और भारत का मार्गदर्शन करती रही। इसमें गांधी का संरक्षण था और गांधीमार्गियों, समाजवादियों, कम्युनिस्टों, राष्ट्रवादियों और अनेकों जन-संगठनों की एकता का बल था। इसीलिए फासिस्ट सालाजार के बेहद बर्बर व्यवहार के बावजूद आजादी का सपना साकार हुआ। इसमें महिलाओं और युवाओं की प्रशंसनीय भूमिका थी।
गोवा आन्दोलन के बारे में अंग्रेजी साप्ताहिक ‘जनता’ (मुंबई) के विशेषांक और अन्य साहित्य के सम्पादक कुर्बान अली (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली) ने गोवा मुक्ति से जुड़े तीन प्रश्नों को रेखांकित किया – 1. गोवा ही पूरे भारत में यूरोपिय उपनिवेशवाद का पहला शिकार बना लेकिन इसको अपनी मुक्ति के लिए सबसे आखिर तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। क्यों? क्या इसके लिए गोवावासियों को समुचित राष्ट्रीय सहयोग के बिना प्रायश्चित हो पाएगा? 2. गोवा मुक्ति संघर्ष में हर धर्म और प्रदेश की हिस्सेदारी थी लेकिन क्यों इसकी चर्चा में मुस्लिम आन्दोलनकारियों की चर्चा नहीं सुनाई पड़ती है? और 3. गोवा के आन्दोलन में शुरू से अंत तक सर्वधर्म सद्भाव की भावना की प्रधानता थी फिर भी गोवा मुक्ति के बाद के साठ बरसों में साम्प्रदायिकता क्यों फैली है?
विधि विशेषज्ञ और स्त्री-सरोकारों की प्रवक्ता डॉ. अल्बेर्तीना अल्माइदा ने गोवा के राजनीतिक विमर्श में ‘राष्ट्रीयता’ के बिगड़ते विमर्श पर ध्यान देते हुए चिंता प्रकट की। इसकी सही तस्वीर को जानने के लिए स्त्री-दृष्टि, हिन्दुओं और ईसाइयों में व्याप्त जाति-व्यवस्था, और अमीर-गरीब के बीच की टकराहटों का भी महत्त्व है। उन्होंने कहा कि ‘राष्ट्रीय हितों’ की आड़ लेकर गोवा की खनिज सम्पदा, जलराशि और मछली व्यवसाय पर कब्ज़ा किया जा रहा है। गोवा की मुक्ति के बावजूद महिलाओं, मछुआरा समाज और अन्य वंचित समुदायों की लाचारी बढ़ी है। नशा समस्या इसी का एक शर्मनाक पहलू है।
साम्प्रदायिक एकता में जुटे और राष्ट्र सेवा दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुरेश खैरनार (नागपुर) ने इस ऐतिहासिक आन्दोलन में युवकों, विशेषकर राष्ट्रसेवा दल के कार्यकर्ताओं, विशेषकर तेजस्वी युवा नायक नाथ पाई की वीरता को याद कराते हुए अपनी बात शुरू की (सोशलिस्ट नेता नाथ पाई बाद में रत्नागिरी से लोकसभा के सदस्य भी रहे)। उन्होंने गांधी-लोहिया की धारा के हिन्दुओं की बजाय कट्टरपंथी संस्थाओं के प्रभाव-विस्तार को गोवा मुक्ति आन्दोलन के शहीदों के प्रति विश्वासघात कहा – ‘हिन्दुओं का कम से कम गोवा में ‘तालिबानीकरण’ नहीं होने देना चाहिए।’
जेपी के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन से सम्बद्ध और चार दशकों से गोवा में रचनात्मक कार्यों में जुटे कलानंद मणि ने गोवा मुक्ति संघर्ष के आदर्शों के अनुकूल सामाजिक–आर्थिक नवनिर्माण के अभाव की ओर ध्यान दिलाया। मणि के अनुसार 1961 में पुर्तगाल से आजादी मिलते ही पड़ोसी प्रदेशों से बड़ी संख्या में लोगों का आना और बसना हुआ है। इससे स्थानीय–प्रवासी, कोंकणी–मराठी और हिन्दू–ईसाई संबंधों में असंतुलन की तीन प्रमुख चुनौतियां पैदा हुई हैं। राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध लोगों को यह प्रश्न भी पूछना चाहिए कि क्या लिस्बन के प्रभुत्व से मुक्ति में सफल होने के बाद अब गोवा के जनसाधारण दिल्ली के वर्चस्व से त्रस्त हैं? क्योंकि दिल्ली के नीति निर्माता प्राय: गोवा की नहीं सुनते हैं।
चर्चा में प्रो. संजय सिंह (लखनऊ), अनिल गोस्वामी (जयपुर), संजय कनौजिया (दिल्ली) और श्रद्धा भारतीय (गोवा) ने भी योगदान किया।
अंत में अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. आनंद कुमार ने गोवा को बेहद लम्बी विदेशी गुलामी से पीड़ित क्षेत्र बताते हुए इसके नव-निर्माण में शेष भारत की विशेष संवेदनशीलता की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि गोवा मुक्ति के मंत्रदाता डॉ. राममनोहर लोहिया ने आह्वान किया था कि पुर्तगाल की गुलामी से आजाद होने के साथ ही एक नया दौर आएगा जिसके कम से कम पांच लक्ष्य होंगे – 1. गोवा जनतांत्रिक व्यक्तियों का बलशाली समाज बनेगा। इसमें पारंपरिक जड़ता की जगह स्त्रियों और पुरुषों को अपने व्यक्तित्व विकास का पूर्ण अवसर होगा। 2. हिन्दुओं और ईसाइयों की जातिवादी जकड़न की जगह जातिमुक्त समाज बनेगा। 3. धर्म मनुष्यों और ईश्वर के बीच का सरोकार होगा। 4. हर पंचायत में किसानों, मछुआरों और दस्तकारों की निर्धनता से मुक्ति की योजना बनेगी। और 5. गोवा को बाकी हिन्दुस्तान और पूरी दुनिया से जुड़ने के अपार अवसर होंगे। इसलिए आजादी के उल्लास के साथ ही आत्मसमीक्षा होनी चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. अनिल ठाकुर ने धन्यवाद प्रकाश किया।
विशेष सूचना : गोवा मुक्ति संघर्ष से जुड़े साहित्य के लिए निम्नलिखित संपर्क सूत्र हैं :
# जनता (अंग्रेजी साप्ताहिक) का गोवा विशेषांक (88 पृष्ठ, मूल्य 10 रुपये; डी-15, गणेश प्रसाद, नौशीर भरुचा मार्ग, मुंबई-40007)।
# गणेश मंत्री – गोवा मुक्ति संघर्ष (185 पृष्ठ, मूल्य 200 रुपये; आईटीएम यूनिवर्सिटी, एन. एच. 44, टूरारी, ग्वालियर–474001)
# इंदुमती केलकर – लाहौर किला जेल से गोवा की अग्वाद जेल तक (डॉ. राममनोहर लोहिया के संघर्षों का एक अध्याय, 48 पृष्ठ, मूल्य 40 रुपये; आईटीएम यूनिवर्सिटी, एन.एच–44, टूरारी, ग्वालियर-474001)
# चम्पा लिमये व कुर्बान अली (सम्पादक)- गोवा लिबरेशन मूवमेंट एंड मधु लिमये (अंग्रेजी) (पृष्ठ 228 (सचित्र) – मूल्य 200 रुपये) (आईटीएम यूनिवर्सिटी, एनएच-44, टूरारी, ग्वालियर- 474001)
# डॉ. राममनोहर लोहिया – एक्शन इन गोवा (अंग्रेजी) (86 पृष्ठ, मूल्य 150 रुपये; डॉ. राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन, यू 252 ए, 2 फ्लोर, शकरपुर, (बैंक ऑफ़ बड़ौदा के निकट, दिल्ली-110092)