27 फरवरी। संयुक्त किसान मोर्चा ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम और ओड़िशा के ढिंकिया में किसानों के खिलाफ पुलिस दमन पर चिंता जताते हुए कहा है कि ये किसान बिना किसी उचित प्रक्रिया के कोयला खनन और उद्योग के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही बयान जारी कर बीरभूम जिले के देवचा-पंचमी-हरिनसिंह-दीवानगंज इलाके में पुलिस दमन की निंदा की है। उसके बाद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने 23 फरवरी को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की कि किसानों और छोटे पशुपालकों को उनके खेत और चरागाह की जमीन से बेदखल नहीं किया जाएगा और उन्हें जमीन के बदले जमीन मिलेगी। अब तक, भूमि के बदले भूमि की घोषणा का सार्वजनिक विवरण उपलब्ध नहीं है। यदि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार में स्पष्ट रूप से निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से सरकार के इस प्रस्ताव को स्थानीय किसान स्वीकार करते हैं, तो यह समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
हालाँकि, एसकेएम इस बात से बहुत चिंतित है कि 20-21 फरवरी 2022 को पुलिस द्वारा लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने के लिए गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ता और स्थानीय किसान, जिला पुलिस द्वारा अदालत में दस्तावेजों को पेश न करने के कारण जेल में बंद हैं। एसकेएम ने पुलिस के इस रवैए की निन्दा करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मांग की है कि है कि गिरफ्तार व्यक्तियों को फौरन रिहा किया जाए और उनके खिलाफ सभी मामले वापस लिये जाएं, इससे शांतिपूर्ण चर्चा का रास्ता साफ होगा और संभावित समाधान के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। एसकेएम जल्द ही मेधा पाटकर और अन्य वरिष्ठ नेताओं की अध्यक्षता में पश्चिम बंगाल में एक तथ्यान्वेषी दल भेजेगा जो राज्य सरकार के साथ समन्वय करेगा, परियोजना क्षेत्र में जन सुनवाई करेगा, और मुद्दों को हल करने के लिए कदम उठाएगा।
संयुक्त किसान मोर्चा ने 4 दिसंबर 2021 से ओड़िशा के जगतसिंहपुर जिले के ढिंकिया और उसके आसपास के गांवों में पुलिस की लगातार मौजूदगी की भी निंदा की है। ओड़िशा सरकार ने जिला प्रशासन को खुली छूट दी, और पुलिस अंधाधुंध हिंसा के लिए जिम्मेदार है, जैसा कि कई घटनाओं में देखा गया, जिसमें 14 जनवरी का क्रूर लाठीचार्ज शामिल है। 200 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां थीं। कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कई अन्य छिपे हुए हैं क्योंकि पुलिस ने गांव के अंदर अपना शिविर लगाया हुआ है।
सज्जन जिंदल के नेतृत्व वाली जेएसडब्ल्यू स्टील की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक जेएसडब्ल्यू उत्कल स्टील की राज्य प्रायोजित परियोजना की खातिर भूमि के जबरदस्ती अधिग्रहण के लिए गांवों की घेराबंदी की यह स्थिति वन अधिकारों और भूमि अधिग्रहण से संबंधित कानूनों और उचित प्रक्रियाओं का उल्लंघन है। इन चिंताओं को ओड़िशा एसकेएम द्वारा राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों से लिखित अपील में सामने रखा गया है; फिर भी राज्य सरकार अपने सारे संसाधन जेएसडब्ल्यू के समर्थन में लगा रही है।
16 फरवरी 2022 को ओड़िशा उच्च न्यायालय ने ढिंकिया गांव का दौरा करने और वर्तमान स्थिति का आकलन करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया, खासकर 14 जनवरी की पुलिस कार्रवाई के बाद। 19 फरवरी को एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता की सहायता से पांच सदस्यीय टीम ने गाँव का दौरा किया। ग्रामीण अपना बयान देने के लिए जमा हो गए थे लेकिन बदमाशों ने उन पर हमला कर दिया और चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह हाईकोर्ट कमेटी के सदस्यों के सामने हुआ। पुलिस द्वारा कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की गयी, पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही। ग्रामीणों के अनुसार, हमलावर जेएसडब्ल्यू द्वारा काम पर रखे गए गुंडे थे।
ढिंकिया के संघर्षरत लोगों ने 12 साल के शांतिपूर्ण विरोध के बाद दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने से सफलतापूर्वक रोक दिया था। यह चौंकाने वाला है कि 2700 एकड़ जमीन जो अधिग्रहीत की गयी थी, उसे लोगों को वापस करने के बजाय, ओड़िशा सरकार ने इसे एक लैंड बैंक में डाल दिया है और अब इसका उपयोग जेएसडब्ल्यू के लिए कर रही है। संयुक्त किसान मोर्चा ने जोर देकर कहा है है कि जेएसडब्ल्यू के लिए अधिग्रहीत जमीन लोगों को वापस की जाए। साथ ही जिला प्रशासन द्वारा पिछले दो माह में किए गए पान के खेतों को हुए नुकसान की भरपाई की जाए।
एसकेएम ने कहा है कि वह पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के किसानों के संघर्ष के साथ खड़ा है और विरोध जताने के उनके अधिकार का समर्थन करता है। एसकेएम ने पारदर्शिता की कमी और स्टील तथा खनन कंपनियों को लाने के लिए बलप्रयोग और जोर-जबरदस्ती की निंदा हुए यह दोहराया है कि भारत की मुख्य रूप से ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था में किसानों- भूमि के मालिक और भूमिहीन- की कीमत पर औद्योगीकरण नहीं हो सकता है।