5 जनवरी। धर्म संसद के नाम से हुए कई आयोजनों में जो कुछ हुआ उसने स्वाभाविक ही गांधीवादी संस्थाओं को भी स्तब्ध और इस सब के खिलाफ सक्रिय होने के लिए बेचैन कर दिया है। इस सिलसिले में इन संस्थाओं ने जो बयान जारी किया है वह इस प्रकार है-
हरिद्वार से शुरू हुई ‘धर्म संसद’ सारे देश में एक संकीर्ण, विषैला और विद्वेष भरा वातावरण बनाने के सुनियोजित अभियान में बदलती जा रही है। ऐसी धर्म संसदों से धर्म और अधर्म के बीच की रेखा मिटती ही नहीं जा रही है बल्कि धर्म की आत्मा ही खोती जा रही है। यह असहमति का नहीं, राष्ट्रीय असभ्यता और अशोभनीयता का मामला है।
भारतीय समाज की सर्व-समावेशी जीवनशैली को तार-तार करने की यह कोशिश, आज सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों ने शुरू की और अब यह उऩकी मुखर व मौन सहमति से उनके पैदल सिपाहियों द्वारा चलायी व बढ़ायी जा रही है। प्रधानमंत्री से लेकर सांप्रदायिकता को राजनीतिक शक्ति के तौर पर इस्तेमाल करनेवाले सभी लोगों-संगठनों और चापलूस प्रशासन व पुलिस अधिकारियों के चेहरों पर यह दाग लगा है।
इन सबको महात्मा गांधी से बड़ी परेशानी है। वे मारे जाने पर भी मरे नहीं बल्कि ये जिधर भी जाते हैं उधर ही वे राह रोके खड़े मिलते हैं। उन्हें मारनेवाली गोली ही जैसे अब तक नहीं बनी; उन्हें दफन कर सके, ऐसी कब्र अब तक खोदी नहीं जा सकी। इसलिए इन धर्म संसदों में उन्हें गालियाँ दी जा रही हैं, अपशब्दों से उनका अपमान किया जा रहा है। गुलाम भारत में किसी धर्म-जाति के लोगों ने, अंग्रेज प्रशासन ने महात्मा गांधी को कभी इतने अपशब्द नहीं कहे जितने पिछले कुछ वर्षों में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं व छुटभैय्यों ने कहे हैं। इनके शब्दों ने, इनके व्यवहार ने और इनकी मंशा ने दुनिया में भारत की छवि जैसी और जिस हद तक कलंकित कर दी है, उसका दूसरा कोई उदाहरण खोजना मुश्किल है।
महात्मा गांधी से असहमति रखने और उनकी आलोचना करने का अधिकार किसी को न हो, ऐसा भारत न हम चाहते हैं, न हम उसका समर्थन करते हैं। किसी भी लोकतंत्र में स्वस्थ व तथ्यों पर आधारित असहमति की जगह ही नहीं होती है बल्कि वह लोकतंत्र का अनिवार्य हिस्सा है। लेकिन लोकतंत्र में मिली आजादी व अधिकार का इस्तेमाल कर, कोई लोकतंत्र की जड़ ही काटने लगे तो इसे रोकना तथा इसके विरुद्ध कानूनसम्मत कार्रवाई करना पुलिस प्रशासन व न्यायपालिका की संवैधानिक जिम्मेवारी है। लेकिन हमें खेद है कि सत्ता की अनुकंपा की भूखी संवैधानिक व्यवस्थाएँ बौनी साबित हो रही हैं। ऐसे में लोकतंत्र की सार्वभौम शक्ति जनता को खुद ही आगे आकर अपने लोकतंत्र का संरक्षण व संवर्धन करना होगा। हम उस संविधान के जनक भी हैं और संरक्षक भी; हमने ही सरकारों को व कार्यपालिका व विधायिका को रचा भी है और मान्य भी किया है। इनका जब भी पतन होता है, हमें संगठित होकर इनका प्रतिकार करना चाहिए। हम लोकतंत्र की ढहती इमारत के खामोश दर्शक नहीं रह सकते।
इसलिए महात्मा गांधी के सम्मान का नहीं, लोकतंत्र के संरक्षण का सवाल है। लोकतंत्र ही बिखर गया तो नागरिकों के लिए कोई जगह बचेगी क्या?फिर बर्बर व बौरायी सत्ता, पुलिसिया राज की असंवैधानिक ज्यादतियाँ, जेल व यातनागृह ही हमारे हाथ में बचेंगे।
राजनीतिक दल, राष्ट्रविरोधी सांप्रदायिक शक्तियाँ, विवेकशून्य नौकरशाही और गूँगी न्याय-व्यवस्था हमें वैसे मुकाम पर पहुँचा दें, इससे पहले देश के सभी लोकतंत्रप्रेमियों के लिए यह सावधान होने, सक्रिय होने व आवाज उठाने का नाजुक दौर है।
हम गांधीजनों की यह विशेष जिम्मेवारी है कि हम खुद भी सक्रिय हों, मुखर हों और सबको साथ लेकर अपनी आवाज बुलंद करें। हमारा निवेदन है कि गांधी शांति प्रतिष्ठान, गांधी स्मारक निधि, राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय के सभी केन्द्र, राष्ट्रीय युवा संगठन की सभी इकाइयाँ तथा सर्व सेवा संघ व उसके सारे सर्वोदय मंडल इसकी अगुआई करें और 1 से 30 जनवरी के बीच अपनी सुविधा व तैयारी से, अपनी-अपनी जगहों पर निम्न कार्यक्रमों का आयोजन करें –
# स्थानीय समाचार पत्रों में संपादक के नाम लगातार सैकड़ों की संख्या में पत्र लिखें तथा ‘धर्म संसद’ के अधार्मिक आयोजन व अशोभनीय व्यवहार व भाषा का निषेध करें। ‘संपादक के नाम पत्र’ के अभियान को इस तरह संयोजित करें कि आपके इलाके के, सभी भाषाओं के सभी समाचार पत्रों में यह अभियान नियमित रूप से पूरे महीने जारी रहे। हमारे अभियान की सफलता इसमें है कि अधिकाधिक लोग इससे जुड़ें। प्रकाशित पत्रों का संकलन करें तथा उसकी इकट्ठी फोटोकापी हमें भेजें।
# यदि आपके यहाँ टीवी चैनल या वाट्सऐप ग्रुप चलता हो त उस पर भी योजनापूर्वक अपनी उपस्थिति बनाएँ।
# सबकी सुविधा व तैयारी देख कर, किसी एक दिन यथासंभव बड़ी रैली का आयोजन करें जिसमें महात्मा गांधी के बड़े चित्र के साथ “लोकतंत्र हमारा है, हम सब एक हैं!” का बैनर हो। आपके इलाके के किसी प्रमुख स्थान से यह रैली निकले और निश्चित रास्तों से गुजरती हुई, किसी प्रमुख स्थान या मैदान में जमा हो जहाँ धर्म के इस अधार्मिक इस्तेमाल के निषेध की एक सभा हो। रैली व सभा में पर्चा बाँटते चलें, जहाँ जरूरी हो वहाँ इसका स्थानीय भाषा में अनुवाद कराएँ।
हमारे सभी आयोजनों में इन बातों का खास ध्यान रखा जाए-
# हमारी भाषा शालीन, मर्यादित हो, महात्मा गांधी के अपमान का निषेध करती हो; हम पूरी कोशिश करें कि हमारे सभी आयोजनों में हमारे इलाके के सभी धर्मों-जातियों-भाषाओं के लोग शामिल हों; युवकों-युवतियों और महिलाओं को हर तरह से आगे बढ़ाएँ व अपने कार्यक्रम में शामिल करें; सभी स्कूलों-कॉलेजों-संस्थानों को साथ लेने की कोशिश करें।
# ऐसे आयोजन में मीडिया के सभी लोगों को आमंत्रित करें।
# विपरीत विचार के लोगों से विवाद न करें। व्यवस्थित संवाद से पीछे न हटें।
# अपने यहाँ के आयोजन की पूरी जानकारी अवश्य भेजें।
निवेदक – गांधी शांति प्रतिष्ठान 0 गांधी स्मारक निधि 0 राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय
0 राष्ट्रीय युवा संगठन 0 सर्व सेवा संघ 0 सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान