4 मार्च। जिससे डरते थे, वही बात हो….। यह गीत राजस्थान में एक बार फिर से चरितार्थ हो चुकी है। जहां देशभर के किसान सरकार के तीन काले कानून से जूझ रही है, अभी तक उससे राहत भी नहीं मिला कि अब किसानों को फसलों की चिंता सताने लगी है। किसानों को उनके फसल की चिंता सताएगी भी क्यों नहीं? क्योकि वो किसान ही है तो चारों तरफ से मार सहता है। कभी प्रकृति की तो कभी सरकार की।
राजस्थान में गेहूं उत्पादन के आंकड़े इस बार पिछले साल की तुलना में कम है। महंगाई से परेशान आम आदमी को यह खबर झटका दे सकती है। प्रदेश में गेहूं अधिकतर श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिले में तथा कोटा जिले में पैदा होता है। पिछले साल के मुकाबले इस साल भी 20 फीसदी गेहूं की बुआई कमजोर है। गेहूं के 20 प्रतिशत क्षेत्रफल में सरसों की बुआई की गई है। राज्य में गत वर्ष 110 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई थी। इस बार यह आंकड़ा घटकर 90 से 95 लाख टन पैदा होने का अनुमान है।
खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के चेयरमैन बाबूलाल गुप्ता ने बताया कि गेहूं व्यापारियों का अनुमान है कि मौसम अनुकूल होने के कारण गेहूं की किस्म में बहुत सुधार होने की संभावना है। यदि गेहूं बोल्ड और ब्राइटनेस लिए होता है तो समर्थन मूल्य से गेहूं के दाम ऊंचाई पर रहेंगे। यूक्रेन और रूस से बहुत बड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात होता है, जो देश यूक्रेन और रूस से गेहूं खरीदते थे, वह इस बार भारत की ओर रुख कर सकते हैं। इस कारण भी देश व प्रांत में गेहूं के भाव गत वर्ष के मुकाबले 10 से 15 प्रतिशत तेज रहेंगे। एफसीआई को भी कम मात्रा में गेहूं मिलने की संभावना बनी है।
श्रीगंगानगर की मंडी से गत वर्ष 21 लाख कट्टे मिले थे। इस बार पैदावार की बात करें तो पैदावार 19 लाख कट्टे होने की संभावना है। यही स्थिति हनुमानगढ़ मंडी की हैं, जिसमें गत वर्ष 23.5 लाख कट्टे एफसीआई को तौले गए थे। इस बार 20 प्रतिशत पैदावार कम होगी। श्रीगंगानगर, पदमपुर, करणपुर, गोलूवाला, घड़साना, खाजूवाला, रायसिंहनगर, श्रीविजयनगर, अनूपगढ़, संगरिया, पीलीबंगा, सार्दुलशहर, गजसिंहपुर, जैतसर आदि मण्डियां तथा कोटा, बारां, छबड़ा, अटरू, खानपुर, रामगंजमण्डी, झालरापाटन आदि मण्डियों से भी 20 प्रतिशत गेहूं कम पैदा होने की सूचनाएं प्राप्त हुई है।
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