29 जनवरी को बापू ने डॉ लोहिया को बुलाया कि आज रात तुम हमारे साथ रहोगे, ‘कुछ बात’ करनी है। डॉ लोहिया पहुंचे तो बापू लोंगो से मिलने में व्यस्त थे, लोहिया को देखते ही बोले – तुम मेरे कमरे में चलो हम आते हैं। 30 की सुबह जब डॉ लोहिया सोकर उठे तो बापू बरामदे में बैठ कर खतों का जवाब लिख रहे थे। डॉ लोहिया ने पूछा – कल आपने बात करने के लिए बुलाया था ? बापू ने कहा – जब हम कमरे में गए तो तुम बिल्कुल शांत भाव से सो गए थे, इसलिए जगाया नही। चलो आज बात करेंगे। ‘और यह’ आज 30 जनवरी थी।
डॉ लोहिया जब बिरला भवन पहुंचे तबतक बापू प्रस्थान कर चुके थे, हमेशा के लिए। ‘गर एक दिन और’ बापू जिंदा रहते तो शायद कुछ और निर्णय होता, लेकिन यह इतिहास है मित्र, इसमे अगर मगर’ नही लगता। 30जनवरी को इतिहास का एक हिस्सा खुलने के पहले ही बन्द हो गया हमेशा के लिए।
42 तक आते आते बापू कांग्रेस के समाजवादी धड़े से कुछ ज्यादा ही जुड़ गए थे। समाजवादियों का नेतृत्व पंडित नेहरू, आचार्य नरेंद्र देव, कृपलानी, लोहिया वगैरह करते रहे।
बापू की हत्या के बाद पूरा देश नही दुनिया स्तब्ध थी कांग्रेस नेतृत्व तो विक्षिप्त हो चुका था। सरदार पटेल पत्थर की तरह जड़ हुए बैठे थे, पंडित नेहरू जिस चादर से बापू का शव ढका था, उसमे मुह डाल कर बच्चों की तरह रो रहे थे ।
वो कौन था जिसकी हत्या समूचे मानवता को आज भी चुनौती दे रही है। सवाल केवल एक था, आज भी है ।
‘क्यों मारा बापू को ?
अनुत्तरित सवाल है।
सादर नमन बापू।
{ चंचल BHU के सौजन्य से साभार }