— राम शरण —
आज पूरी दुनिया यूक्रेन के संकट को लेकर डरी हुई है क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार इतनी विशाल सेना और परम घातक हथियार किसी देश की सीमा पर हमले के लिए तैयार हैं। यहां तक कि परमाणु हमले की भी धमकी दी जा रही है, जो अत्यंत खेदजनक है। अमरीका और उसके सहयोगी देश बार-बार हमले की चेतावनी दे रहे हैं। लेकिन रूस के राष्ट्रपति पुतिन इससे इनकार कर रहे हैं। यह कहना कठिन है कि युद्ध होगा या नहीं। क्योंकि रूसी लोग शतरंज के बहुत माहिर होते हैं। ज्यादा संभावना यही है कि रूस को बिना युद्ध किये अपने लक्ष्य हासिल हो जाएं।
अमरीका ने इराक पर हमले के पहले सीधा झूठ बोला था कि इराक के पास विनाशक हथियार हैं। पर यह दावा गलत प्रमाणित हुआ। इसलिए उसपर विश्वास करना कठिन है। हाल मे अमरीका बिना सहयोगी देशों की राय लिये अफगानिस्तान से जिस प्रकार भागा उससे उसके सहयोगी देशों में भी अविश्वास पैदा हो गया है।
रूस के यूक्रेन पर हमला करने के कई कारण हैं। पहला और मुख्य कारण है अपनी असुरक्षा का। 1962 में अमरीका ने सोवियत संघ की सीमा पर तुर्की और इटली में परमाणु हथियार जमा कर दिये थे, तो सोवियत संघ ने भी अमरीका की सीमा पर क्यूबा में परमाणु हथियार जमा कर दिये। इससे परमाणु युद्ध का खतरा बन गया था, जो दोनों पक्षों की हथियार वापसी के बाद समाप्त हुआ था। इसमें तटस्थ राष्ट्रों का भी दबाव था। लेकिन आज भारत तटस्थ राष्ट्रों का नेता नहीं, दोनों पक्षों यानी रूस और अमरीका की दया पर निर्भर है। इसका कोई महत्त्व नहीं रह गया है।
अफगानिस्तान में सोवियत संघ की तालिबानियों से हार के बाद सोवियत संघ में शामिल देश अलग अलग हो गये। रूस में साम्यवाद समाप्त हो गया। फिर भी वह बड़ी ताकत था। पर दुनिया में यह प्रचारित किया गया कि अब दुनिया की एकमात्र शक्ति अमरीका बचा है। इसके बाद ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने पूरी दुनिया को अपने जाल में ले लिया।
रूस का बहुत अपमान किया गया। पहले उसे महत्त्वपूर्ण देशों के G.7 ग्रुप में अतिथि के तौर पर जोड़ा गया। फिर बाद में वह हैसियत भी छीन ली गयी। पुतिन के सत्ता में आने के बाद रूस ने हथियार और औद्योगिक क्षेत्र में बहुत ज्यादा विकास किया। उसके अनेक हथियार, जैसे S400 अमरीका से भी ज्यादा कारगर माने जाते हैं। इसके डर से अमरीका ने तुर्की आदि देशों को रूसी हथियार खरीदने से मना कर दिया है। पर भारत मजबूरी में S400 खरीद ही रहा है। रूस के टैंक, हवाई जहाज और प्रक्षेपास्त्र सब बड़ी उन्नत श्रेणी के हैं। रूस का एक उद्देश्य युक्रेन युद्ध में अपने हथियारों का प्रदर्शन करना और खरीदार तैयार करना भी है। यूक्रेन के घेराव से पूरी दुनिया में जो आतंक फैल गया है उससे रूस की ताकत को फिर से नयी पहचान मिली है। छह हजार से अधिक परमाणु अस्त्रों वाला देश रूस रक्षा के मामले में अमरीका से पीछे नहीं है, यह प्रमाणित हो गया है।
लेकिन इस दबाव का असली कारण रूस की सुरक्षा को खतरा है। सोवियत संघ के बिखरने के बाद उसमें शामिल रहे अधिकांश देशों का रूस से रिश्ता अच्छा ही था। पर पश्चिमी देशों ने एक एक कर उन्हें अपनी ओर करना शुरू कर दिया। अब यूक्रेन भी नाटो संगठन में शामिल होना चाहता है। यदि यूक्रेन नाटो में शामिल हो गया तो अमरीका और यूरोपीय देशों को रूस की सीमा पर प्रक्षेपास्त्र लगाने का मौका मिल जाएगा, जैसे क्यूबा संकट के दौरान हुआ था। इसी प्रकार धीरे-धीरे रूस के अन्य पड़ोसी देशों को भी नाटो में शामिल किया जा सकता है। इसे बर्दाश्त करना रूस के लिए बहुत कठिन है। इसलिए रूस यह गारंटी मांग रहा है कि नाटो का विस्तार रोका जाए।
यूक्रेन प्राचीन काल में रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। इसलिए वहां के पूर्वी प्रातों में रूसी लोगों की संख्या ज्यादा है। वे पश्चिम के बदले रूस से निकटता महसूस करते हैं। उन अल्पसंख्यक रूसियों की सुरक्षा के लिए स्वायत्तता देने का 2014 और 2015 में मिंस्क में समझौता हुआ था। पर बाद में यूक्रेन सरकार ने उसे मानने से इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप वहां के रूसी अल्पसंख्यक आतंकवादी बन गये हैं और उन्हें रूस से भरपूर मदद मिल रही है।
यूक्रेन के नाटो के प्रति झुकाव का एक कारण क्रीमिया भी है। क्रीमिया यूक्रेन के दक्षिण में अवस्थित प्रायद्वीप है। इसे रूस ने यूक्रेन को उपहारस्वरूप देदिया था। पर यूक्रेन के पश्चिमी झुकाव को देखते हुए, वापस अपने कब्जे में ले लिया।
यूक्रेन को पश्चिमी देश अपनी ओर मिलाना तो चाहते हैं पर युद्ध में उलझना भी नहीं चाहते हैं। वे अफगानिस्तान की हार को भूले नहीं हैं। दूसरी ओर जर्मनी और अन्य यूरोपीय देश गैस के लिए रूस पर निर्भर हैं। उन्हें 40 फीसद गैस रूस से सस्ती दरों पर मिलती है। अमरीका चाहता है कि यूरोपीय देश रूस से नहीं अमेरिका आदि देशों से गैस खरीदें। इसलिए वह रूस की पाइपलाइन को रोकने की धमकी दे रहा है। पर यूक्रेन में अपने सैनिकों को भेजने के लिए वह तैयार नहीं है। सिर्फ हथियार दे रहा है।
यह मौका रूस के लिए बहुत अच्छा है। ऊपर से अमरीका और चीन की दुश्मनी से उसे बगल में मजबूत सहयोगी मिल गया है। लेकिन रूस और चीन की मित्रता भारत के लिए बहुत खतरनाक है। इसका लाभ पाकिस्तान को भी मिलना सुनिश्चित है। दूसरे, भारत को रूस से महत्त्वपूर्ण हथियार और उनके कलपुर्जे मिलना कठिन हो सकता है।
अभी यह कहना मुश्किल है कि रूस हमला करेगा या नहीं। वैसे रूस के कई लक्ष्य बिना हमला किये हासिल हो गये हैं। दुनिया ने उसे बड़ी ताकत मान लिया है और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने अपने रुख में बदलाव लाते हुए बातचीत का प्रस्ताव दिया है। यदि कोई समझौता नहीं होता है तो संभव है कि रूस खुद हमला न करके पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादियों को हथियार बनाए। लेकिन समझौते की संभावना ज्यादा है क्योंकि यूक्रेन समझ रहा है कि पश्चिमी देश सिर्फ हथियार देंगे पर विनाश यूक्रेन का ही होगा। पूरी दुनिया को भी ऊर्जा का और मंहगाई का संकट झेलना होगा।