अंतरराष्ट्रीय युद्ध विरोधी दिवस पर विचार गोष्ठी

0

1 सितंबर। बेहतर समाज और बेहतर दुनिया के लिए हमें हथियारों का बाजार और युद्ध का खेल बंद करना होगा। यह बात गाँधीवादी विचारक अनिल त्रिवेदी ने अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन द्वारा 1 सितम्बर, अंतरराष्ट्रीय युद्ध विरोधी दिवस, पर आयोजित विचार गोष्ठी में कही। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में हथियारों की होड़ मची है, मगर इस पर नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार राष्ट्र संघ जैसी संस्थाएं निष्प्रभावी साबित हो रही हैं। दुनिया में जारी तमाम युद्धों के पीछे वे ताकतें हैं जिनकी अर्थव्यवस्था का आधार ही हथियारों का उत्पादन एवं बिक्री है।

चर्चा में भाग लेते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने कहा कि गत कुछ वर्षों में पूरे देश में युद्ध जैसा उन्मादी माहौल बना दिया गया है। अल्पसंख्यकों एवं दलितों के प्रति नफरत आज समाज में पैठ गयी है। ऐसे वक्त में अमनपसंद आम नागरिकों को, खासकर युवा पीढ़ी को इस साजिश के पीछे छिपी हकीकत को समझकर इस साजिश को असफल बनाना होगा। लेखक एवं चिन्तक सुरेश उपाध्याय ने कहा कि कोरोना काल में दुनिया के देशों का सकल घरेलू उत्पाद घटा मगर सुरक्षा के नाम पर किया गया युद्ध का खर्च बढ़ा जिसका उपयोग दुनिया में केवल भय पैदा करने के लिए किया जा रहा है। जब पूरी दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत हिस्सा युद्ध और संघर्षों पर खर्च हो रहा है तो शान्ति कैसे हासिल होगी?

श्रमिक नेता कैलाश लिम्बोदिया ने कहा कि अमरीका दुनिया के तमाम देशों में आतंकवाद को बढ़ावा देता है और फिर आतंकवाद से निपटने के नाम पर उन देशों में दखल देता है। इराक से लेकर अफगानिस्तान तक इसके उदाहरण हैं। किसान संघर्ष समिति के रामस्वरूप मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के घटनाक्रम ने फिर यह साबित किया है कि हथियार समस्या का समाधान नहीं हैं। प्रलेस के सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि भारत की विदेश नीति में हमेशा ही पाकिस्तान का विरोध शामिल रहा है और हमारे समाज में यह नफ़रत अब बर्बरता की हद तक पैठ गयी है। अफगानिस्तान के सम्बन्ध में भी यही स्थिति बन रही है।

एप्सो की राज्य इकाई के अध्यक्ष जसविंदर सिंह ने कहा कि युद्ध और साम्राज्यवाद हमें उन्मादी बनाते हैं। यह एक विडम्बना थी कि सर्वकालिक उच्च बेरोजगारी और महंगाई के दौर में भी बालाकोट के नाम पर देश में चुनाव जीता गया। दुनिया को बारह बार खत्म करने जितने हथियार तो हमारे पास हैं मगर एक महामारी से निपटने में हम अक्षम हैं। समाजवाद शांति की पहली आवश्यकता है।

कार्यक्रम संयोजक एवं एप्सो राज्य इकाई के महासचिव अरविंद पोरवाल ने कहा कि युद्ध का खमियाजा मानव समाज और मानवता को भुगतना पड़ता है। युद्ध न केवल विकास के संसाधनों को लील रहे हैं बल्कि इंसानियत और सभ्यताओं को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। केशरसिंह चिडार और चुन्नीलाल वाधवानी ने भी चर्चा में भाग लिया।

अध्यक्ष मंडल में एप्सो राज्य इकाई के संरक्षक आनंद मोहन माथुर, शिवाजी मोहिते तथा आलोक खरे थे। आभार प्रदर्शन इन्दौर इकाई के महासचिव सुनील चंद्रन ने किया। कार्यक्रम में श्यामसुंदर यादव, बी एस सोलंकी, प्रकाश पाठक, शैला शिंत्रे, किशोर कोडवानी, दिनेश कोठारी, सुन्दरलाल वर्मा, एल एन पाठक, रामासरे पाण्डेय, सतीश जैन, भूपेंद्र जैन, विजय दलाल, सी एल सर्रावत , अरुण चौहान, रुद्रपाल यादव, कैलाश गोठानिया, भागीरथ कछवाय, श्याम पाण्डेय, योगेन्द्र माहवार, सुबोध भौरास्कर, रामदेव सायडीवाल , शफी शेख , गीतेश शाह , जी बी राय , मोहनलाल वर्मा, सोहनलाल शिंदे, भारत सिंह ठाकुर, ओम प्रकाश खटके, सारिका श्रीवास्तव, अजय बागी आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।

– अरविन्द पोरवाल

Leave a Comment