23 दिसंबर। असाधारण जीवन जीने वाले घनश्याम जी साधारण आदमी थे। आज अहले सुबह पीएमसीएच अस्पताल में उनका देहांत हुआ। सिवान जिला के पंजवार गाँव के निवासी थे। किशन पटनायक के नेतृत्व वाले लोहिया विचार मंच में हमलोग साथ थे। मंच का गठन 1972 में हुआ था।
शुक्ल जी मध्य विद्यालय में शिक्षक थे। लेकिन उन्होंने जेपी और प्रभावती जी के नाम पर कॉलेज की स्थापना की। वह कॉलेज जितना व्यवस्थित और पारदर्शी ढंग से संचालित होता है, उसका नजीर दी जा सकती है। इसके अलावा लड़कियों के लिए कस्तूरबा गांधी के नाम पर एक हाई स्कूल की भी स्थापना उन्होंने की है। वह अब इंटर तक हो चुका है।
सबसे ताज्जुब तो यह है कि उस ग्रामीण इलाके में उन्होंने लड़कियों के लिए महिला बॉक्सर मेरीकॉम के नाम पर हॉकी और एथलेटिक्स के लिए स्पोर्ट्स स्कूल भी शुरू किया था। अब वह स्कूल पूरी तरह जीवंत और स्थापित हो चुका है। स्कूल की दो-तीन लड़कियाँ राज्यस्तरीय हॉकी टीम के लिए चुनी भी गयी हैं। जिला स्तरीय एक पुस्तकालय भी विद्या भवन के नाम पर चल रहा है। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां के नाम पर संगीत महाविद्यालय भी उनकी पहल से चलाया जा रहा है। मुझे नहीं लगता है कि बिहार के किसी भी गाँव में इतनी तरह की जीवंत संस्थाएं चल रही हों, वह भी किसी एक व्यक्ति की पहल पर।
उनकी इच्छा मुसहर और डोम समाज के बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय शुरू करने की थी। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से प्रोस्टेट की बीमारी बढ़ जाने और उसके कैंसर में बदल जाने की वजह से वे अपनी अंतिम परियोजना को मूर्त रूप नहीं दे पाये।
घनश्याम जी की हर परियोजना को गाँव-जवार के लोगों ने आँख मूंद कर समर्थन दिया। ऐसा क्यों? वे निस्पृह व्यक्ति थे। हर तरह के लोभ-लालच से मुक्त। आज के युग में शुक्ल जी का व्यक्तित्व अविश्वसनीय जैसा लगता है। एक मर्तबा कॉलेज में क्लर्क की बहाली होनी थी। कॉलेज के लिए वह आर्थिक संकट का समय था। कालेज की समिति ने तय किया कि शैक्षणिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए सहयोग के रूप में नौकरी की आकांक्षा रखनेवालों से आर्थिक मदद के रूप में एक निश्चित राशि भी ली जाएगी। शुक्ल जी की एक बहू भी वह शैक्षणिक योग्यता रखती थी। परिवार के लोग सहयोग राशि देने के लिए तैयार थे। लेकिन शुक्ल जी का शुरुआती दौर में ही निर्णय था कि मेरे परिवार का कोई भी सदस्य कॉलेज के साथ किसी भी रूप में नहीं जुड़ेगा। जब उनको यह जानकारी मिली तो उन्होंने कह दिया कि अगर ऐसा हुआ तो इसके बाद कॉलेज के साथ कोई संबंध नहीं रहेगा। अंततोगत्वा परिवार को आवेदन वापस लेना पड़ा। जब स्कूल की सेवा से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया तो उनको जो भी राशि मिली उसको उन्होंने उस कॉलेज के कोष में ही जमा कर दिया। इतना ही नहीं, उनको जो पेंशन की राशि मिलती रही है वह भी उनके निर्देशानुसार कॉलेज के खाता में जमा हो जाती है। सबसे सुखद यह है कि उनके सभी फैसलों को परिवार ने अंतिम समय तक सम्मानपूर्वक और सहर्ष स्वीकार किया।
घनश्याम जी गांधी-लोहिया की धारा के साथ आजीवन जुड़े रहे। लोहिया विचार मंच, समाजवादी जन परिषद और अंत में योगेन्द्र यादव के साथ स्वराज अभियान और किसान आंदोलन के साथ। उनके गाँव में विभिन्न कार्यक्रमों के अवसर पर किशन पटनायक, मेधा पाटकर, सच्चिदा जी, अशोक सेकसरिया, सुनील, योगेन्द्र यादव आदि का जाना होता रहा।
अभी हाल में वे महावीर कैंसर अस्पताल में केमोथीरेपी कराकर मिलने आए थे। उन्होंने कहा था कि मानसिक रूप से उन्होंने अपने को मौत के लिए भी तैयार कर लिया है। आज सुबह सुबह दिनारा से जानकी भगत, दिल्ली से उदयभान, सिवान से अशोक दूबे का फोन आया। घनश्याम शुक्ल विरल व्यक्ति थे। उनकी स्मृति को सादर प्रणाम करता हूँ।
– शिवानन्द तिवारी