5 सितंबर। रविवार को गौरी लंकेश के शहादत दिवस पर उनके मित्रों, सहयोगियों और जनांदोलनों से जुड़े कई साथियों ने उनकी समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया।
जैसा कि सब जानते हैं, 5 सितंबर को ही 2017 में बेंगलुरु में गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी। यह हत्या 2014 में केंद्रीय सत्ता में भाजपा के पूर्ण बहुमत के साथ आने के बाद तेजी से बढ़ती असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की आजादी को कुचले जाने और हिंदुत्व के नाम पर उन्मादियों को खुली छूट दिए जाने की एक प्रतीक घटना बन गयी।
गौरी लंकेश कन्नड़ के विख्यात साहित्यकार, पत्रकार और समाजवादी चिंतक पी लंकेश की पुत्री थीं और अंग्रेजी की जानी-मानी पत्रकार थीं। लेकिन पिता के न रहने पर वह दिल्ली की अंग्रेजी पत्रकारिता की दुनिया छोड़कर कर्नाटक लौट आयीं, और पिता के द्वारा स्थापित-संपादित पत्र को संभालने का निश्चय किया। यहीं से उनकी पत्रकारिता और उनके लेखन के नये दौर की शुरुआत हुई और वह अंग्रेजी के अलावा कन्नड़ की भी जानी-मानी पत्रकार हो गयीं।
लेकिन उनका लेखन और उनके द्वारा संपादित पत्र भाजपा समेत संघ परिवार की आंखों की किरकिरी बना रहा क्योंकि उसमें असहिष्णुता तथा सांप्रदायिकता बढ़ानेवाली नीतियों व कारगुजारियों की कड़ी आलोचना रहती थी और इस सब से पाठकों को आगाह किया जाता था।
पत्रकार के रूप में यह भूमिका निभाने के अलावा गौरी लंकेश समता, न्याय और सौहार्द के लिए होनेवाले प्रयासों तथा आंदोलनों में भी शिरकत करती थीं और जन आंदोलनों के कार्यकर्ताओं के लिए मित्र व मार्गदर्शक थीं। इसलिए स्वाभाविक ही उनकी हत्या जन सरोकारी पत्रकारों, लेखकों, बौद्धिकों तथा जन आंदोलनों के साथियों के लिए स्तब्ध कर देनेवाली घटना थी।
तब से हालात और बदतर ही हुए हैं। असहिष्णुता बढ़ी है और अभिव्यक्ति की आजादी पर एक तरफ उन्मादी गुटों द्वारा और दूसरी तरफ सत्ता में बैठे लोगों द्वारा हमले तेज हुए हैं। राजद्रोह कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और यूएपीए जैसे कानूनों का दुरुपयोग चरम पर पहुंच गया है।
ऐसे में, उचित ही, गौरी लंकेश को याद करने के लिए रविवार को जुटे लोगों ने कहा कि गौरी लंकेश को और उनकी शहादत को याद करना काफी नहीं है बल्कि उनकी विरासत को आगे बढ़ाने तथा देश को फासीवादी शिकंजे से मुक्ति दिलाने के प्रयास तेज करने की जरूरत है।
(सभी फोटो gaurilankeshnews.com से साभार)