19 अक्टूबर। संत विनोबा भावे द्वारा 8 मार्च 1968 में स्थापित आचार्यकुल की भूमिका बाबा के जीवनकाल में बहुत महत्त्वपूर्ण रही। भूदान आंदोलन में उसकाचरम उत्कर्ष विश्व ने लक्षित किया था। अमेरिका की TIME पत्रिका ने विनोबा के व्यक्तित्व पर अपना विशेष अंक केंद्रीत किया था। आचार्यकुल की उसी ऐतिहासिक परम्परा के क्रम में प्रो. पुष्पिता अवस्थी के नेतृत्व में समाज-सेवा और शिक्षण–प्रशिक्षण की दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित किये जा रहे हैं जो देश और विश्व की मनुष्यता के लिए अनुकरणीय हैं।
प्रो, पुष्पिता की प्रतिष्ठा एक कवि, लेखक, अध्यापक, संपादक, संस्कृतिकर्मी व भाषाविद के रूप में है। वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वसंत महिला महाविद्यालय में बीस वर्षों तक हिंदी विभागाध्यक्ष रहीं और भारतीय संस्कृति की अद्भुत व्याख्याता हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं और कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में उनकी अनेक रचनाओं के अनुवाद हुए हैं। प्रो. पुष्पिता 2001 से विदेश में हिंदी साहित्य, भाषा, संस्कृति के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। डॉ. एसएन सुब्बाराव, डॉ. रामजी सिंह, श्री गौतम बजाज, श्री रामचंद्र राही, साधक जी, अमरनाथ भाई जैसे सर्वोदय के अनेक चिंतक मनीषियों से तथा हिंदी के अनेक मूर्धन्य साहित्यकारों से उनका संवाद रहा है। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि वह साहित्य-सृजन के अलावा गांधी-विचार के प्रसार में बराबर सक्रिय हैं।
हिंसा के शिकंजे में लहूलुहान विश्व की मुक्ति के लिए प्रो.पुष्पिता ने अहिंसा से विश्व विजय का अभियान चलाया हुआ है। इसी क्रम में ‘कोरोना काल’ के क्रूर समय में आचार्यकुल के पदाधिकारियों एवं प्रदेश अध्यक्षों की सक्रियता से लगातर 18 महीनों तक मास्क, सेनिटाइजर और भोजन पैकेज की व्यवस्थाकी गयी। इसमें आचार्यकुल के उपाध्यक्ष श्री लोकेंद्र भारतीय जी कोविड से संक्रमित हुए। कोविड के बाद के कष्ट को अभी भी वे झेल रहे हैं। दूसरी ओर 2020 फरवरी से अक्टूबर तक और उसके बाद नीदरलैण्ड्स में रहते हुई लॉकडाउन के दौरान विनोबा के विचारों के प्रसार की योजनाओं का नेतृत्वसम्हाला और इस क्रम में देश-विदेश में आचार्यकुल, इंटरनेशनल नॉन वायलेंस ऐंड पीस एकेडमी, गार्जियन ऑफ अर्थ ऐंड ग्लोबल कल्चर एवं हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन के बैनर को देश-विदेश की कई शिक्षण संस्थाओं तथा विश्वविद्यालयो से जोड़कर अनेक वैश्विक वेबकॉन्फ्रेन्स का आयोजन किया।जिसके अंतर्गत शिक्षा, संस्कृति, स्वाधीनता, स्वराज, स्त्री शक्ति जैसे विषयों पर विचार-विमर्श किया। अपना शोधपत्र पढ़नेवाले 250 से अधिक शोधार्थियोंको आचार्यकुल का प्रमाणपत्र ऑनलाइन वितरित किया गया।
व्याख्यानदाता विद्वानों को प्रमाणपत्र के साथ अभिनन्दन किया गया। कुछ शिक्षण संस्थाओं में आचार्यकुल के केंद्र स्थापित किये गये। आचार्यकुल संगठन बाबा विनोबा के अनुसार शिक्षकों, लेखकों, पत्रकारों और विद्यार्थियों का समाजसेवी रचनात्मक राष्ट्रीय संगठन है। जिसे वर्तमान समय में आचार्यकुल की राष्ट्रीय अध्यक्ष वैश्विक स्तर प्रदान करने में प्राणपण से तत्पर हैं क्योंकि विनोबा जी का ‘जयजगत’ जीवन–मंत्र रहा है। सच भी है ‘जब जीवन में जगत का और जगत में जीवन की शक्ति का विलय हो जाता है तभी जय जगत का अभियान सार्थक होकर जन–जीवन में जीवन पाकर सफल हो पाता है।’
आचार्यकुल की अध्यक्ष प्रो. पुष्पिता अवस्थी की यह संलग्नता न केवल नये सिरे से आचार्यकुल को स्थापित करेगी अपितु विश्व मंगल के लिए ‘वैचारिकक्रांति’ को भी नयी दिशा मिलेगी। जिससे बाबा विनोबा के विचारों के आलोक में स्वराज की संकल्पना साकार हो सकेगी। आज के संदर्भ में जीवटता के धनी सत्य शोधक-सत्यधर्मणा जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया के शाश्वत संदेश को भी वसुधैव कुटंबकम् भाव से जन-जन में समर्पण-भावना से पहुँचाना अत्यंत आवश्यक है।
– सुज्ञान मोदी