1. बार्डर पर किसान – एक
जय जवान, जय किसान के देश में
जवान और किसान दोनों की जगह
अब बार्डर पर है
किसान खेत से निकले, गाँव-गली-मोहल्लों से
घर-परिवार, बाल-बच्चों के साथ
ट्राली-ट्रैक्टर पर सवार
चल पड़े उनके कदम राजधानी की ओर
किसानों ने कभी नहीं सोचा था कि
उन्हें आक्रान्ता समझ बार्डर पर
इस तरह रोक लिया जाएगा
ठण्ड के इस मौसम में जब रक्त जमा जा रहा हो
उनका स्वागत पानी की तेज धार से किया जाएगा
उनका सामना कँटीले तारों और बोल्डरों से होगा
उन्हें झेलने होंगे गैस के गोले
किसान पहुँचना चाहते थे राजधानी
अपनी दरख्वास और दावों के साथ
यह उनका दूसरा घर था
उनके लिए प्यार की जगह थी
दिल्ली तो उनके दरवाजे पर थी
वही दिल्ली उनसे दूर हो गयी
दिल वाली कही जाने वाली दिल्ली
बदली-बदली थी
किसानों का कहना है कि
हमने चुनी है यह सरकार
फिर वह कैसे दे सकती है आजादी कंपनियों को
कि वे आएँ और कब्जा जमायें हमारे खेत-खलिहानों पर
अनाज व गोदामों पर
और नीलाम करें दुनिया की मंडियों में
हम अपने ही खेत पर हो जाएँ मजूर
और बच्चे हो जाएँ सुख-सपनों से दूर
सरकार अपने होने का अधिकार जताती है
वह आरोप के अन्दाज में कहती है
किसान तो भोले-भाले, गाय की तरह सीधे-सादे
ये किसान नहीं, इनकी भाषा किसान की नहीं
यह तो शैतान की जबान है
बहुरूपिए घुस आए हैं इनके बीच
किसान भी पलटवार में पीछे नहीं
सरकार को जो कहना है, वह कहे
उसके आगे जाकर भी कहे, फिक्र नहीं
हम हैं जो ‘कभी न छोड़ैं खेत’
हम तो हैं डट जाने वाले
यह धरती हमारी माँ है
तीस क्या, तीन सौ जानें चली जाएँ
शहीद होना हमारी परम्परा में है
ऐसी ही जिद्द है किसानों की
जिस पर वे अड़े हैं
यह उनकी जिद्द ही है जिस पर आज
टिकी है लोगों की उम्मीद
टिका है देश का जनतंत्र!
(रचना तिथि 25 दिसम्बर 2020। यह कविता तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आन्दोलन के तीसवें दिन लिखी गयी।)
2. बार्डर पर किसान – 2
कुछ भी अचानक नहीं होता
वह अकारण भी नहीं होता
उनके जीवन में एक नहीं अनेक बार्डर है
बार्डर ही बार्डर है
इन्हीं को लाँघते-फलाँगते पहुँचे हैं
वे रोटियों की तरह सेंके गये हैं
उनके नाम पर पूड़ियां तली गई हैं
वे बैलों की तरह जोते गये हैं
भेड़ बकरियों की तरह हांके गये हैं
उनकी पीठ सीढियाँ बनी हैं
जिनके सहारे कुछ विराजमान हैं मंच पर
यह उनका जीवन है या पानी ही पानी है
उसी मे डूबे हैं, यह तो डूबने की कहानी है
किसी का घुटना डूबा है तो किसी की कमर
वह डरा है इसलिए कि गर्दन डूबने वाली है
सामने जो पेड़ है वहाँ वे मिलेंगे लटके हुए
घर की छत ने भी उन्हें मुक्त किया है
मुक्ति ही जीवन की राह है
उन्होंने खोज ली हैं मुक्ति की अनेक राहें
जिन पर चलते हुए कई उम्र पार की है
इस पार को पार करते हुए पहुँचे हैं आर पार तक
मस्तिष्क भन्नाया है, मन अशान्त है
दिल जख्मी है, पैर लहूलुहान है
इन्हीं पैरों से वे पहुँचे हैं और किसी को नजर नहीं आते
वे बिसलरी की बोतल, बर्गर, पिज्जा नहीं हैं।
(27 जनवरी 2021)
3. बार्डर पर किसान – 3
वह जवान है
पिता किसान हैं
बेटा उस बार्डर पर है
पिता इस बार्डर पर हैं
इस और उस के मिलन से
सतलज और झेलम की
अविरल धारा प्रस्फुटित है
दोनों उस देश के वासी हैं
जहाँ गंगा जमुना से मिलती है
दोनों को इस मिट्टी से प्यार है
जो सोना उगलती है
इस सोने पर
लुटेरों, गिद्धों, बटमारों की नजर है
यह उनकी तिजोरी की शोभा बने
इसके लिए हजार तिकड़म है
झूठ का कारोबार है
फौज-फाँटा लिये सेवा में नत सरकार है
कि हर तरफ जाल ही जाल है
इसी जाल को काटते
लतियाते
धता बताते
किसान जमे हैं राजधानी में
वे बो रहे हैं
फसल सारे देश में लहलहाएगी।
(12 अक्टूबर 2021)
सभी चित्र : कौशलेश पांडेय