— हरीश खन्ना —
कल समाजवादी नेता श्रद्धेय मधु लिमये की पुण्यतिथि थी। 8 जनवरी, 1995 को उनका निधन हुआ था। महाराष्ट्र में जनमे मधु जी चार बार बिहार के मुंगेर और बांका से लोकसभा के सदस्य रहे। वह ऐसे सांसद थे जिनके यहां न फ्रिज था, न टेलीविजन, न एयर कंडीशनर, न कूलर, न गाड़ी। एक ऐसा इंसान जिसने अंग्रेज सरकार की जेल काटी, गोवा मुक्ति आंदोलन में पुर्तगाल सरकार की जेल काटी और आपातकाल में भी जेल काटी। सच्चे गांधीवादी और लोहियावादी। कभी भी मंत्री-पद ग्रहण नहीं किया।
1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के वक्त उनका नाम मंत्री-पद के लिए आया तो उन्होंने ठुकरा दिया। बाद में चौधरी चरण सिंह की कैबिनेट में उनको विदेश मंत्रालय का कार्यभार संभालने का न्योता दिया गया तो उसे भी उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। अपने उसूलों के पक्के थे। जनता पार्टी की सरकार के वक्त यह पार्टी के जनरल सेक्रेटरी थे और चौधरी साहब की सरकार के वक्त भी यह पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रहे। 1980 के बाद इन्होंने सक्रिय राजनीति से अपने को अलग कर लिया और केवल लिखने-पढ़ने तथा अखबारों में लेख लिखने तक सीमित कर लिया। इनका आदर और सम्मान इतना था कि विपक्ष के जितने भी बड़े नेता थे, वह इनके यहां सलाह-मशवरा करने और मिलने-जुलने आते थे।
इनकी असली ताकत इनकी धर्मपत्नी चंपा लिमये थीं जो बंबई विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थीं। जो हर सुख-दुख में उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी रहती थीं। मधु जी शास्त्रीय संगीत के बहुत शौकीन थे। जब कभी राजनीति से दुखी और व्याकुल होते थे तो संगीत में अपना मन लगाते थे। भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, पंडित जसराज, शायद ही उस ज़माने का कोई ऐसा गायक होगा जिसका प्रोग्राम सुनने के लिए यह न पहुंचे हों। उस ज़माने के जितने भी प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायक थे, वह सब भी उनको जानते थे।
मुझे उनके साथ इस तरह के कार्यक्रमों में जाने का कई बार सौभाग्य मिला। मुझे गर्व है कि ऐसे ईमानदार व्यक्ति के साथ रहकर उनके समाजवादी परिवार का मैं हिस्सा रहा। क़िस्से और स्मृतियां बहुत सी हैं। फिर कभी विस्तार से लिखूंगा। पर ऐसे ईमानदार और नेक राजनेता आज कहां मिलेंगे? दिल की गहराइयों से मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।