1. खो गया है
नदी भी है
और गांव भी है
बस
घाट कहीं खो गया है
दूर दूर रहने
या डूब डूब जाने
से अलग
एक शीतल स्पर्श का
बाट कहीं खो गया है
लहरें उठ रही हैं
सघन छायाएँ भी वृक्ष की हैं
खाटें बिछी हैं
नावें बँधी हैं
बस हलचल जीवन की कहीं दूर दूर तक नहीं है बिना
जिसके समय का
ठाट कहीं खो गया है!
2. स्त्री थी न
बिठाया तो गया था इसलिए कि
अपनी अग्नि-प्रतिरोधक चादर के चलते
वह बच जाएगी
और बच्चा जल जाएगा
लेकिन जब तपिश बढ़ी
होलिका ने चादर प्रिय प्रह्लाद को ओढ़ा दी
और स्वयं जल मरी
स्त्री थी न!
3. कलंक
हजारों वर्ष पुराना था हमारा धर्म
तैंतीस करोड़ भले ही केवल अवधारणा में हों
हमारे संज्ञान में भी थे सैकड़ों देवी-देवता
दर्जनों को तो हम सीधे जानते और मानते थे
कोई बंदिश नहीं
कोई आचार-संहिता भी नहीं
बस पवित्रता का एक सहज बोध था
देवता थे कुछ शास्त्रों-पुराणों में वर्णित
तो कुछ दंतकथाओं तक सीमित
हम किसी एक या दो या… सात को मानकर
हो सकते थे हिंदू
(मैं तो केवल अपने गाँव के डीहबाबा को मानता था
फिर भी हिंदू था)
फिर तुम आये
अर्धहत्यारे-अर्धसौदागर
हमें सिखाया :
देश एक है
संसद एक है
संविधान एक है
धर्म एक है
तो ईश्वर भी एक ही होना चाहिए न
बोलो : जय श्रीराम
हम पुरखों की सीख को याद करके बोले :
जय सियाराम
तो तुमने सुधारा
सिया भी नहीं केवल श्रीराम
पर यह क्या
मंदिर से निकाल कर कहाँ पहुँचा दिया
तुमने ईश्वर को
गणहत्या में भी जय श्रीराम
दंगे में भी जय श्रीराम
और अब चुनाव में भी जय श्रीराम
ईश्वर का विधान बदल दिया
धर्म का विधान बदल दिया
और इस तरह हमारी पहचान ही मिटा दी
अब हमें करुणा, सहअस्तित्व
और समावेशिता से नहीं
असहिष्णुता, घृणा और गणहत्या से
पहचाना जाने लगा
अधिक हिंदू होने के उन्माद में
हम रह कहाँ गये हिंदू
तुमने जीवन का संस्कार ही नहीं छीना
मौत का संस्कार भी नहीं किया हिंदू जैसा
अन्यधर्मियों की तरह धरती में दबा दिया
या नदी में बहा दिया
जल को प्रदूषित करने का कलंक लगाकर !
4. अल्टर ट्रुथ
आदमी तो चलो चुप्पी से भी दे देगा जवाब
लेकिन भाषा में कैसे दर्ज होंगी तुम्हारी करतूतें
तुम धूर्तता को ज्ञान का पर्याय बता रहे हो
और झूठ को समय का सच
अब इतने से तो यह बदलाव संभव नहीं
कि बहुत से लोग तुम्हारे साथ हैं
मुहावरे बनते और बदलते रहते हैं
लेकिन शब्दों के अर्थ और अभिप्राय बदलने में
युग बीत जाता है
अभी तो तड़ीपार का मतलब तड़ीपार ही है
और दंगाई का अर्थ दंगाई
वैसे ही जैसे पत्थरबाज का अर्थ पत्थरबाज है
अब किसे पता था संसद में रोने वाला हत्यारा
एक दिन पूरे सूबे को रुलाएगा
फिर भी अब तक रोना का मतलब रोना ही है
जैसे होना का मतलब होना
चोर कोई भी हो सकता या हो जा सकता है
मगर चोर होने पर कोई चौकीदार नहीं रह जाता
अब 1988 के आकाशवाणी पटना के किसी कार्यक्रम का बच्चा
2019 के चुनाव में वहीं अटका हुआ था
तो भाषा ने उसे कहां माफ किया
ठोस सच्चाइयां शब्दों की चालाकी से नहीं छुपतीं
गर्व से छाती किसी की भी फूलती है
लेकिन जब निर्लज्जता से फूलने लगती है
तो आदमी अपने सीने की लंबाई बताने लगता है
तुम्हारा झूठ बहुत पराक्रमी है
फिर भी तुम्हें डर लगता है
झूठ बोलो
खूब झूठ बोलो
खूब खूब झूठ बोलो
लेकिन झूठ ही बोलो
अपने कुर्ते की तरह सच को काट-छांट कर
ताकतवर झूठ का पहनावा मत बनाओ
इतने लोग तुम्हारे झूठ को सच मानते हैं
फिर तुम्हें ही अपने झूठ पर
सच्चा विश्वास क्यों नहीं है
सच तो यह है कि तुम डरे हुए हो
सबसे ज्यादा अपने झूठ से
डरा हुआ मैं भी हूं
लेकिन मेरा डर एक सुंदर चिकना खरगोश है
वह मुझे जितना डराता है
उससे अधिक खुद डरता है
किसी एक दिन उछलकर झाड़ी में छुप जाएगा
और अपने कान सिकोड़ लेगा
तुम्हारा डर एक बनैला सूअर है
भले ही उसके पैने दांतों पर तुम्हें गुमान हो
और उसमें बराह की छवि दिखे
अंदर ही अंदर किसी और से ज्यादा
वह तुम्हें लहूलुहान कर रहा है
5. एक दिन स्त्रियाँ
बैंक होगा
वहाँ स्त्रियाँ नहीं होंगी
विश्वविद्यालय होगा
टेलीविजन भी होगा
हस्पताल भी होंगे
पर स्त्रियाँ कहीं नहीं होंगी
उन्हें न तो पैसे की जरूरत होगी
न ही शिक्षा या इलाज की
आवश्यकता बस होगी तो केवल हिजाब की
काले बुर्कों में कैद कर
उन्हें डाल दिया जाएगा काली कोठरियों में
जहाँ कभी-कभी कुछ खौफनाक आवाजें आएंगी
बंदूकों की या अजानों की
औरतों के चीखने की या बच्चों के रोने की
धीरे-धीरे मिटती चली जाएंगी उजाले की स्मृतियाँ
सबसे ज़हीन स्त्रियाँ बस जुगत लगाती रहेंगी
कि पतियों की पिटाई से कैसे बचें
सबसे सुंदर स्त्रियाँ खैर मनाती रहेंगी
धर्मधुरंधरों की निगाहों से बचे रहने की
फुसफुसाहटों और सिसकियों तक
सीमित हो जाएंगी सबसे खूबसूरत आवाज़ें
कला केवल भोजन पकाने की रह जाएगी
वैसे करने को होगा बहुत कुछ
लेकिन रसोई और बिस्तर से बाहर कुछ भी नहीं
ज्ञान बस थोपे गये कर्तव्यों के पालन के लिए होगा
दहशत इतनी गहरी होगी
कि कई बार उसके होने का एहसास भी नहीं होगा
फिर एक दिन ब्लैक होल में तब्दील हो जाएंगी
काली कोठरियाँ
और संगीनों के साये में मुर्दा हो रहीं स्त्रियाँ
हमेशा के लिए उनमें दफ़्न हो जाएंगी
बच्चा जनने वाली कुछ मशीनों को छोड़कर !