— अजय खरे —
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में घर-घर जाकर चूड़ी पहनाने वाले तस्लीम नामक व्यक्ति को कुछ स्थानीय लोगों ने यह आरोप लगाकर उसके साथ मारपीट की कि वह हिंदू नाम रखकर चूड़ियां बेच रहा है। इस संबंध में प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा अत्यंत विवादित बयान देकर माहौल खराब करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने गृहमंत्री पद पर रहते हुए नामों को सांप्रदायिक नजरिए से देखा है। एक तरह से यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का गंदा खेल है जो मध्यप्रदेश के गृहमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति के पद और गरिमा के सर्वदा विपरीत है।
गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के हवाले से बताया गया है कि तस्लीम नामक चूड़ी बेचनेवाले व्यक्ति के पास दो अलग-अलग आधार कार्ड मिले हैं। एक व्यक्ति के दो आधार कार्ड कैसे बन गये इसकी जांच अवश्य होनी चाहिए। लेकिन प्रदेश के गृहमंत्री को यह समझने की जरूरत है कि हिंदू मुस्लिम नाम नहीं होते हैं। किसी भी नाम का धर्म से कोई ताल्लुक नहीं होता है। नाम पहचान और संबोधन है, जिससे कोई व्यक्ति जाना जाता है। दिवंगत फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार का मूल नाम युसूफ था लेकिन वह दिलीप कुमार के नाम से प्रसिद्ध रहे। चूड़ीवाला तस्लीम क्या वास्तव में नाम बदलकर चूड़ी बेचने और पहनाने का काम कर रहा था इस बात की जांच होना चाहिए। देश में कोई भी धंधा करने वाला आमतौर पर अपनी जाति धर्म के बारे में साइनबोर्ड नहीं लगाता है। यदि तस्लीम नाम बदलकर चूड़ियां बेच रहा था तो उसकी वजह जानने की जरूरत है।
आखिर यह नौबत कैसे आयी कि एक गरीब आदमी को कोई काम-धंधा करने के लिए अपना नाम बदलने की जरूरत महसूस हो? नाम बदलकर कहीं पर रहने या कुछ करने का अर्थ है कि वह अपनी पहचान छुपाना चाहता है। ऐसा अपराधी करते हैं, या भूमिगत दौर में क्रांतिकारी। तस्लीम इन दोनों श्रेणियों में नहीं आता। पता नहीं, उसपर जो आरोप मढ़ा जा रहा है वह सही या नहीं, लेकिन मान लें कि वह नाम बदलकर यानी हिंदू जान पड़नेवाला नाम बताकर चूड़ियां बेच रहा था तो उसे ऐसा क्यों महसूस हुआ कि घूम-घूम कर चूड़ियां बेचना है तो वह अपना नाम बदल ले?
जाहिर है, इसके पीछे यह डर रहा होगा कि अपना सही नाम बताने पर वह अपना काम नहीं कर पाएगा, या उसके साथ कुछ भी सलूक हो सकता है। डर का यह माहौल किसकी देन है? साफ है, यह माहौल उन लोगों ने बनाया है जो लोग नहीं चाहते कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच किसी भी स्तर पर सौहार्द रहे, जो दिन-रात नफरत का जहर उगलते रहने को ही देश-सेवा समझ बैठे हैं।
चूड़ियां बेचने और पहनाते समय तस्लीम ने यदि कोई गलत व्यवहार किया गया है तो निश्चित रूप से उसके ऊपर कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग देना जानबूझ कर माहौल बिगाड़ने और तनाव पैदा करने की मंशा का संकेत देता है। फिर किसी गुट या भीड़ को किसी को सजा देने का कोई हक नहीं है। यह तो तालिबानी तरीका है। क्या हम अपने देश को तालिबान के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं?
ऐसी घटनाएं भाजपा शासित सभी राज्यों में हो रही हैं, जहां भी पुलिस उसका आदेश मानने को बाध्य है वहां उपद्रवी तत्त्वों को, कानून के शिकंजे से बचा लेने का भरोसा दिलाकर, सांप्रदायिक तनाव भड़काने के काम में लगा दिया गया है। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने इंदौर की उपर्युक्त घटना के संबंध में जिस तरीके से पत्रकार वार्ता करके माहौल को शांत करने के बजाय बिगाड़ने का प्रयास किया है वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जहां गृहमंत्री का यह रवैया हो वहां शक पैदा होता है कि लिंचिंग की घटना में शामिल लोगों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। उत्तर प्रदेश में भी यही आलम है। किसी भी सरकार की पहली जिम्मेदारी कानून व्यवस्था की होती है। लेकिन भाजपा ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे के तहत इस बुनियादी तकाजे को भी भुला दिया है।